* प्रतिहार कालीन पुष्कर तीर्थ का इतिहास *
मित्रों आज की इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको प्रतिहार कालीन राजस्थान के पुष्कर तीर्थ एवं भारत में एक मात्र ब्रम्हा जी के मंदिर के इतिहास की जानकारी देंगे।।
अजोरगढ महेश्वर (नर्मदा तट) मे प्रतिहार राजा अजराणा ने दुर्ग का निर्माण करवाया था। उसके पुत्र को एक बालयोगी अमर करना चाहता था, बालयोगी ने प्रतिहार राजा के पुत्र नाहड़राव को अमरतेल के कडाहे पर कूदने को कहा जिससे राजा यह सुनकर बहुत ही क्रोधित हो गए। पुत्र मोह के कारण राजा ने योगी को कपटी समझा और उसकी हत्या कर दी। जिसके फलस्वरूप उन्हें कुष्ठ रोग हो गया। इस कुष्ठ रोग के दिन प्रतिदिन बढने से राजा बहुत ही दुखित था।
उस कुष्ठ रोग का निवारण करने के लिए एक किवंदती प्रचलित है कि --
एक दिन प्रतिहार राजा शिकार करने के लिए जंगल की ओर गये और काफी देर जंगल में शिकार की तलास में भटकते रहे काफी देर बाद उन्हें एक जंगली सुअर (वाराह) दिखा। उस जंगली सुअर का पीछा करते हुए राजा अपने सैनिकों से पिछड गये और जंगल में भटक गये।
आंगे चलकर अजमेर नदी के तीन कोस उत्तर में वह जंगली सुअर अचानक से गायब हो गया। राजा काफी देर से पीछा करने से थक चुके थे और उन्हें बहुत प्यास भी लगी थी, थके हारे राजा परेशान हो गये प्यास से व्याकुल राजा नदी की ओर बढ चले कुछ दूरी पर उन्हे एक गड्ढा मिला जिसमे जंगली सुअर के खुर के निशान थे। उस गड्ढे को राजा ने अपनी तलवार से और गहरा किया और प्यास बुझाई। पानी पीते ही राजा वहीं पर बेहोश हो गये।।
अचेतावस्था में पुष्कर तीर्थ ने राजा को दर्शन दिये और बताया कि मैने वाराह के रुप में तुम्हारे प्राणों की रक्षा की, साथ ही तुम्हारे कुष्ठ रोग का निवारण भी किया।।
होश आने पर प्रतिहार राजा ने देखा की वह कुष्ठ रोग से मुक्त हो गया। इससे खुश होकर राजा ने अपने राजधानी आकर " ऐरा " के वन में एक सरोवर का निर्माण एवं धातु की सीढियाँ भी बनवाई जिसे हम आज पुष्कर तीर्थ एवं पुष्कर ताल के नाम से जानते है तथा भारत में एक मात्र चतुर्मुखी ब्रम्हा जी के मंदिर का निर्माण करवाया जो अपने आप में अद्धितीय मंदिर है। राजा ने जंगली सुअर (वाराह)का शिकार करने पर कडा प्रतिबंध लगा दिया तथा उसके मांस भक्षण पर भी रोक लगा दिया।
इसी घटना के बाद से प्रतिहारों ने वाराह का मांस खाना बंद कर दिया और वाराह को पूजने लगे। और वाराह जयंती भी मनाने लगे। इस विशेष दिन का और महत्व प्रतिहारों मे जब बढा जब इस क्षत्रिय प्रतिहार वंश मे वाराह जयंती के ही दिन कुल दीपक सम्राट मिहिर भोज का जन्म हुआ जो बचपन से ही अदम्य साहसी और शस्त्र/शास्त्र में निपुण थे।
प्रतिहार राजपूत युद्ध के लिए प्रस्थान करने के पहले यहां चतुर्मुखी ब्रम्हा जी के मंदिर में पूजा अर्चना के लिए जरुर आते थे।
इन सब घटनाओं की जानकारी पुष्कर तालाब की सीढियों पर अंकित कुछ प्रतिहार राजाओं के नाम से हुई जिनमे अजराणा प्रतिहार एवं नाहड़राव प्रतिहार मुख्य रुप से है और यहां के कई शिलालेखों एवं ताम्रपत्रों में भी इसका प्रतिहार राजाओं से जिक्र किया गया है ।
कालीदास ने भी कई जगह पुष्कर तीर्थ का वर्णन किया है --
वह लिखते है - " प्रतिहार नाहड़राव मण्डौरगढ़ करवायों पुष्कर बधायो "
सम्राट पृथ्वीराज चौहान एवं नाहड़राव प्रतिहार समकालीन थे। पृथ्वीराज रासौ, नैणसी विख्यात बांकी दास कई ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है।
प्रतिहार राजा अजराणा का पुत्र नाहड़राव बहुत ही वीर था कुछ समय के लिए परमारो ने 11वीं शताब्दी में प्रतिहारों से उनका प्राचीन राज्य मण्डौर छीन लिया था। जिससे नाहड़राव प्रतिहार ने अपनी वीरता एवं योग्यता से परमारो पर हमला कर पुनः छीन लिया था।
Pratihara / Pratihar / Parihar Rulers of india
Refrence : -
(1) विंध्य क्षेत्र के प्रतिहार वंश का ऐतिहासिक अनुशीलन - लेखक डाॅ अनुपम सिंह
( 2) प्रतिहारों का मूल इतिहास लेखक - देवी सिंह मंडावा
(3) भारत के प्रहरी - प्रतिहार लेखक - डॉ विंध्यराज सिंह चौहान
(4) पृथ्वीराज रासौ ग्रन्थ
(5)कालीदास - रघुवंश 151-154
(6) राजपूतो का इतिहास - लेखक गौरीशंकर हरिचंद्र ओझा
(7) परिहार वंश का प्रकाश लेखक - मुंशी प्रेमचंद देवी
(8) वीरभानुदय काव्य - राजकवि
(9) प्राचीन भारत का इतिहास लेखक - बी.एल. शर्मा
(10) राजशेखर - काव्यभीमांस और मजूमदार एनसीयंट इंडिया पेज 225/ क्षत्रिय वंश वैभव
जय माँ चामुण्डा।।
जय क्षात्र धर्म।।
नागौद रियासत।।
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