मित्रों आज की इस पोस्ट के द्वारा हम आपको मण्डौर प्रतिहार वंश के संस्थापक राजा हरिश्चंद्र प्रतिहार जी के बारे में जानकारी देंगे।।
मण्डौर वर्तमान में राजस्थान के जोधपुर जिले मे है यहाँ राठौड़ राजपूतों के आगमन के पहले यह स्थान कभी प्रतिहार राजपूतों के अधीन था और यह प्रतिहारों का सबसे प्राचीन राज्य भी था यही से प्रतिहार/परिहार राजपूत वंशजो की शाखाएँ निकलकर विस्तृत हुई जिनमे जालौर, कन्नौज, उज्जैन, ग्वालियर नागौद, अलीपुरा मुख्य रुप से है यहां आज भी प्रतिहार राजपूत अच्छी संख्या में आबाद है।
550 ईस्वीं के लगभग जोधपुर अंचल में हरिश्चन्द्र प्रतिहार द्वारा स्थापित यहां प्रतिहारों की शाखा है। इसकी राजधानी माण्डव्यपुर थी। भीनमाल जोधपुर तथा घटियाला अभिलेखों द्वारा इस शाखा के ग्यारह शासकों की जानकारी मिली है। राजा विप्र हरिश्चंद्र वेदशास्त्र पारंगत प्रतिहार/परिहार वंश के गुरु अर्थात पूर्वज थे। राजशेखर महेन्द्रपाल को 'रघुकुलतिलक' और रघुग्रामणी तथा महिपाल रघुवंशमुक्तामणि जैसे विशेषण देता है। श्री ए.के. व्यास का कथन है कि "विप्र" शब्द क्षत्रिय राजाओं के लिए रीषि अर्थ में प्रयोग किया गया है। यह क्षत्रिय वर्ण का था इसी वंश का इतिहास बाद के अभिलेखों में बाउक के जोधपुर अभिलेख और ककुक्क के अभिलेखों से प्राप्त होता है। इनमें दी गई वंशावलियों में अंतिम राजाओं में अवश्य अंतर है, परंतु वंशावली समान है
राजा हरिश्चंद्र बहुत ही योग्य और वीर शासक था इसने लगभग 550 ईस्वीं के लगभग राजपूताना जोधपुर के पास के क्षेत्र पर अपना अधिकार स्थापित किया और मण्डौर को अपनी राजधानी बनाया। बाउक के जोधपुर अभिलेख के अनुसार राजा हरिश्चंद्र ने मण्डौर नामक स्थान पर शत्रुओं को आतंकित करने वाला दुर्ग भी बनवाया। राजा हरिश्चंद्र की दो पत्नियां थी पहली बडी पत्नी से सहचरी देवी से चार पुत्र भोजभट्ट, कक्क, रज्जिल, दद्द उतपन्न हुए। इन क्षत्रिय कुमारों ने मण्डौर का दुर्ग जीतकर उसकी प्राचीरों को ऊँचा किया।
घटियाला अभिलेख से ज्ञात होता है कि प्रतिहार वंश की परंपरा तीसरे भाई रज्जिल प्रतिहार से प्रारंभ हुई। इस प्रकार प्रतिहार सत्ता का प्रारम्भ "मण्डौर - मेढ़ता " से हुआ। संभवतः रज्जिल के बाद नगभट्ट प्रतिहार (600 - 625) हुआ।
नगभट्ट प्रतिहार ने मेदांतपुर को अपनी राजधानी बनाया।उसके पुत्र तट और भोज दोनो क्रमशः 675 ईस्वीं तक राज्य किया। तट के पराक्रमी पुत्र यशोवर्धन ने शालवंशी प्रथुवर्धन को पराजित किया जिससे वह पूर्व में हार गया था।।
यशोवर्धन के बाद कंदुक गद्दी पर बैठा। कंदुक ने उतराधिकारी शीलुक ने भट्टी देवराज को परास्त किया। शीलुक के ही शासनकाल में अरब आक्रमणकारी जुनैद आया था। उसके पश्चात (750 - 825) ईस्वीं के मध्य क्रमशः जोट भिलदित्य और कक्क इस वंश में हुए। कक्क ने कन्नौज मालवा शाखा के शासक नागभट्ट द्वितीय के साथ मिलकर गौड़ नरेश को पराजित किया। 837 ईस्वीं के जोधपुर अभिलेख में प्रतिहार वंश से संबंधित विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई। बाउक प्रतिहार के बाद उसका सौतेला भाई कक्कुक गद्दी पर बैठा। प्रतिहार राजपूतों के उत्तर भारत में कई राज्य थे। जिनमें अलग अलग प्रतिहार नरेश शासन करत थे। लेकिन वह सभी मण्डौर से ही संबंधित थे। प्रतिहारों की भारत में ज्येष्ठ गद्दी एवं प्राचीन राज्य मण्डौर है। क्योंकि जितने भी प्रतिहार राजपूत है भारत में उन सभी के पूर्वज मण्डौर के ही वंशज है। मण्डौर के बाद भारत मे प्रतिहार राजपूतों की सबसे बडी रियासत नागौद बरमै राज्य है जो 1950 तक काबिज रही यहां आज भी 20 से 25 हजार प्रतिहार निवास करते हैं।
प्रतिहार वंश के महान राजा
(1) राजा हरिश्चंद्र प्रतिहार
(2) राजा नागभट्ट प्रतिहार
(3) राजा यशोवर्धन प्रतिहार
(4) राजा वत्सराज प्रतिहार
(5) राजा नागभट्ट द्वितीय प्रतिहार
(6) राजा मिहिर भोज प्रतिहार
(7) राजा महेन्द्रपाल प्रतिहार
(8) राजा महिपाल प्रतिहार
(9) राजा विनायकपाल प्रतिहार
(10) राजा महेन्द्रपाल द्वितीय प्रतिहार
(11) राजा विजयपाल प्रतिहार
(12) राजा राज्यपाल प्रतिहार
(13) राजा त्रिलोचनपाल प्रतिहार
(14) राजा यशपाल प्रतिहार
(15) राजा वीरराजदेव प्रतिहार (नागौद राज्य के संस्थापक )
भारत के शौर्य एवं बलिदान की भावभूमि वाले इतिहास में क्षत्रियों का प्रतिहार वंश मण्डौर, उज्जैन, ग्वालियर, कन्नौज, नागौद आदि को एक के बाद एक अपनी शक्ति का केंद्र बनाकर सदियों तक पूरे उत्तरी भारत पर शासन करता रहा खासकर मारवाड़ मे सीहाजी के पाली प्रवेश से पूर्व तथा प्रवेश के बाद तक मण्डौर पर प्रतिहारों का एकछत्र शासन रहा है। वि. सं. 1300 (ईस्वी सन 1243) पूर्व तक प्रतिहार ही मारवाड़ के शासक थे।
प्रतिहारों का इतिहास व शासन कोई एक - दो शताब्दियों का नहीँ होकर सैकड़ो शताब्दियों का है। अतः इनके इतिहास में अंतराल व भ्रांतियाँ आना स्वाभाविक ही है।
प्रतिहार सूर्यवंशी क्षत्रिय है जो कि अयोध्या के नरोत्तम राजा रामचंद्र के अनुज लक्ष्मण के वंशज है। क्योंकि वनवास के काल में लक्ष्मण ने राम और सीता जी के प्रतिहार (द्वारपाल) का कार्य किया था। अतः उन्हें प्रतिहार की उपाधि से विभूषित किया गया था। यह मत मरुनरेश बाउक प्रतिहार के नौवीं सदी के शिलालेखों में भी वर्णित है।
राजा मिहिर भोज की ग्वालियर प्रशस्ति में वि. सं. 900 में प्रतिहार राजपूतों को सुमित्रा पुत्र लक्ष्मण का वंशज बताया गया है।
सौमित्रिस्तिव्रदंड : प्रतिहरण विधेर्य: प्रतिहार आसीत।।
बाउक प्रतिहार के नौवीं शताब्दी के शिलालेखानुसार --
स्वभ्राता रामभद्रस्य प्रतिहायॆ कृतयत:।।
श्री प्रतिहार बडशोययतशचोतिमानुयात।।
मित्रों ऐसे हजारों शिलालेखों और अभिलेखों मे प्रतिहार राजपूतों को सूर्यवंशी क्षत्रिय बताया है। क्योंकि अग्नि और सूर्य एक समान है जिस कारण ही प्रतिहार/परिहार राजपूत अग्निवंशी भी कहलाते है। पर यह मूलतः सूर्यवंशी क्षत्रिय है।
== प्रतिहार क्षत्रिय वंश की शाखाएँ ==
(1) डाभी
(2) बडगुजर (राघव)
(3) मडाढ और खडाढ
(4) इंदा
(5) लल्लुरा / लूलावत
(6) सूरा
(7) रामेटा / रामावत
(8) बुद्धखेलिया
(9) खुखर
(10) सोधया
(11) चंद्र
(13) माहप
(14) धांधिल
(15) सिंधुका
(16) डोरणा
(17) सुवराण
(18) कलाहँस
(19) देवल
(20) खरल
(21) चौनिया
(22) झांगरा
(23) बोथा
(24) चोहिल
(25) फलू
(26) धांधिया
(27) खखढ
(28) सीधकां
(29) कमाष / जेठवा
(30) सिकरवार
नोट : - (1) प्रतिहारों / परिहारों का दामन हमेशा ही उज्जवल रहा है इस क्षत्रिय कौम ने मुगलों के साथ कभी भी वैवाहिक संबंध नहीं जोडे। अपने बुरे समय में भी आन - मान को कायम रखा। इन्होने अपनी तलवार से मलेच्छों और अरबों को काटा है परंतु शर्मनाक संधियां करके अपनी जाति को मलीन नहीं किया।
(2) मित्रों आज कल एक गंभीर समस्या हम प्रतिहार राजपूतों के सामने आ गई है कुछ शूद्र जातियां जिसमें मुख्य रुप से गुज्जर/गुर्जर आजकल सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार जी को गुज्जर घोषित करने मे लगे हैं एवं प्रतिहार वंश को गुज्जर मूल का बता रही है। इन गुज्जरो ने दिल्ली में मिहिर भोज की मूर्तियां स्थापित कर और राष्ट्रीय राजमार्ग का नामकरण कर बेवजह बिना ऐतिहासिक जानकारी इन्हे गुर्जर बता रहे। पर इन्हे ये नही पता है कि मिहिर भोज प्रतिहार के वंशज नागौद राज्य के प्रतिहार राजपूत है मित्रों मिहिर भोज प्रतिहार कन्नौज को देश की राजधानी बनाकर 50 वर्षो तक शासन किया। इनके मृत्यु के बाद कुछ वर्षों तक इनके पुत्र महेन्द्रपाल प्रतिहार ने शासन किया। फिर गजनी के मोहम्मद ने कन्नौज पर आक्रमण कर नगर जलाकर अपने राज्य मिला लिया था महेन्द्रपाल और उनकी छोटी सेना सामना न कर विंध्य क्षेत्र (बुंदेलखण्ड) यहाँ आ गये थे। फिर परिहार दल ने व्यारमा नदी के तट पर भगवान शिव का ध्यान पूजन कर मंदिर का निर्माण किया और एक नये राज्य की स्थापना की जिसका नाम बरमै राज्य रखा। नागौद प्रतिहार वंश की गद्दी आज भी बरमै गद्दी के नाम से जानी जाती है।
(3) मित्रों आज कल प्रतिहार मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ में परिहार के नाम से जाने जाते है एवं राजस्थान के प्रतिहार आजकल पडिहार एवं गुजरात के प्रतिहार लोग पढियार नाम से जाने जाते है।
(4) मित्रों प्रतिहार, परमार, चौहान, सोलंकी ये चारों सूर्यवंशी क्षत्रिय है। अनपढ चारणों और भाटों की वजह से हमे अग्निवंशी बताया गया है।
(5) प्रतिहार वंश शुद्ध क्षत्रिय वंश है। जिसने गुर्जरात्रा प्रदेष में राज्य किया और हूणों के साथ भारत आये गुज्जर चोरों को अपने राज्य से बाहर किया। यही से निकलकर प्रतिहार राजपूतों की ज्येष्ठ शाखा गुर्जर प्रतिहार एवं बडगुजर कहलाई। इसी का फायदा उठाकर गुज्जर आजकल प्रतिहार वंश को गुज्जर मूल का बता रही है। पर इसमें कोई सच्चाई नहीं है। ये बस आरक्षण और थोडी सी समृद्धि मिलने से है। खाली मिहिर भोज मे दाल नही गली तो पूरे प्रतिहार/परिहार वंश को ही गुज्जर घोषित करने मे लगे हैं। खासकर दिल्ली के गुज्जरों को लगता था कि प्रतिहार राजपूत तो अब है नहीं कही क्यों न इनके नाम से ही श्रेष्ठता पाई जाये इन्हें गुज्जर बताकर पर ये मूरख न जाने की उतर और मध्य भारत मे अच्छी संख्या में प्रतिहार और उनकी शाखाएँ निवास करती है।
Pratihara / Pratihar / Parihar Rulers of india
Refrence : -
(1) प्रतिहारों का मूल इतिहास लेखक - देवी सिंह मंडावा
(2) विंध्य क्षेत्र के प्रतिहार वंश का इतिहास लेखक - डा अनुपम सिंह
(3) परिहार वंश का प्रकाश लेखक - मुंशी देवी प्रसाद
(4) नागौद परिचय लेखक - जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी
(5) मण्डौर का इतिहास लेखक - श्री सिंह
जय चामुण्डा देवी।।
नागौद रियासत
मण्डौर वर्तमान में राजस्थान के जोधपुर जिले मे है यहाँ राठौड़ राजपूतों के आगमन के पहले यह स्थान कभी प्रतिहार राजपूतों के अधीन था और यह प्रतिहारों का सबसे प्राचीन राज्य भी था यही से प्रतिहार/परिहार राजपूत वंशजो की शाखाएँ निकलकर विस्तृत हुई जिनमे जालौर, कन्नौज, उज्जैन, ग्वालियर नागौद, अलीपुरा मुख्य रुप से है यहां आज भी प्रतिहार राजपूत अच्छी संख्या में आबाद है।
550 ईस्वीं के लगभग जोधपुर अंचल में हरिश्चन्द्र प्रतिहार द्वारा स्थापित यहां प्रतिहारों की शाखा है। इसकी राजधानी माण्डव्यपुर थी। भीनमाल जोधपुर तथा घटियाला अभिलेखों द्वारा इस शाखा के ग्यारह शासकों की जानकारी मिली है। राजा विप्र हरिश्चंद्र वेदशास्त्र पारंगत प्रतिहार/परिहार वंश के गुरु अर्थात पूर्वज थे। राजशेखर महेन्द्रपाल को 'रघुकुलतिलक' और रघुग्रामणी तथा महिपाल रघुवंशमुक्तामणि जैसे विशेषण देता है। श्री ए.के. व्यास का कथन है कि "विप्र" शब्द क्षत्रिय राजाओं के लिए रीषि अर्थ में प्रयोग किया गया है। यह क्षत्रिय वर्ण का था इसी वंश का इतिहास बाद के अभिलेखों में बाउक के जोधपुर अभिलेख और ककुक्क के अभिलेखों से प्राप्त होता है। इनमें दी गई वंशावलियों में अंतिम राजाओं में अवश्य अंतर है, परंतु वंशावली समान है
राजा हरिश्चंद्र बहुत ही योग्य और वीर शासक था इसने लगभग 550 ईस्वीं के लगभग राजपूताना जोधपुर के पास के क्षेत्र पर अपना अधिकार स्थापित किया और मण्डौर को अपनी राजधानी बनाया। बाउक के जोधपुर अभिलेख के अनुसार राजा हरिश्चंद्र ने मण्डौर नामक स्थान पर शत्रुओं को आतंकित करने वाला दुर्ग भी बनवाया। राजा हरिश्चंद्र की दो पत्नियां थी पहली बडी पत्नी से सहचरी देवी से चार पुत्र भोजभट्ट, कक्क, रज्जिल, दद्द उतपन्न हुए। इन क्षत्रिय कुमारों ने मण्डौर का दुर्ग जीतकर उसकी प्राचीरों को ऊँचा किया।
घटियाला अभिलेख से ज्ञात होता है कि प्रतिहार वंश की परंपरा तीसरे भाई रज्जिल प्रतिहार से प्रारंभ हुई। इस प्रकार प्रतिहार सत्ता का प्रारम्भ "मण्डौर - मेढ़ता " से हुआ। संभवतः रज्जिल के बाद नगभट्ट प्रतिहार (600 - 625) हुआ।
नगभट्ट प्रतिहार ने मेदांतपुर को अपनी राजधानी बनाया।उसके पुत्र तट और भोज दोनो क्रमशः 675 ईस्वीं तक राज्य किया। तट के पराक्रमी पुत्र यशोवर्धन ने शालवंशी प्रथुवर्धन को पराजित किया जिससे वह पूर्व में हार गया था।।
यशोवर्धन के बाद कंदुक गद्दी पर बैठा। कंदुक ने उतराधिकारी शीलुक ने भट्टी देवराज को परास्त किया। शीलुक के ही शासनकाल में अरब आक्रमणकारी जुनैद आया था। उसके पश्चात (750 - 825) ईस्वीं के मध्य क्रमशः जोट भिलदित्य और कक्क इस वंश में हुए। कक्क ने कन्नौज मालवा शाखा के शासक नागभट्ट द्वितीय के साथ मिलकर गौड़ नरेश को पराजित किया। 837 ईस्वीं के जोधपुर अभिलेख में प्रतिहार वंश से संबंधित विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई। बाउक प्रतिहार के बाद उसका सौतेला भाई कक्कुक गद्दी पर बैठा। प्रतिहार राजपूतों के उत्तर भारत में कई राज्य थे। जिनमें अलग अलग प्रतिहार नरेश शासन करत थे। लेकिन वह सभी मण्डौर से ही संबंधित थे। प्रतिहारों की भारत में ज्येष्ठ गद्दी एवं प्राचीन राज्य मण्डौर है। क्योंकि जितने भी प्रतिहार राजपूत है भारत में उन सभी के पूर्वज मण्डौर के ही वंशज है। मण्डौर के बाद भारत मे प्रतिहार राजपूतों की सबसे बडी रियासत नागौद बरमै राज्य है जो 1950 तक काबिज रही यहां आज भी 20 से 25 हजार प्रतिहार निवास करते हैं।
प्रतिहार वंश के महान राजा
(1) राजा हरिश्चंद्र प्रतिहार
(2) राजा नागभट्ट प्रतिहार
(3) राजा यशोवर्धन प्रतिहार
(4) राजा वत्सराज प्रतिहार
(5) राजा नागभट्ट द्वितीय प्रतिहार
(6) राजा मिहिर भोज प्रतिहार
(7) राजा महेन्द्रपाल प्रतिहार
(8) राजा महिपाल प्रतिहार
(9) राजा विनायकपाल प्रतिहार
(10) राजा महेन्द्रपाल द्वितीय प्रतिहार
(11) राजा विजयपाल प्रतिहार
(12) राजा राज्यपाल प्रतिहार
(13) राजा त्रिलोचनपाल प्रतिहार
(14) राजा यशपाल प्रतिहार
(15) राजा वीरराजदेव प्रतिहार (नागौद राज्य के संस्थापक )
भारत के शौर्य एवं बलिदान की भावभूमि वाले इतिहास में क्षत्रियों का प्रतिहार वंश मण्डौर, उज्जैन, ग्वालियर, कन्नौज, नागौद आदि को एक के बाद एक अपनी शक्ति का केंद्र बनाकर सदियों तक पूरे उत्तरी भारत पर शासन करता रहा खासकर मारवाड़ मे सीहाजी के पाली प्रवेश से पूर्व तथा प्रवेश के बाद तक मण्डौर पर प्रतिहारों का एकछत्र शासन रहा है। वि. सं. 1300 (ईस्वी सन 1243) पूर्व तक प्रतिहार ही मारवाड़ के शासक थे।
प्रतिहारों का इतिहास व शासन कोई एक - दो शताब्दियों का नहीँ होकर सैकड़ो शताब्दियों का है। अतः इनके इतिहास में अंतराल व भ्रांतियाँ आना स्वाभाविक ही है।
प्रतिहार सूर्यवंशी क्षत्रिय है जो कि अयोध्या के नरोत्तम राजा रामचंद्र के अनुज लक्ष्मण के वंशज है। क्योंकि वनवास के काल में लक्ष्मण ने राम और सीता जी के प्रतिहार (द्वारपाल) का कार्य किया था। अतः उन्हें प्रतिहार की उपाधि से विभूषित किया गया था। यह मत मरुनरेश बाउक प्रतिहार के नौवीं सदी के शिलालेखों में भी वर्णित है।
राजा मिहिर भोज की ग्वालियर प्रशस्ति में वि. सं. 900 में प्रतिहार राजपूतों को सुमित्रा पुत्र लक्ष्मण का वंशज बताया गया है।
सौमित्रिस्तिव्रदंड : प्रतिहरण विधेर्य: प्रतिहार आसीत।।
बाउक प्रतिहार के नौवीं शताब्दी के शिलालेखानुसार --
स्वभ्राता रामभद्रस्य प्रतिहायॆ कृतयत:।।
श्री प्रतिहार बडशोययतशचोतिमानुयात।।
मित्रों ऐसे हजारों शिलालेखों और अभिलेखों मे प्रतिहार राजपूतों को सूर्यवंशी क्षत्रिय बताया है। क्योंकि अग्नि और सूर्य एक समान है जिस कारण ही प्रतिहार/परिहार राजपूत अग्निवंशी भी कहलाते है। पर यह मूलतः सूर्यवंशी क्षत्रिय है।
== प्रतिहार क्षत्रिय वंश की शाखाएँ ==
(1) डाभी
(2) बडगुजर (राघव)
(3) मडाढ और खडाढ
(4) इंदा
(5) लल्लुरा / लूलावत
(6) सूरा
(7) रामेटा / रामावत
(8) बुद्धखेलिया
(9) खुखर
(10) सोधया
(11) चंद्र
(13) माहप
(14) धांधिल
(15) सिंधुका
(16) डोरणा
(17) सुवराण
(18) कलाहँस
(19) देवल
(20) खरल
(21) चौनिया
(22) झांगरा
(23) बोथा
(24) चोहिल
(25) फलू
(26) धांधिया
(27) खखढ
(28) सीधकां
(29) कमाष / जेठवा
(30) सिकरवार
नोट : - (1) प्रतिहारों / परिहारों का दामन हमेशा ही उज्जवल रहा है इस क्षत्रिय कौम ने मुगलों के साथ कभी भी वैवाहिक संबंध नहीं जोडे। अपने बुरे समय में भी आन - मान को कायम रखा। इन्होने अपनी तलवार से मलेच्छों और अरबों को काटा है परंतु शर्मनाक संधियां करके अपनी जाति को मलीन नहीं किया।
(2) मित्रों आज कल एक गंभीर समस्या हम प्रतिहार राजपूतों के सामने आ गई है कुछ शूद्र जातियां जिसमें मुख्य रुप से गुज्जर/गुर्जर आजकल सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार जी को गुज्जर घोषित करने मे लगे हैं एवं प्रतिहार वंश को गुज्जर मूल का बता रही है। इन गुज्जरो ने दिल्ली में मिहिर भोज की मूर्तियां स्थापित कर और राष्ट्रीय राजमार्ग का नामकरण कर बेवजह बिना ऐतिहासिक जानकारी इन्हे गुर्जर बता रहे। पर इन्हे ये नही पता है कि मिहिर भोज प्रतिहार के वंशज नागौद राज्य के प्रतिहार राजपूत है मित्रों मिहिर भोज प्रतिहार कन्नौज को देश की राजधानी बनाकर 50 वर्षो तक शासन किया। इनके मृत्यु के बाद कुछ वर्षों तक इनके पुत्र महेन्द्रपाल प्रतिहार ने शासन किया। फिर गजनी के मोहम्मद ने कन्नौज पर आक्रमण कर नगर जलाकर अपने राज्य मिला लिया था महेन्द्रपाल और उनकी छोटी सेना सामना न कर विंध्य क्षेत्र (बुंदेलखण्ड) यहाँ आ गये थे। फिर परिहार दल ने व्यारमा नदी के तट पर भगवान शिव का ध्यान पूजन कर मंदिर का निर्माण किया और एक नये राज्य की स्थापना की जिसका नाम बरमै राज्य रखा। नागौद प्रतिहार वंश की गद्दी आज भी बरमै गद्दी के नाम से जानी जाती है।
(3) मित्रों आज कल प्रतिहार मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ में परिहार के नाम से जाने जाते है एवं राजस्थान के प्रतिहार आजकल पडिहार एवं गुजरात के प्रतिहार लोग पढियार नाम से जाने जाते है।
(4) मित्रों प्रतिहार, परमार, चौहान, सोलंकी ये चारों सूर्यवंशी क्षत्रिय है। अनपढ चारणों और भाटों की वजह से हमे अग्निवंशी बताया गया है।
(5) प्रतिहार वंश शुद्ध क्षत्रिय वंश है। जिसने गुर्जरात्रा प्रदेष में राज्य किया और हूणों के साथ भारत आये गुज्जर चोरों को अपने राज्य से बाहर किया। यही से निकलकर प्रतिहार राजपूतों की ज्येष्ठ शाखा गुर्जर प्रतिहार एवं बडगुजर कहलाई। इसी का फायदा उठाकर गुज्जर आजकल प्रतिहार वंश को गुज्जर मूल का बता रही है। पर इसमें कोई सच्चाई नहीं है। ये बस आरक्षण और थोडी सी समृद्धि मिलने से है। खाली मिहिर भोज मे दाल नही गली तो पूरे प्रतिहार/परिहार वंश को ही गुज्जर घोषित करने मे लगे हैं। खासकर दिल्ली के गुज्जरों को लगता था कि प्रतिहार राजपूत तो अब है नहीं कही क्यों न इनके नाम से ही श्रेष्ठता पाई जाये इन्हें गुज्जर बताकर पर ये मूरख न जाने की उतर और मध्य भारत मे अच्छी संख्या में प्रतिहार और उनकी शाखाएँ निवास करती है।
Pratihara / Pratihar / Parihar Rulers of india
Refrence : -
(1) प्रतिहारों का मूल इतिहास लेखक - देवी सिंह मंडावा
(2) विंध्य क्षेत्र के प्रतिहार वंश का इतिहास लेखक - डा अनुपम सिंह
(3) परिहार वंश का प्रकाश लेखक - मुंशी देवी प्रसाद
(4) नागौद परिचय लेखक - जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी
(5) मण्डौर का इतिहास लेखक - श्री सिंह
जय चामुण्डा देवी।।
नागौद रियासत
bhaiyon cort me case dal ke inko sabak sikhana hai
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteभैया कुछ पंडित राजा हरिश्चंद्र प्रतिहार जी को ब्रह्मण बता कर भ्रम फैला रहे,जैसे गुज्जर फैला रहे है ऐसे पेज के खिलाफ कार्रवाई करो मैं लिंक देती हु,दुख की बात की कुछ राजपूत पेज और नामी राजपूत,राजपूताना विजय जैसे लोग सपोर्ट कर रहे उस पेज को, 😒😒
ReplyDeleteभईया अब पंडित भी चोरी कर रहे गुर्जर प्रतिहार वंश को ब्रह्मण बता रहे😞😞
Deleteऐसी जानकारी कई जगहें छपी हैं लेकिन उन्हें ब्राह्मणों कहना गलत है, एक जगह मैंने यह भी पढ़ा है कि हरिश्चंद्र की दो पत्नियाँ थी उनमें से एक ब्राह्मण थीं और रज्जिल उन्ही के पुत्र थे, तो ये भी एक तर्क हो सकता हैं, लेकिन गोत्र हमेशा पिता के नाम से ही चलता है तो यहां उनका तर्क भी खत्म हो जाता है।
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ReplyDeleteलेखक महोदय से आग्रह है कि परिहार/पड़िहार वंश की शाखाओं के बारे थोड़ा और अध्ययन करें! ऊपर लिस्ट में दी गयी शाखाओं के अतिरिक्त और भी शाखाएं है जो पड़िहार वंश की ही है। में भी पड़िहार वंश की जाखड़ शाखा से हूँ जो कि राव इंदा के भाई कवलिया पड़िहार के वंशज है। इसके अतिरिक्त मण्डा भी पड़िहार वंश की ही शाखा है।
ReplyDeleteतो आपसे निवेदन है कि इसे संशोधित करके इन्हें अपनी लिस्ट में जोड़े। (इसका लिखित रिकॉर्ड देखना हो तो दिखा सकता हूँ, पांडुलिपियां पड़ी है।