-- परिहार क्षत्रिय राजवंश के दो महानायक --
....सम्राट नागभट्ट प्रतिहार ...
(730- 760) A.D.
प्रतिहार(परिहार)राजपूतो की वीरता पर शानदार पोस्ट जरूर पढ़ें और शेयर करें।
के.एम.पन्निकर ने अपनी पुस्तक "सर्वे ऑफ़ इंडियन हिस्ट्री "में लिखा है -"जो शक्ति मोहम्मद साहिब की मृत्यु के सौ साल के अंदर एक तरफ चीन की दिवार तक पंहुच गयी थी ,तथा दूसरीऔर मिश्र को पराजित करते हुए उतरी अफ्रिका को पार कर के स्पेन को पद दलित करते हुए दक्षिणी फ़्रांस तक पंहुच गयी थी ,जिस ताकत के पास अनगिनित सेना थी तथा जिसकी सम्पति का कोई अनुमान नही था ,जिसने रेगिस्तानी प्रदेशों को जीता तथा पहाड़ी व् दुर्लभ प्रांतों को भी फतह किया था।
इन अरब सेनाओं ने जिन जिन देशों व् साम्राज्यों को विजय किया ,वंहा कितनी भी सम्पन्न संस्कृति थी उसे समाप्त किया तथा वंहा के निवासियों को अपना धर्म छोड़ कर इस्लाम स्वीकार करना पड़ा। ईरान , मिश्र आदि मुल्कों की संस्कृति जो बड़ी प्राचीन व विकसित थी ,वह इतिहास की वस्तु बन कर रह गयी। अगर अरब हिंदुस्तान को भी विजय कर लेते तो यहां की वैदिक संस्कृति व धर्म भी उन्ही देशों की तरह एक भूतकालीन संस्कृति के रूप में ही शेष रहता। इस सबसे बचाने का भारत में कार्य नागभट्ट प्रतिहार ने किया। उसने खलीफाओं की महान आंधी को देश में घुसने से रोका और इस प्रकार इस देश की प्राचीन संस्कृति व धर्म को अक्षुण रखा। देश के लिए यह उसकी महान देन है। परिहार वंश में वैसे तो कई महान राजा हुए पर सबसे ज्यादा शक्तिशाली नागभट्ट प्रथम एवं मिहिर भोज जी थे जिन्होने अपने जीवन मे कभी भी मुगल और अरबों को भारत पर पैर जमाने का मौका नहीं दिया । इसीलिए आप सभी मित्रों ने कई प्रसिद्ध ऐतिहासिक किताबो पर भी पढा होगा की प्रतिहारों को ईसलाम का सबसे बड़ा दुश्मन बताया गया है।।
ब्रिटिश इतिहासकार कहते थे कि भारत कभी एक " राष्ट्र " था ही नहीं वामी इतिहासकार कहते हैं कि भारत राष्ट्रीयता की भावना से " एक " हुआ ही नहीं --- धर्मनिरपेक्ष इतिहासकार कहते हैं कि " हिंदुत्व और इस्लाम " में कोई संघर्ष था ही नहीं
--- मुस्लिम कहते है कि इस्लाम के शेरों के सामाने निर्वीर्य हिंदू कभी टिके ही नहीं ...--- हमें तो यही बताया गया है , यही पढाया गया है कि हिंदू सदैव हारते आये हैं .. They are born looser , और आप भी शायद ऐसा ही मानते हों ,पर क्या ये सच है ?
...................नहीं ....................
तो फिर सच क्या है ? क्या हमारे पूर्वजों के भी कुछ कारनामे हैं ? कुछ एसे कारनामे जिनपर हम गर्व कर सकें ? जवाब है ..... हाँ ...हैं .....एसे ढेर सारे कारनामे जिन्होंने इस देश ही नहीं विश्व इतिहास को भी प्रभावित किया और जिनके कारण आज हम हमारी संस्कृति जीवित है और हम अपना सिर ऊंचा करके खडे हो सकते हैं .क्या थे वे कारनामे ? कौन थे वे जिन्होंने इन्हें अंजाम दिया और हम उनसे अंजान हैं ??
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समय - 730 ई.
मुहम्मद बिन कासिम की पराजय के बाद खलीफा हाशिम के आदेश पर जुनैद इब्न अब्द ने मुहम्मद बिन कासिम के अधूरे काम को पूरा करने का बीडा उठाया . बेहद शातिर दिमाग जुनैद समझ गया था कि कश्मीर के महान योद्धा शासक ललितादित्य मुक्तापीड और कन्नौज के यशोवर्मन से वह नहीं जीत सकता , इसीलिये उसने दक्षिण में गुजरात के रास्ते से राजस्थान और फिर मध्यभारत को जीतकर ( और शायद फिर कन्नौज की ओर) आगे बढने की योजना बनाई . और अपनी सेना के दो भाग किये -
१- अल रहमान अल मुर्री के नेतृत्व में गुजरात की ओर
२- स्वयं जुनैद के नेतृत्व में मालवा की ओर
-- अरब तूफान की तरह आगे बढे . नांदीपुरी में दद्द द्वारा स्थापित प्राचीन राज्य , राजस्थान में मंडोर का हरिश्चंद्र द्वारा स्थापित प्राचीन राज्य , चित्तौड का मोरी राज्य इस तूफान में उखड गये और यहाँ तक कि अरब उज्जैन तक आ पहुँचे और अरबों को लगने लगा कि वे स्पेन ,ईरान और सिंध की कहानी भी यहाँ बस दुहराने ही वाले हैं ..स्थित सचमुच भयावनी हो चुकी थी ..और ....तब ....तब भारत के गौरव को बचाने के लिये अपने यशस्वी पूर्वजों के नाम पर वे अपने सुयोग्य नेता नागभट्ट प्रथम के नेतृत्व में उठ खडे हुए . वे थे ---
..........." प्रतिहार " .............
--- प्रतिहार रघुवंशी क्षत्रिय है
--- प्रतिहार श्रीराम के भाई लक्ष्मण जी के वंशज है
--- प्रतिहार धर्मरक्षा के लिये अग्निकुंड से जन्म के मिथक के कारण अग्निवंशी भी कहलाते है .
वे शायद गुप्त और वर्धन साम्राज्य के सबसे विश्वसनीय और प्रतिष्ठापूर्ण सैनिक सेवा " प्रतिहार " बटालियन के पीढीगत योद्धा थे , इसीलिये वे अपनी सैनिक पदवी " प्रतिहार " नाम से भी पहचाने जाते थे .
वे भारतीय इतिहास के रंगमंच पर एसे समय प्रकट हुए जब भारत अब तक के ज्ञात सबसे भयंकर खतरे का सामना कर रहा था . भारत संस्कृति और धर्म , उसकी ' हिंद ' के रूप में पहचान खतरे में थी अरबों के रूप में " इस्लाम " हिंदुत्व " को निगलने के लिये बेचैन था .
नागभट्ट प्रतिहार के नेतृत्व में दक्षिण के चालुक्य राजा विक्रमादित्य द्वितीय और नागदा के गुहिलौत वंश के राणा खुम्माण जिन्हें इतिहास " बप्पा रावल " के नाम से जानता है , के साथ एक संघ बनाया गया . संभवतः यशोवर्मन और ललितादित्य भी अपने राष्ट्रीय कर्तव्य से पीछे नहीं हटे और उन्होंने भी इस संघ को सैन्य सहायता भेजी . मुकाबला फिर भी गैरबराबरी का था ----
--- 100000 मुस्लिम योद्धा v/s 40000 हिंदू योद्धा .
और फिर शुरू हुयी कई युद्धों की श्रंखला जिसे मुस्लिम और वामिये इतिहासकार छुपाते आये हैं -
........... " The Battle of Rajsthaan " .............
विक्रमादित्य चालुक्य के सेनापति अवनिजनाश्रय पुलिकेशिन ने अल मुर्री को बुरी तरह पराजय दी ,
- नागभट्ट ने जुनैद को पीछे खदेड दिया
- और अंत में नागभट्ट और बप्पा रावल ने जुनैद को घेर लिया और फिर राजस्थान की सीमा पर हुआ संयुक्त राजपूत सैन्य और अरबों का निर्णायक युद्ध जो भारत में अरबों की किस्मत का फैसला करने वाला था . सैन्य रूप से अरब अभी भी भारी बढत में थे उनके 30000 घुड्सवार , ऊँटसवार और पैदल सेना के मुकाबले में हिंदूसैन्य केवल 6000 घुडसवार और पैदल सेना का था .पर अरबों की संख्या पर राजपूतों का दुधारी खांडा बहुत भारी पडा . नागभट्ट और बप्पा रावल की बेहतरीन रणनीति और हिंदू योद्धाओं की वीरता ने मुस्लिम सेना को ना केवल बुरी तरह मात दी बल्कि भारत में अरबों का सबसे महान जनरल जुनैद युद्ध में मारा भी गया .
-भागती मुस्लिम सेना का क्रूरतापूर्वक सिंधु तक पीछा किया गया और उनका सफाया किया गया जुनैद के बाद तमिन ने एक कोशिश और की परंतु इसका परिणाम मात्र इतना हुआ कि अरब सदैव के लिये सिंधु के उस पार धकेल दिये गये और मात्र टापूनुमा शहर " मनसुरा " तक सीमित होकर रह गये . इस तरह ना केवल विश्व को यह बताया गया कि हिंदुत्व के योद्धा , शारीरिक बल में श्रेष्ठ हैं बल्कि यह भी कि उनके हथियार , उनकी युद्ध तकनीक और रणनीति विश्व में सर्वश्रेष्ठ है .
इस तरह भारत की सीमाओं को सुरक्षित रखते हुए उन्होंने अपना नाम सार्थक किया --
---"" प्रतिहार राजवंश "" ---
-- The door keepers of India --
-- सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार --
(836-885) A.D.
क्षत्रिय प्रतिहार वंश के वाराहवतार
महाराजधिराज परम्भटारक सम्राट
आज हम आप सभी भाइयों को महान क्षत्रिय
(राजपूत) सम्राट मिहिर भोज की जीवनी के
बारे में इस पोस्ट के द्वारा बताएँगे ।
प्रतिहार एक ऐसा वंश है जिसकी उत्पत्ति पर कई
महान इतिहासकारों ने शोध किए जिनमे से कुछ
अंग्रेज भी थे और वे अपनी सीमित मानसिक
क्षमताओं तथा भारतीय समाज के ढांचे को न
समझने के कारण इस वंश की उतपत्ति पर कई तरह के
विरोधाभास उतपन्न कर गए।
प्रतिहार एक शुद्ध क्षत्रिय वंश है जिसने गुर्जरा
देश से गुज्जरों को खदेड़ने व राज करने के कारण
गुर्जरा सम्राट की भी उपाधि पाई। आये
जानिए प्रतिहार वंश और सम्राट मिहिर भोज
को।
===========सम्राट मिहिर भोज
==============
सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार अथवा परिहार
वंश के क्षत्रिय थे। मनुस्मृति में प्रतिहार,
प्रतीहार, परिहार तीनों शब्दों का प्रयोग
हुआ हैं। परिहार एक तरह से क्षत्रिय शब्द का
पर्यायवाची है। क्षत्रिय वंश की इस शाखा के
मूल पुरूष भगवान राम के भाई लक्ष्मण माने जाते
हैं। लक्ष्मण का उपनाम, प्रतिहार, होने के कारण
उनके वंशज प्रतिहार, कालांतर में परिहार
कहलाएं। कुछ जगहों पर इन्हें अग्निवंशी बताया
गया है, पर ये मूलतः सूर्यवंशी हैं। पृथ्वीराज
विजय, हरकेलि नाटक, ललित विग्रह नाटक,
हम्मीर महाकाव्य पर्व (एक) मिहिर भोज की
ग्वालियर प्रशस्ति में परिहार वंश को सूर्यवंशी
ही लिखा गया है। लक्ष्मण के पुत्र अंगद जो कि
कारापथ (राजस्थान एवं पंजाब) के शासक थे,
उन्ही के वंशज परिहार है। इस वंश की 126वीं
पीढ़ी में हरिश्चन्द्र का उल्लेख मिलता है। इनकी
दूसरी क्षत्रिय पत्नी भद्रा से चार पुत्र थे।
जिन्होंने कुछ धनसंचय और एक सेना का संगठन कर
अपने पूर्वजों का राज्य माडव्यपुर को जीत
लिया और मंडोर राज्य का निर्माण किया,
जिसका राजा रज्जिल बना।इसी का पौत्र
नागभट्ट था, जो अदम्य साहसी,
महात्वाकांक्षी और असाधारण योद्धा था।
इस वंश में आगे चलकर कक्कुक राजा हुआ, जिसका
राज्य पश्चिम भारत में सबल रूप से उभरकर सामने
आया। पर इस वंश में प्रथम उल्लेखनीय राजा
नागभट्ट प्रथम है, जिसका राज्यकाल 730 से 756
माना जाता है। उसने जालौर को अपनी
राजधानी बनाकर एक शक्तिशाली परिहार
राज्य की नींव डाली। इसी समय अरबों ने सिंध
प्रांत जीत लिया और मालवा और गुर्जर
राज्यों पर आक्रमण कर दिया। नागभट्ट ने इन्हे
सिर्फ रोका ही नहीं, इनके हाथ से सैंनधन,
सुराष्ट्र, उज्जैन, मालवा भड़ौच आदि राज्यों
को मुक्त करा लिया। 750 में अरबों ने पुनः
संगठित होकर भारत पर हमला किया और भारत
की पश्चिमी सीमा पर त्राहि-त्राहि मचा
दी। लेकिन नागभट्ट कुद्ध्र होकर गया और तीन
हजार से ऊपर डाकुओं को मौत के घाट उतार
दिया जिससे देश ने राहत की सांस ली। इसके
बाद इसका पौत्र वत्सराज (775 से 800)
उल्लेखनीय है, जिसने परिहार साम्राज्य का
विस्तार किया। उज्जैन के शासन भण्डि को
पराजित कर उसे परिहार साम्राज्य की
राजधानी बनाया।उस समय भारत में तीन
महाशक्तियां अस्तित्व में थी। परिहार
साम्राज्य-उज्जैन राजा वत्सराज, 2 पाल
साम्राज्य-गौड़ बंगाल राजा धर्मपाल, 3
राष्ट्रकूट साम्राज्य-दक्षिण भारत राजा
धु्रव। अंततः वत्सराज ने पाल धर्मपाल पर आक्रमण
कर दिया और भयानक युद्ध में उसे पराजित कर
अपनी अधीनता स्वीकार करने को विवश
किया। लेकिन ई. 800 में धु्रव और धर्मपाल की
संयुक्त सेना ने वत्सराज को पराजित कर दिया
और उज्जैन एवं उसकी उपराजधानी कन्नौज पर
पालों का अधिकार हो गया। लेकिन उसके पुत्र
नागभट्ट द्वितीय ने उज्जैन को फिर बसाया।
उसने कन्नौज पर आक्रमण उसे पालों से छीन
लिया और कन्नौज को अपनी प्रमुख राजधानी
बनाया। उसने 820 से 825-826 तक दस भयावाह
युद्ध किए और संपूर्ण उत्तरी भारत पर अधिकार
कर लिया। इसने यवनों, तुर्कों को भारत में पैर
नहीं जमाने दिया। नागभट्ट का समय उत्तम
शासन के लिए प्रसिद्ध है। इसने 120 जलाशयों
का निर्माण कराया-लंबी सड़के बनवाई। अजमेर
का सरोवर उसी की कृति है, जो आज पुष्कर
तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। यहां तक कि पूर्व
काल में राजपूत योद्धा पुष्पक सरोवर पर वीर
पूजा के रूप में नाहड़ राय नागभट्ट की पूजा कर
युद्ध के लिए प्रस्थान करते थे। उसकी उपाधि
‘‘परम भट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर थी।
नागभट्ट के पुत्र रामभद्र ने साम्राज्य सुरक्षित
रखा। इनके पश्चात् इनका पुत्र इतिहास प्रसिद्ध
मिहिर भोज साम्राट बना, जिसका
शासनकाल 836 से 885 माना जाता है।
सिंहासन पर बैठते ही भोज ने सर्वप्रथम कन्नौज
राज्य की व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त किया,
प्रजा पर अत्याचार करने वाले सामंतों और
रिश्वत खाने वाले कामचोर कर्मचारियों को
कठोर रूप से दण्डित किया। व्यापार और कृषि
कार्य को इतनी सुविधाएं प्रदान की गई कि
सारा साम्राज्य धनधान्य से लहलहा उठा।
भोज ने प्रतिहार साम्राज्य को धन, वैभव से
चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया। अपने उत्कर्ष काल में उसे
सम्राट मिहिर भोज की उपाधि मिली थी।
अनेक काव्यों एवं इतिहास में उसे सम्राट भोज,
भोजराज, वाराहवतार, परम भट्टारक,
महाराजाधिराज आदि विशेषणों से वर्णित
किया गया है।
इतने विशाल और विस्तृत साम्राज्य का प्रबंध
अकेले सुदूर कन्नौज से कठिन हो रहा था। अस्तु
भोज ने साम्राज्य को चार भागो में बांटकर
चार उप राजधानियां बनाई। कन्नौज- मुख्य
राजधानी, उज्जैन और मंडोर को उप
राजधानियां तथा ग्वालियर को सह
राजधानी बनाया। प्रतिहारों का नागभट्ट
के समय से ही एक राज्यकुल संघ था, जिसमें कई
राजपूत राजें शामिल थे। पर मिहिर भोज के समय
बुदेलखण्ड और कांलिजर मण्डल पर चंदलों ने
अधिकार जमा रखा था। भोज का प्रस्ताव
था कि चंदेल भी राज्य संघ के सदस्य बने, जिससे
सम्पूर्ण उत्तरी पश्चिमी भारत एक विशाल
शिला के रूप में खड़ा हो जाए और यवन, तुर्क, हूण
आदि शत्रुओं को भारत प्रवेश से पूरी तरह रोका
जा सके। पर चंदेल इसके लिए तैयार नहीं हुए। अंततः
मिहिर भोज ने कालिंजर पर आक्रमण कर दिया
और इस क्षेत्र के चंदेलों को हरा दिया।
मिहिर भोज परम देश भक्त था-उसने प्रण किया
था कि उसके जीते जी कोई विदेशी शत्रु भारत
भूमि को अपावन न कर पायेगा। इसके लिए उसने
सबसे पहले आक्रमण कर उन राजाओं को ठीक
किया जो कायरतावश यवनों को अपने राज्य में
शरण लेने देते थे। इस प्रकार राजपूताना से कन्नौज
तक एक शक्तिशाली राज्य के निर्माण का श्रेय
मिहिर भोज को जाता है। मिहिर भोज के
शासन काल में कन्नौज साम्राज्य की सीमा
रमाशंकर त्रिपाठी की पुस्तक हिस्ट्री ऑफ
कन्नौज, पेज 246 में, उत्तर पश्चिम् में सतलज नदी
तक, उत्तर में हिमालय की तराई, पूर्व में बंगाल
तक, दक्षिण पूर्व में बुंदेलखण्ड और वत्स राज्य तक,
दक्षिण पश्चिम में सौराष्ट्र और राजपूतानें के
अधिक भाग तक विस्तृत थी। सुलेमान तवारीखे
अरब में लिखा है, कि भोज अरब लोगों का सभी
अन्य राजाओं की अपेक्षा अधिक घोर शत्रु है।
सुलेमान आगे यह भी लिखता है कि हिन्दोस्ता
की सुगठित और विशालतम सेना भोज की थी-
इसमें हजारों हाथी, हजारों घोड़े और हजारों
रथ थे। भोज के राज्य में सोना और चांदी सड़कों
पर विखरा था-किन्तु चोरी-डकैती का भय
किसी को नहीं था।
भोज का तृतीय अभियान पाल राजाओ के
विरूद्ध हुआ। इस समय बंगाल में पाल वंश का
शासक देवपाल था। वह वीर और यशस्वी था-
उसने अचानक कालिंजर पर आक्रमण कर दिया और
कालिंजर में तैनात भोज की सेना को परास्त कर
किले पर कब्जा कर लिया। भोज ने खबर पाते ही
देवपाल को सबक सिखाने का निश्चय किया।
कन्नौज और ग्वालियर दोनों सेनाओं को
इकट्ठा होने का आदेश दिया और चैत्र मास सन्
850 ई. में देवपाल पर आक्रमण कर दिया। इससे
देवपाल की सेना न केवल पराजित होकर बुरी
तरह भागी, बल्कि वह मारा भी गया। मिहिर
भोज ने बिहार समेत सारा क्षेत्र कन्नौज में
मिला लिया। भोज को पूर्व में उलझा देख
पश्चिम भारत में पुनः उपद्रव और षड्यंत्र शुरू हो
गये। इस अव्यवस्था का लाभ अरब डकैतों ने
उठाया और वे सिंध पार पंजाब तक लूट पाट करने
लगे। भोज ने अब इस ओर प्रयाण किया। उसने सबसे
पहले पंजाब के उत्तरी भाग पर राज कर रहे
थक्कियक को पराजित किया, उसका राज्य
और 2000 घोड़े छीन लिए। इसके बाद
गूजरावाला के विश्वासघाती सुल्तान अलखान
को बंदी बनाया- उसके संरक्षण में पल रहे 3000
तुर्की और हूण डाकुओं को बंदी बनाकर खूंखार
और हत्या के लिए अपराधी पाये गए पिशाचों
को मृत्यु दण्ड दे दिया। तदनन्तर टक्क देश के शंकर
वर्मा को हराकर सम्पूर्ण पश्चिमी भारत को
कन्नौज साम्राज्य का अंग बना लिया। चतुर्थ
अभियान में भोज ने परिहार राज्य के मूल राज्य
मण्डोर की ओर ध्यान दिया। त्रर्वाण,बल्ल और
माण्ड के राजाओं के सम्मिलित ससैन्य बल ने
मण्डोर पर आक्रमण कर दिया। मण्डोर का
राजा बाउक पराजित ही होने वाला था कि
भोज ससैन्य सहायता के लिए पहुंच गया। उसने
तीनों राजाओं को बंदी बना लिया और
उनका राज्य कन्नौज में मिला लिया। इसी
अभियान में उसने गुर्जरता, लाट, पर्वत आदि
राज्यों को भी समाप्त कर साम्राज्य का अंग
बना लिया।
भोज के शासन ग्रहण करने के पूर्व राष्ट्रकूटों ने
मध्य भारत और राजस्थान को बहुत सा भाग
दबा लिया था। राष्ट्रकूट सम्राट अमोघवर्ष,
भोज को परास्त करने के लिए कटिबद्ध था। 778
में नर्मदा नदी के किनारे अवन्ति में राष्ट्रकूट
सम्राट अमोधवर्ष और मान्यरखेट के राजा कृष्ण
द्वितीय दोनो की सम्मिलित सेना ने भोज
का सामना किया। यह अत्यन्त भयंकर युद्ध था।
22 दिनों के घोर संग्राम के बाद अमोघवर्ष पीछे
हट गया। इतिहासकारों का मानना है कि
छठी सदी में हर्षवर्धन के बाद उसके स्तर का पूरे
राजपूत युग में कोई राजा नहीं हुआ। लेकिन यह
सभी को पता है कि हर्षवर्धन का जब एक तरह से
दक्षिण भारत के सम्राट पुलकेशिन द्वितीय से
मुकाबला हुआ था तो हर्षवर्धन को पीछे हटना
पड़ा था। भोज के समय में राष्ट्रकूट भी दक्षिण
भारत के एक तरह से एकछत्र शासक थे। परन्तु यहां
पर राष्ट्रकूट सम्राट अमोधवर्ष को पीछे हटना
पड़ा।
स्कंद पुराण के वस्त्रापथ महात्म्य में लिखा है
जिस प्रकार भगवान विष्णु ने वाराह रूप धारण
कर हिरण्याक्ष आदि दुष्ट राक्षसों से पृथ्वी
का उद्धार किया था, उसी प्रकार विष्णु के
वंशज मिहिर भोज ने देशी आतताइयों, यवन
तथा तुर्क राक्षसों को मार भगाया और भारत
भूमि का संरक्षण किया- उसे इसीलिए युग ने
आदि वाराह महाराजाधिराज की उपाधि से
विभूषित किया था। वस्तुतः मिहिर भोज
सिर्फ प्रतिहार वंश का ही नहीं वरन हर्षवर्धन के
बाद और भारत में मुस्लिम साम्राज्य की
स्थापना के पूर्व पूरे राजपूत काल का सर्वाधिक
प्रतिभाशाली सम्राट और चमकदार सितारा
था। सुलेमान ने लिखा है-इस राजा के पास बहुत
बडी सेना है और किसी दूसरे राजा के पास
वैसी घुड़सवार सेना नहीं है। भारतवर्ष के
राजाओं में उससे बढ़कर अरबों का कोई शत्रु नहीं
है। उसके आदिवाराह विरूद् से ही प्रतीत होता
है कि वाराहवतार की मातृभूमि को अरबों से
मुक्त कराना अपना कर्तव्य समझता था। उसके
साम्राज्य में वर्तमान उत्तर प्रदेश, मध्य भारत,
ग्वालियर, मालवा, सौराष्ट्र राजस्थान
बिहार, कलिंग शामिल था। यह हिमालय की
तराई से लेकर बुदेलखण्ड तक तथा पूर्व में पाल राज्य
से लेकर पश्चिम में गुजरात तक फैला था। अपनी
महान राजनीतिक तथा सैनिक योजनाओं से
उसने सदैव इस साम्राज्य की रक्षा की।
भोज का शासनकाल पूरे मध्य युग में अद्धितीय
माना जाता है। इस अवधि में देश का चतुर्मुखी
विकास हुआ। साहित्य सृजन, शांति व्यवस्था
स्थापत्य, शिल्प, व्यापार और शासन प्रबंध की
दृष्टि से यह श्रेष्ठतम माना गया है। भयानक
युद्धों के बीच किसान मस्ती से अपना खेत
जोतता था, और वणिक अपनी विपणन मात्रा
पर निश्चिंत चला जाता था।
मिहिर भोज को गणतंत्र शासन पद्धति का जनक
भी माना जाता है, उसने अपने साम्राज्य को
आठ गणराज्यों में विभक्त कर दिया था। प्रत्येक
राज्य का अधिपति राजा कहलाता था, जिसे
आज के मुख्यमंत्री की तरह आंतरिक शासन
व्यवस्था में पूरा अधिकार था। परिषद का
प्रधान सम्राट होता था और शेष राजा मंत्री
के रूप में कार्य करते थे। वह जितना वीर था,
उतना ही दयाल भी था, घोर अपराध करने
वालों को भी उसने कभी मृत्यदण्ड नहीं दिया,
किन्तु दस्युओं, डकैतों, हूणो, तुर्कों अरबों, का
देश का शत्रु मानने की उसकी धारणा स्पष्ट थी
और इन्हे क्षमा करने की भूल कभी नहीं की और न
ही इन्हें देश में घुसने ही दिया। उसने मध्य भारत
को जहां चंबल के डाकुओं से मुक्त कराया, वही
उत्तर, पश्चिमी भारत को विदेशियों से मुक्त
कराया। सच्चाई यही है कि जब तक परिहार
साम्राज्य मजबूत रहा, देश की स्वतंत्रता पर आंँच
नहीं आई।
मिहिरभोज की यह दूरदर्शिता ही थी कि
उसने राज्यकुल संघ बना रखा था। जिसका
परिणाम था मिहीरभोज का राज्य अत्यधिक
विशाल था और यह महेन्द्रपाल और महिपाल के
शासनकाल ई. सन् 931 तक कायम रहा। इस दौर में
प्रतिहार राज्य की सीमाएं गुप्त साम्राज्य से
भी ज्यादा बड़ी थी। इस साम्राज्य की
तुलना पूर्व में मात्र मौर्य साम्राज्य और
परवर्ती काल में मुगल साम्राज्य से ही की जा
सकती है। वस्तुतः इतिहास का पुर्नमूल्यांकन कर
यह बताने की जरूरत है कि उस पूर्व मध्यकाल दौर
के हमारे महानायक सम्राट मिहिर भोज ही थे।
ऐसे महान सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार को
हमारा शत शत नमन_/\_
---प्रतिहार राजपूतो की वर्तमान
स्थिति---
भले ही यह विशाल प्रतिहार राजपूत
साम्राज्य बाद में खण्डित हो गया हो लेकिन
इस वंश के वंशज राजपूत आज भी इसी साम्राज्य
की परिधि में मिलते हैँ।
उत्तरी गुजरात और दक्षिणी राजस्थान में
भीनमाल के पास जहाँ प्रतिहार वंश की शुरुआत
हुई, आज भी वहॉ प्रतिहार राजपूत पड़िहार
आदि नामो से अच्छी संख्या में मिलते हैँ।
प्रतिहारों की द्वितीय राजधानी मारवाड़
में मंडोर रही। जहाँ आज भी प्रतिहार राजपूतो
की इन्दा शाखा बड़ी संख्या में मिलती है।
राठोड़ो के मारवाड़ आगमन से पहले इस क्षेत्र पर
प्रतिहारों की इसी शाखा का शासन था
जिनसे राठोड़ो ने जीत कर जोधपुर को अपनी
राजधानी बनाया। 17वीं सदी में भी जब कुछ
समय के लिये मुगलो से लड़ते हुए राठोड़ो को
जोधपुर छोड़ना पड़ गया था तो स्थानीय
इन्दा प्रतिहार राजपूतो ने अपनी पुरातन
राजधानी मंडोर पर कब्जा कर लिया था।
इसके अलावा प्रतिहारों की अन्य राजधानी
ग्वालियर और कन्नौज के बीच में प्रतिहार
राजपूत परिहार के नाम से बड़ी संख्या में मिलते
हैँ।
मध्यप्रदेश में भी परिहारों की अच्छी संख्या है।
यहाँ परिहारों की एक राजशाही रियासत नागौद आज
भी है जो मिहिरभोज के सीधे वंशज हैँ और उनके
पास इसके प्रमाण भी हैँ।
प्रतिहारों की एक शाखा राघवो का राज्य
वर्तमान में उत्तर राजस्थान के अलवर, सीकर,
दौसा में था जिन्हें कछवाहों ने हराया। आज
भी इस क्षेत्र में राघवो की खडाड शाखा के
राजपूत अच्छी संख्या में हैँ। इन्ही की एक शाखा
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर, अलीगढ़,
रोहिलखण्ड और दक्षिणी हरयाणा के गुडगाँव
आदि क्षेत्र में बहुसंख्या में है। एक और शाखा
मढाढ के नाम से उत्तर हरयाणा में मिलती है।
राजस्थान के सीकर से ही राघवो की एक
शाखा सिकरवार निकली है जिसका फतेहपुर
सिकरी पर राज था और जो आज उत्तर प्रदेश,
बिहार और मध्यप्रदेश में विशाल संख्या में मिलते
हैँ। विश्व का सबसे बड़ा गाँव उत्तर प्रदेश के
गाजीपुर जिले का गहमर सिकरवार राजपूतो
का ही है।
उत्तर प्रदेश में सरयूपारीण क्षेत्र में भी प्रतिहार
राजपूतो की विशाल कलहंस शाखा मिलती है।
इनके अलावा संपूर्ण मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश,
बिहार और उत्तरी महाराष्ट्र आदि में(जहाँ
जहाँ प्रतिहार साम्राज्य फैला था) अच्छी
संख्या में ।।
जय नागभट्ट परिहार ।।
जय मिहिर भोज परिहार ।।
जय माँ भवानी ।।
मेदनी राय खंगार के जीवन परिचय दीजिए,
ReplyDeleteइनके माता-पिता व किस राज्य के शासक थे।
9893400926पर सम्पर्क कर सकते हैं।
प्रतिहार मेदनी राय के पुर्वजो ओर माता पिता कौन थे,
ReplyDeleteकहा इनका जन्म हुआ,
मेदिनी ही नाम क्यों रखा गया,
अगर विषयों पर उत्तर हो तो ,
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ये विषय महाराजा मेदनी राय के लिए अति महत्वपूर्ण है,
में नहीं चाहता एक महान योद्धा का इतिहास बिना जीवन परिचय के लिखा जाए।
धन्यवाद।
विजय सिंह परिहार,
9893400926