~~~ मित्रों शेयर जरुर करें ~~~
~~~ परिहार राजपूतों की कुलदेवी ~~~
जय अनन्त आध्य शक्ति।।
जय चामुण्डा देवी माँ।।
नवरात्र की सभी को शुभ कामनाये।।
नवरात्रि व विजयदशमी राजपुतो के मुख्य त्यौहार है....हम क्षत्रिय मा शक्ति के उपासक है जैसे जाट,पुरोहित,अहीर,गुर्जर,ब् राह्मण, बगरी, कुर्मी, काछी आदि देवो कि उपासना करते है वैसे ही क्षत्रिय राजपूत,भोमिया,काठी,चारण,रा व,मराठा, रावणा राजपूत,रावत आदि माँ भवानी या माँ आद्य शक्ति (समस्त देवियो का एक रूप ) के परम भक्त होते है
आज के दिन व होमाष्ठमी के दिन मा भवानी के नाम कि पुजा,जोत व व्रत अवश्य करना चाहिए..... हिन्दुओ मे कुलदेवी कि परम्परा क्षत्रियो ने कायम कि राजपूतो के गोत्र ज्यादातर दूसरी जातियों में मिलेंगे और हमेशा गोत्र के अनुसार ही कुलदेवियो की पूजा होती है न की जातियो के अनुसार। .
जैसे गणेश जी को लङ्ङु कृष्ण को माखन व देवो को छप्पन भोग लगाए जाते है वैसे मा शक्ति जो मा दुर्गा मा अँबे मा भवानी व समस्त देवीयो का ही एक रूप है आप सभी को ध्यान होगा कि मा काली के हाथो मे रक्त का प्याला होता व देवी हमेशा ही खुन का भोग या बली लेती है तभी से नवरात्र मे बली प्रथा प्रारम्भ हुईँ...
राजपूतो के यहा अष्टमी के दिन उनकी कुलदेवी की पूजा की जाती है।
नवरात्र और दशहरा क्षत्रियों का यह सबसे बड़ा पर्व है। राजा राम के लंका विजय के तौर पर क्षत्रिय राजपूत इसे बड़ी धूम धाम से मानते है क्षत्रिय/राजपूतों इस दिन प्रातः स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर संकल्प मंत्र लेते हैं।इसके पश्चात देवताओं, गुरुजन, अस्त्र-शस्त्र, अश्व आदि के यथाविधि पूजन की परंपरा है।नवरात्रि के दौरान कुछ भक्तों उपवास और प्रार्थना, स्वास्थ्य और समृद्धि के संरक्षण के लिए रखते हैं।
👉राजस्थान के एक बड़े भाग पर नवरात्र के दिनों में विशेषकर दुर्गा अष्टमी को बलि दी जाती और मदिरा को ज्योति में चढ़ा कर भोग के रूप में लिया जाता है ये कोई नयी परम्परा नही है हजारो सालो से यही चलता आ रहा है जहा दूसरी जगह / जातियो में नवरात्र में दारू मीट लगभग बंद सा हो जाता है वही राजस्थान के राजपूतो में इनदिनों में इसका प्रचलन बढ़ जाता है
(रियासत काल में किलो और बड़े ठाकुरो के यहाँ एक विशेष प्रकार की गोट(समुहिक भोंज) होता था जहा देवी माँ की जोत करके सभी सिरदार अपने धर्म प्रजा राज्य और स्वाभिमान की रक्षा का प्रण लेते थे)
👉जो चित्र दिया गया है वो राजपूतो के लगभग सभी किलो हवेलियों गढ़ो घरो में मिलेगा क्यों की सभी देवी एक ही माँ का रूप है
👉ज्यादातर जगह त्रिशूल नुमा देवी शक्ति की पूजा होती है क्यों की देवी के हाथ में त्रिशूल होता है और सभी देवी का एक रूप ही है सिर्फ नाम अलग अलग है चित्र देखे
👉मुस्लिम नमाज के बाद अपना हाथ देखते है जिसमे वो चाँद का दीदार करते है ठीक वैसे ही संध्या काल और प्रातः काल या पूजा के बाद में राजपूत भी अपना हाथ देखते है जहा वो अर्धचन्र्दकार आकृति को बीच में काटते हुए देवी दर्शन करते है त्रिशूल के रूप में - दोनों हाथो को मिलाने पर एक आधा चाँद बनता है और हाथो के किनारे उसे जोड़ते /काटते हुए एक त्रिशूल बनाते है
पत्थर को कर दे पानी पानी
जय भवानी जय भवानी
~~~~ जय माँ चामुण्डा देवी ~~~~
~~~ प्रतिहार राजपूतों की कुलदेवी ~~~
परिहार,पडिहार,पढ़ियार,इंदा ,राघव राजपूत ये
श्री चामुण्डा देवी जी को अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते है तथा वरदेवी के रूप में गाजन माता को भी पूजते है ,तथा देवल शाखा प्रतिहार ( पडिहार ,परिहार राजपूत ) ये सुंधा माता को अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते है , पुराणो से ग्यात होता है कि भगवती दुर्गा का सातवा अवतार कालिका है , इसने दैत्य शुम्भ , निशुम्भ , और सेनापती चण्ड
, मुण्ड का नाश किया था , तब से श्री कालिका जी
चामुण्डा देवी जी के नाम से प्रसिद्द हुई ,इसी लिये माँ श्री चामुण्डा देवी जी को आरण्यवासिनी ,गाजन माता तथा अम्बरोहिया , भी कहा जाता है परिहार
नाहडराव गाजन माता के परम भक्त थे , वही इनके वंशज पडिहार खाखू कुलदेवी के रूप में श्री चामुण्डा देवी जी की आराधना करते थे ,प्रतिहार ,पडिहार , परिहार राजपूत वंशजो का श्री चामुण्डा देवी जी के साथ सम्बंधो का सर्वप्रथम सटीक पडिहार खाखू से मिलता है , पडिहार खाखू
श्री चामुण्डा देवी जी की पूजा अर्चना करने चामुण्डा गॉव आते जाते थे , जो कि जोधपुर से ३० कि. मी. की दूरी पर स्थित है , घटियाला जहॉ पडिहार खाखू का निवास स्थान था , जो चामुण्डा गॉव से
४ कि. मी. की दूरी पर है ,श्री चामुण्डा देवी का मंदिर चामुण्डा गॉव में ऊँची पहाडी पर स्थित है , जिसका मुख घटियाला की ओर है , ऐसी मान्यता है कि देवी जी पडिहार खाखू जी के शरीर पर आती थी ।।।।।
--------- प्रतिहार राजवंश ---------
** श्री चामुण्डा देवी जी ( गढ जोधपुर ) **
जोधपुर राज्य के संस्थापक राव जोधा के पितामाह राव चुण्डा जी का सम्बंध भी माता चामुण्डा देवी जी से रहा था , सलोडी से महज 5 कि. मी. की दूरी पर चामुण्डा गॉव है , वहा पर राव
चुण्डा जी देवी के दर्शनार्थ आते रहते थे ,वह भी देवी के परम भक्त थे ,ऐसी मान्यता है कि एक बार राव चुण्डा जी गहरी नींद में सो रहे थे तभी रात में देवी जी ने स्वप्न में कहा कि सुबह घोडो का काफिला वाडी से होकर निकलेगा ,घोडो की पीठ पर सोने की ईंटे लदी होगीं वह तेरे भाग्य में ही है ,
सुबह ऐसा ही हुआ खजाना एवं घोडे मिल जाने के
कारण उनकी शक्ति में बढोत्तरी हुई , आगे चलकर इन्दा उगमसी की पौत्री का विवाह राव चुण्डा जी के साथ हो जाने पर उसे मण्डौर का किला दहेज के रूप में मिला था , इसके पश्चात राव चुण्डा जी ने
अपनी ईष्टदेवी श्री चामुण्डा देवी जी का मंदिर भी बनवाया था , यहा यह तथ्य उल्लेखनीय है कि देवी कि प्रतिष्ठा तो पडिहारो के समय हो चुकी थी
, अनंतर राव चुण्डा जी ने उस स्थान पर मंदिर निर्माण करवाया था मंदिर के पास वि. सं. १४५१ का लेख भी मिलता है ।अत: राव जोधा के समय पडिहारों की कुलदेवी श्री माँ चामुण्डा देवी जी
की मूर्ति जो कि मंडौर के किले में भी स्थित
थी , उसे जोधपुर के किले में स्थापित करबाई थी ,
राव जोधा जी तो जोधपुर बसाकर और मेहरानगढ जैसा दुर्ग बनाकर अमर हो गये परंतु मारवाड की रक्षा करने वाली परिहारों की कुलदेवी
श्री चामुण्डा देवी जी को अपनी ईष्टदेवी के रूप में स्वीकार कर संपूर्ण सुरक्षा का भार माँ चामुण्डा देवी जी को सौप गये , राव जोधा ने वि. सं. १५१७ ( ई. १४६० ) में मण्डौर से श्री चामुण्डा देवी जी
की मूर्ति को मंगवा कर जोधपुर के किले में स्थापित किया , श्री चामुण्डा महारानी जी मूलत: प्रतिहारों की कुलदेवी थी राठौरों की कुलदेवी श्री नागणेच्या माता जी है , और राव जोधा जी ने श्री चामुण्डा देवी जी को अपनी ईष्टदेवी के रूप में स्वीकार करके जोधपुर के किले में स्थापित किया था , ।।
** देवल ( प्रतिहार , परिहार ) वंश **
सुंधा माता जी का प्राचीन पावन तीर्थ राजस्थान प्रदेश के जालौर जिले की भीनमाल तहसील की जसवंतपुरा पंचायत समिती में आये हुये सुंधा पर्वत पर है , वह भी भीनमाल से २४ मील रानीवाडा से १४ मील और जसवंतपुरा से ८ मील दूर है । सुंधा पर्वत की रमणीक एवं सुरम्य घाटी में सांगी
नदी से लगभग ४०-४५ फीट ऊँची एक प्राचीन सुरंग से जुडी गुफा में अषटेश्वरी माँ चामुण्डा देवी जी का पुनीत धाम युगो युगो से सुसोभित है , इस सुगंध गिरी अथवा सौगंधिक पर्वत के नाम से लोक में " सुंधा माता " के नाम से विख्यात है , जिनको देवल प्रतिहार अपनी कुलदेवी के रूप में पूजा अर्चना करते है ।।
वंश - सूर्यवंशी
गोत्र - कौशिक ( कश्यप )
कुलदेवी - चामुण्डा देवी ( सुंधा माता)
वरदेवी - गाजन माता
कुलदेव - विष्णुभगवान
जय माँ भवानी।।
जय माँ चामुण्डा देवी जी।।
परिहार राजवंश।।
नागौद रियासत।।
~~~ परिहार राजपूतों की कुलदेवी ~~~
जय अनन्त आध्य शक्ति।।
जय चामुण्डा देवी माँ।।
नवरात्र की सभी को शुभ कामनाये।।
नवरात्रि व विजयदशमी राजपुतो के मुख्य त्यौहार है....हम क्षत्रिय मा शक्ति के उपासक है जैसे जाट,पुरोहित,अहीर,गुर्जर,ब्
आज के दिन व होमाष्ठमी के दिन मा भवानी के नाम कि पुजा,जोत व व्रत अवश्य करना चाहिए..... हिन्दुओ मे कुलदेवी कि परम्परा क्षत्रियो ने कायम कि राजपूतो के गोत्र ज्यादातर दूसरी जातियों में मिलेंगे और हमेशा गोत्र के अनुसार ही कुलदेवियो की पूजा होती है न की जातियो के अनुसार। .
जैसे गणेश जी को लङ्ङु कृष्ण को माखन व देवो को छप्पन भोग लगाए जाते है वैसे मा शक्ति जो मा दुर्गा मा अँबे मा भवानी व समस्त देवीयो का ही एक रूप है आप सभी को ध्यान होगा कि मा काली के हाथो मे रक्त का प्याला होता व देवी हमेशा ही खुन का भोग या बली लेती है तभी से नवरात्र मे बली प्रथा प्रारम्भ हुईँ...
राजपूतो के यहा अष्टमी के दिन उनकी कुलदेवी की पूजा की जाती है।
नवरात्र और दशहरा क्षत्रियों का यह सबसे बड़ा पर्व है। राजा राम के लंका विजय के तौर पर क्षत्रिय राजपूत इसे बड़ी धूम धाम से मानते है क्षत्रिय/राजपूतों इस दिन प्रातः स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर संकल्प मंत्र लेते हैं।इसके पश्चात देवताओं, गुरुजन, अस्त्र-शस्त्र, अश्व आदि के यथाविधि पूजन की परंपरा है।नवरात्रि के दौरान कुछ भक्तों उपवास और प्रार्थना, स्वास्थ्य और समृद्धि के संरक्षण के लिए रखते हैं।
👉राजस्थान के एक बड़े भाग पर नवरात्र के दिनों में विशेषकर दुर्गा अष्टमी को बलि दी जाती और मदिरा को ज्योति में चढ़ा कर भोग के रूप में लिया जाता है ये कोई नयी परम्परा नही है हजारो सालो से यही चलता आ रहा है जहा दूसरी जगह / जातियो में नवरात्र में दारू मीट लगभग बंद सा हो जाता है वही राजस्थान के राजपूतो में इनदिनों में इसका प्रचलन बढ़ जाता है
(रियासत काल में किलो और बड़े ठाकुरो के यहाँ एक विशेष प्रकार की गोट(समुहिक भोंज) होता था जहा देवी माँ की जोत करके सभी सिरदार अपने धर्म प्रजा राज्य और स्वाभिमान की रक्षा का प्रण लेते थे)
👉जो चित्र दिया गया है वो राजपूतो के लगभग सभी किलो हवेलियों गढ़ो घरो में मिलेगा क्यों की सभी देवी एक ही माँ का रूप है
👉ज्यादातर जगह त्रिशूल नुमा देवी शक्ति की पूजा होती है क्यों की देवी के हाथ में त्रिशूल होता है और सभी देवी का एक रूप ही है सिर्फ नाम अलग अलग है चित्र देखे
👉मुस्लिम नमाज के बाद अपना हाथ देखते है जिसमे वो चाँद का दीदार करते है ठीक वैसे ही संध्या काल और प्रातः काल या पूजा के बाद में राजपूत भी अपना हाथ देखते है जहा वो अर्धचन्र्दकार आकृति को बीच में काटते हुए देवी दर्शन करते है त्रिशूल के रूप में - दोनों हाथो को मिलाने पर एक आधा चाँद बनता है और हाथो के किनारे उसे जोड़ते /काटते हुए एक त्रिशूल बनाते है
पत्थर को कर दे पानी पानी
जय भवानी जय भवानी
~~~~ जय माँ चामुण्डा देवी ~~~~
~~~ प्रतिहार राजपूतों की कुलदेवी ~~~
परिहार,पडिहार,पढ़ियार,इंदा
श्री चामुण्डा देवी जी को अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते है तथा वरदेवी के रूप में गाजन माता को भी पूजते है ,तथा देवल शाखा प्रतिहार ( पडिहार ,परिहार राजपूत ) ये सुंधा माता को अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते है , पुराणो से ग्यात होता है कि भगवती दुर्गा का सातवा अवतार कालिका है , इसने दैत्य शुम्भ , निशुम्भ , और सेनापती चण्ड
, मुण्ड का नाश किया था , तब से श्री कालिका जी
चामुण्डा देवी जी के नाम से प्रसिद्द हुई ,इसी लिये माँ श्री चामुण्डा देवी जी को आरण्यवासिनी ,गाजन माता तथा अम्बरोहिया , भी कहा जाता है परिहार
नाहडराव गाजन माता के परम भक्त थे , वही इनके वंशज पडिहार खाखू कुलदेवी के रूप में श्री चामुण्डा देवी जी की आराधना करते थे ,प्रतिहार ,पडिहार , परिहार राजपूत वंशजो का श्री चामुण्डा देवी जी के साथ सम्बंधो का सर्वप्रथम सटीक पडिहार खाखू से मिलता है , पडिहार खाखू
श्री चामुण्डा देवी जी की पूजा अर्चना करने चामुण्डा गॉव आते जाते थे , जो कि जोधपुर से ३० कि. मी. की दूरी पर स्थित है , घटियाला जहॉ पडिहार खाखू का निवास स्थान था , जो चामुण्डा गॉव से
४ कि. मी. की दूरी पर है ,श्री चामुण्डा देवी का मंदिर चामुण्डा गॉव में ऊँची पहाडी पर स्थित है , जिसका मुख घटियाला की ओर है , ऐसी मान्यता है कि देवी जी पडिहार खाखू जी के शरीर पर आती थी ।।।।।
--------- प्रतिहार राजवंश ---------
** श्री चामुण्डा देवी जी ( गढ जोधपुर ) **
जोधपुर राज्य के संस्थापक राव जोधा के पितामाह राव चुण्डा जी का सम्बंध भी माता चामुण्डा देवी जी से रहा था , सलोडी से महज 5 कि. मी. की दूरी पर चामुण्डा गॉव है , वहा पर राव
चुण्डा जी देवी के दर्शनार्थ आते रहते थे ,वह भी देवी के परम भक्त थे ,ऐसी मान्यता है कि एक बार राव चुण्डा जी गहरी नींद में सो रहे थे तभी रात में देवी जी ने स्वप्न में कहा कि सुबह घोडो का काफिला वाडी से होकर निकलेगा ,घोडो की पीठ पर सोने की ईंटे लदी होगीं वह तेरे भाग्य में ही है ,
सुबह ऐसा ही हुआ खजाना एवं घोडे मिल जाने के
कारण उनकी शक्ति में बढोत्तरी हुई , आगे चलकर इन्दा उगमसी की पौत्री का विवाह राव चुण्डा जी के साथ हो जाने पर उसे मण्डौर का किला दहेज के रूप में मिला था , इसके पश्चात राव चुण्डा जी ने
अपनी ईष्टदेवी श्री चामुण्डा देवी जी का मंदिर भी बनवाया था , यहा यह तथ्य उल्लेखनीय है कि देवी कि प्रतिष्ठा तो पडिहारो के समय हो चुकी थी
, अनंतर राव चुण्डा जी ने उस स्थान पर मंदिर निर्माण करवाया था मंदिर के पास वि. सं. १४५१ का लेख भी मिलता है ।अत: राव जोधा के समय पडिहारों की कुलदेवी श्री माँ चामुण्डा देवी जी
की मूर्ति जो कि मंडौर के किले में भी स्थित
थी , उसे जोधपुर के किले में स्थापित करबाई थी ,
राव जोधा जी तो जोधपुर बसाकर और मेहरानगढ जैसा दुर्ग बनाकर अमर हो गये परंतु मारवाड की रक्षा करने वाली परिहारों की कुलदेवी
श्री चामुण्डा देवी जी को अपनी ईष्टदेवी के रूप में स्वीकार कर संपूर्ण सुरक्षा का भार माँ चामुण्डा देवी जी को सौप गये , राव जोधा ने वि. सं. १५१७ ( ई. १४६० ) में मण्डौर से श्री चामुण्डा देवी जी
की मूर्ति को मंगवा कर जोधपुर के किले में स्थापित किया , श्री चामुण्डा महारानी जी मूलत: प्रतिहारों की कुलदेवी थी राठौरों की कुलदेवी श्री नागणेच्या माता जी है , और राव जोधा जी ने श्री चामुण्डा देवी जी को अपनी ईष्टदेवी के रूप में स्वीकार करके जोधपुर के किले में स्थापित किया था , ।।
** देवल ( प्रतिहार , परिहार ) वंश **
सुंधा माता जी का प्राचीन पावन तीर्थ राजस्थान प्रदेश के जालौर जिले की भीनमाल तहसील की जसवंतपुरा पंचायत समिती में आये हुये सुंधा पर्वत पर है , वह भी भीनमाल से २४ मील रानीवाडा से १४ मील और जसवंतपुरा से ८ मील दूर है । सुंधा पर्वत की रमणीक एवं सुरम्य घाटी में सांगी
नदी से लगभग ४०-४५ फीट ऊँची एक प्राचीन सुरंग से जुडी गुफा में अषटेश्वरी माँ चामुण्डा देवी जी का पुनीत धाम युगो युगो से सुसोभित है , इस सुगंध गिरी अथवा सौगंधिक पर्वत के नाम से लोक में " सुंधा माता " के नाम से विख्यात है , जिनको देवल प्रतिहार अपनी कुलदेवी के रूप में पूजा अर्चना करते है ।।
वंश - सूर्यवंशी
गोत्र - कौशिक ( कश्यप )
कुलदेवी - चामुण्डा देवी ( सुंधा माता)
वरदेवी - गाजन माता
कुलदेव - विष्णुभगवान
जय माँ भवानी।।
जय माँ चामुण्डा देवी जी।।
परिहार राजवंश।।
नागौद रियासत।।
Proud to be a parihar rajput
ReplyDeleteजय माँ भवानी
ReplyDeleteकभी कभी राजपूतोंकी कुलदेवीयाँ उनकी मूल कुलदेवीयोँके साथ मेल नहीं खाती, तो इसका क्या कारण हैं।
ReplyDeleteArea k hisab se bhi change ho jati h or kabhi kabhi bhul bas bhi
Deleteआपकी कौन है
DeleteBanna ma parihar rajput hu meri kuldevi but vindhyavasini hai . Goutr koushal hai .. ham rehne wale hamir pur banda up ke hai or vartman me m.p me rehtr hai ..
DeleteConfusion clear kijiye banna
Jay ma bhvani
ReplyDeleteकालिका माता 🙏
ReplyDeleteपरिहार छत्रिय राजपूत है हम,हमारे समाज बिहार के मुंगेर जिला मैं कैसे आयी,बांका, जमुई ओर बासुकीनाथ मैं कैसे आयी ?
ReplyDeleteपरिहार छत्रिय राजपूत है हम,हमारे समाज बिहार के मुंगेर जिला मैं कैसे आयी,बांका, जमुई ओर बासुकीनाथ मैं कैसे आयी ?
ReplyDeleteHimachal punjab ke Rajput parihar ke baare me jaankari de
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