== = क्षत्रिय सम्राट वत्सराज प्रतिहार ===
आज हम आप सभी भाइयों को महान क्षत्रिय
(राजपूत) सम्राट वत्सराज प्रतिहार की जीवनी के बारे में इस पोस्ट के द्वारा बताएँगे ।
प्रतिहार एक ऐसा वंश है जिसकी उत्पत्ति पर कई महान इतिहासकारों ने शोध किए जिनमे से कुछ अंग्रेज भी थे और वे अपनी सीमित मानसिक क्षमताओं तथा भारतीय समाज के ढांचे को न समझने के कारण इस वंश की उतपत्ति पर कई तरह के विरोधाभास उतपन्न कर गए।
प्रतिहार एक शुद्ध क्षत्रिय वंश है जिसने गुर्जरा
देश से गुज्जरों को खदेड़ने व राज करने के कारण गुर्जरा सम्राट की भी उपाधि पाई। आये
जानिए प्रतिहार वंश और सम्राट वत्सराज
को।
= = = सम्राट वत्सराज प्रतिहार ===
सम्राट वत्सराज (775 से 800 ईस्वीं तक) प्रतिहार\परिहार राजवंश का संस्थापक एवं वह देवराज एवं भूमिका देवी का प्रबल प्रतापी पुत्र थे । उसने शास्त्र सूत्र ग्रहण करते ही अपने पूर्वज सम्राट नागभट्ट की भांति राज्य की चारों दिशाओं में वृद्धि करने का निश्चय किया । उस समय उज्जैन में श्रीहर्ष का ममेरा भाई भण्डि शासन कर रहा था, वह बार बार जालौर राज्य को आधीनता में लेने का पैगाम भेज रहा था। देवराज प्रतिहार उससे डर रहा था। वत्सराज ने शासन ग्रहण करते ही उज्जैन पर आक्रमण कर दिया, राजा भण्डि को कैद कर लिया और उसके संपूर्ण परिवार को राज्य से बाहर कर दिया। वत्सराज ने ही प्रतिहार साम्राज्य की राजधानी उज्जैन को बनाया।
ख्यानादि भण्डिकुलां मदोत्कट काटि प्रकार लुलंघतो।
यः साम्राज्य मरधाज्य कारमुक सखां सख्य हहादग्रहीत।।
मण्डौर राज्य के कमजोर हो जाने के बाद भारत में तीन महाशक्तियां अस्तित्व में थीं।
प्रतिहार साम्राज्य - उज्जैन, राजा वत्सराज
पाल साम्राज्य - गौड़, राजा धर्मपाल
राष्ट्रकूट साम्राज्य - दक्षिण भारत राजा धु्रव
वत्सराज ने सम्मुख साम्राज्य के लिए पाल और राष्ट्रकूट दोनों ही समान खतरे थे। दोनों की निगाहें उज्जैन पर लगी थी । वत्सराज भी अवसर व साधन की प्रतिक्षा कर रहा था। भण्डि पर विजय प्राप्त होने से ववत्सराज को पर्याप्त धन युद्ध सामग्री और सैन्य बल पप्राप्त हो गया। इससे संपन्न होकर प्रतिहार वंश के प्रमुख शत्रु धर्मपाल पर वत्सराज ने ही आक्रमण कर दिया। गंगा यमुना के दोआब मे लडा गया युद्ध अति भयानक था, अंततः धर्मपाल पीछे हटने लगा, वत्सराज ने उसे बंगाल की खाडी तक खदेडा, यहां पर पुनः एक निर्णायक युद्ध हुआ। इस युद्ध में धर्मपाल ने ही संधि प्रस्ताव भेजा और उज्जैन साम्राज्य की आधीनता स्वीकार कर ली। गौड राज्य की विजय से सम्राट वत्सराज प्रतिहार का हौसला इतना बुलंद हुआ कि धर्मपाल ने और ध्रुव(राष्ट्रकूट) ने एक - एक राजछत्र और राज्यलक्ष्मी उसे भेंट कर दिया।
"हैसा स्वीकृत गौड़ राज्य कमलां मनतं प्रवेश्या विरात"
सन् 780 से 781 की महान विजय के समानांतर सन् 798 अर्थात 18 वर्ष तक उज्जैन साम्राज्य का अकंटक यह काल न केवल राजस्थान वरन संपूर्ण उत्तरी भारत का वैभव काल था। प्रशासन की स्वच्छता न्याय की आस्था और कृषि व्यापार की संपन्नता ने उज्जैन को भारत का मुकुट और वत्सराज प्रतिहार को राजाधिराज का पद दिया।।
Pratihara / Pratihar / Parihar Rulers of india
जय माँ भवानी।।
जय क्षात्र धर्म।।
नागौद रियासत।।
आज हम आप सभी भाइयों को महान क्षत्रिय
(राजपूत) सम्राट वत्सराज प्रतिहार की जीवनी के बारे में इस पोस्ट के द्वारा बताएँगे ।
प्रतिहार एक ऐसा वंश है जिसकी उत्पत्ति पर कई महान इतिहासकारों ने शोध किए जिनमे से कुछ अंग्रेज भी थे और वे अपनी सीमित मानसिक क्षमताओं तथा भारतीय समाज के ढांचे को न समझने के कारण इस वंश की उतपत्ति पर कई तरह के विरोधाभास उतपन्न कर गए।
प्रतिहार एक शुद्ध क्षत्रिय वंश है जिसने गुर्जरा
देश से गुज्जरों को खदेड़ने व राज करने के कारण गुर्जरा सम्राट की भी उपाधि पाई। आये
जानिए प्रतिहार वंश और सम्राट वत्सराज
को।
= = = सम्राट वत्सराज प्रतिहार ===
सम्राट वत्सराज (775 से 800 ईस्वीं तक) प्रतिहार\परिहार राजवंश का संस्थापक एवं वह देवराज एवं भूमिका देवी का प्रबल प्रतापी पुत्र थे । उसने शास्त्र सूत्र ग्रहण करते ही अपने पूर्वज सम्राट नागभट्ट की भांति राज्य की चारों दिशाओं में वृद्धि करने का निश्चय किया । उस समय उज्जैन में श्रीहर्ष का ममेरा भाई भण्डि शासन कर रहा था, वह बार बार जालौर राज्य को आधीनता में लेने का पैगाम भेज रहा था। देवराज प्रतिहार उससे डर रहा था। वत्सराज ने शासन ग्रहण करते ही उज्जैन पर आक्रमण कर दिया, राजा भण्डि को कैद कर लिया और उसके संपूर्ण परिवार को राज्य से बाहर कर दिया। वत्सराज ने ही प्रतिहार साम्राज्य की राजधानी उज्जैन को बनाया।
ख्यानादि भण्डिकुलां मदोत्कट काटि प्रकार लुलंघतो।
यः साम्राज्य मरधाज्य कारमुक सखां सख्य हहादग्रहीत।।
मण्डौर राज्य के कमजोर हो जाने के बाद भारत में तीन महाशक्तियां अस्तित्व में थीं।
प्रतिहार साम्राज्य - उज्जैन, राजा वत्सराज
पाल साम्राज्य - गौड़, राजा धर्मपाल
राष्ट्रकूट साम्राज्य - दक्षिण भारत राजा धु्रव
वत्सराज ने सम्मुख साम्राज्य के लिए पाल और राष्ट्रकूट दोनों ही समान खतरे थे। दोनों की निगाहें उज्जैन पर लगी थी । वत्सराज भी अवसर व साधन की प्रतिक्षा कर रहा था। भण्डि पर विजय प्राप्त होने से ववत्सराज को पर्याप्त धन युद्ध सामग्री और सैन्य बल पप्राप्त हो गया। इससे संपन्न होकर प्रतिहार वंश के प्रमुख शत्रु धर्मपाल पर वत्सराज ने ही आक्रमण कर दिया। गंगा यमुना के दोआब मे लडा गया युद्ध अति भयानक था, अंततः धर्मपाल पीछे हटने लगा, वत्सराज ने उसे बंगाल की खाडी तक खदेडा, यहां पर पुनः एक निर्णायक युद्ध हुआ। इस युद्ध में धर्मपाल ने ही संधि प्रस्ताव भेजा और उज्जैन साम्राज्य की आधीनता स्वीकार कर ली। गौड राज्य की विजय से सम्राट वत्सराज प्रतिहार का हौसला इतना बुलंद हुआ कि धर्मपाल ने और ध्रुव(राष्ट्रकूट) ने एक - एक राजछत्र और राज्यलक्ष्मी उसे भेंट कर दिया।
"हैसा स्वीकृत गौड़ राज्य कमलां मनतं प्रवेश्या विरात"
सन् 780 से 781 की महान विजय के समानांतर सन् 798 अर्थात 18 वर्ष तक उज्जैन साम्राज्य का अकंटक यह काल न केवल राजस्थान वरन संपूर्ण उत्तरी भारत का वैभव काल था। प्रशासन की स्वच्छता न्याय की आस्था और कृषि व्यापार की संपन्नता ने उज्जैन को भारत का मुकुट और वत्सराज प्रतिहार को राजाधिराज का पद दिया।।
Pratihara / Pratihar / Parihar Rulers of india
जय माँ भवानी।।
जय क्षात्र धर्म।।
नागौद रियासत।।
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