#TheColonialMythof GurjaraPratihara
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भाइयों आज से हम एक ऐसे क्षत्रिय राजपूत राजवंश के ऊपर अपनी पोस्ट्स की शृंखला शुरू करने जा रहें है जिसके इतिहास को कई विदेशी व उनके देसी वाम्पन्ति इतिहासकारों ने अपने तरह तरह के ख्याली पुलाव व तर्कहीन वादों से दूषित करने की कोशिश की और वे इस कार्य में कुछ हद तक सफल भी रहे। परंतु आज के समय में जब साधन व संसाधन बढ़ गएँ है और सभी प्रकार के ऐतिहासिक साक्ष्य जन साधारण व विशेषज्ञ शोधकर्ताओं के पहुच के भीतर उपलब्ध ही चुके है तो नए विश्लेषण पुराने बेतुके तर्कों के साथ तोड़ मरोड़ कर पेश किये गए इतिहास की कलई खोल रहें हैं।
दरहसल पुरातन काल से ये माना जाता रहा है के इतिहास उसी का होता है जिसका शाशन होता है और शाशक आदिकाल से इतिहास को तोड़ मरोड़ के अपने अनुसार जन साधारण के सामने प्रस्तुत कर उनकी भावनाओं का फायदा उठातें आएं हैं।
भारत में पढ़ाये जा रहे जिस इतिहास को आज हम पढ़तें है व दरहसल 18 वीं सदी में अंग्रेजों द्वारा दी व सिखाई पदत्ति पर आधारित है। और यही नहीं भारत के इतिहास में पढाई जाने वाली ज्यादातर विषय और मान्यताएँ आज आजादी के 68 सालों बाद भी इन्हीं अंग्रेजों की देन है। अब आप अनुमान लगा ही सकते हैं के जो विदेशी भारतीय परम्पराओं व मान्यताओं और उसकी समझ से कोसों दूर थे बिलकुल अलग सभ्यता और संस्कृति से थे वे क्या तो भारत की संस्कृति को समझें होंगे और क्या ही इतिहास बांच के गए होंगे।
दरहसल अंग्रेज भारतीय इतिहास को अपनी सियासत का हिस्सा समझ इससे खेलते रहे और भारतीय समाज की संस्कृति नष्ट करने के लिए व इसका बखूबी इस्तेमाल कर गए। दरहसल आज पढ़ाये जाने वाला भारतीय इतिहास की नींव लगभग उसी समय शुरू हुई जब भारत के लोगों ने अंग्रेजों के शाशन के खिलाफ बिगुल बजाया और सन 1857 की क्रांति का उद्घोष हुआ। ऐसे में ज्यादातर अंग्रेज इतिहासकार भारत पर अपने कमजोर होते शाशन को देख इतिहास को सियासी बिसात पर एक हथियार के भांति इस्तेमाल कर के चले गए। जैसे की हम सभी इस कथन से अनिभिज्ञ नहीं है के यदि आप किसी जाती समुदाय के संस्कृति नष्ट करदे तो उस पर अपनी संस्कृति थोप गुलाम बनाने में देर नहीं लगती। अंग्रेज इस कथन का महत्व जान इतिहास की तोड़ मरोड़ भारत की पर प्रहार संस्कृति व् उसके विनाश के लिए कर गए। इस तोर मरोड़ की चपेट में आकर सबसे ज्यादा जिस जाती को नुकसान झेलना पड़ा वो है भारत का अपना आर्य क्षत्रिय वर्ग जिसका विशेषण शब्द है "राजपूत"।
ये उन अंग्रेजों से कम कहाँ जिन्होंने भारत में रहने वाले आर्य व वेदिक संस्कृति में उतपन्न क्षत्रिय वर्ग जिसका विशेषण राजपूत शब्द था उन्हें 6वीं शताब्दी तक सीमित करने की कोशिश की और निराधार तरीके से राजपूतों के प्रति रंजिश निकालते हुए उन्हें निराधार रूप से शक हूण सींथ साबित करने की कोशिश की। वहीं आज के नव सामंतवादी जातियाँ निराधार इतिहास लिख कर उस सोशल मीडिया व इंटरनेट द्वारा फैला कर हमें राजपूत प्रयायवाची या विशेषण शब्द के आधारपर 11वीं सदी तक सीमित करने की फ़िराक में हैं।
दरहसल कई अंग्रेज और वामपंथी (भगवान व भारतीय संस्कृति को न मानाने वाले) इतिहासकारों के इतिहास को धूमिल करने के तर्क इतने बेवकूफी भरे है के कई बार उन्हें पढ़ कर भारतवर्ष इसके अस्तित्व और यहाँ की शोध् पदत्ति पर बहोत हँसी आती है। कोई हिंदुओं को कायर मान और राजपूतों को बहादुर जान के आधार पर विदेशी लिख गया । कोई 36 राजवंशों में मजूद हूल को हूण समझ राजपूतों को आर्य क्षत्रियों और हूनो की मिलीजुली संतान लिख गया। किसी ने तो राजपूतों के लडाके स्वाभाव को देख श्री राम और कृष्ण को ही सींथ और शक लिख दिया। किसी ने द्विज शब्द का अर्थ ब्राह्मण बना दिया किसी गुर्जरा देस पर राज करने वाले सभी वंशों को बेतुका गुर्जर लिख दिया। हद तो तब हो गयी जब किसी ने राजपूतों के अंतर पाये जाने वाली सती प्रथा, विधवा विवाह न होना व मांसाहार के प्रचलन के करण इन्हें विदेशी होने का संदेह जाता कर इतिहास परोस दिया और लिख दिया 6ठी शताब्दी के बाद ही राजपूत क्षत्रियों का उद्भव हुआ।
जबकि C V Vaid, G S ojha , K N Munshi or Dashrath Sharma जैसे महान इतिहासकार इन मतों को सिरे से ख़ारिज कर चुकें हैं और राजपूतों को आर्य क्षत्रिय ही मानते हैं जो की पूर्ण रूप से सत्य भी है।
शुद्ध रघुवंशी क्षत्रिय प्रतिहारों का इतिहास जानने से पहले आइये नजर डालते हैं उस जाती की उतपत्ति के मतों पर जो इस वंश पर झूठा दावा पेश करती है (जिसे NCERT ही नहीं मानता)।
गुज्जर ( गौ + चर ) जाती की उतपत्ति के मत:
डा भगवानलाल इन्द्राजी का गुजर इतिहास :
इनके अनुसार गुजर जाती भारतवर्ष के पश्चिमोत्तर मार्ग द्वारा आई गयी विदेशी जाती है जो प्रथम पंजाब में आबाद होकर धीरे धीरे गुजरात खानदेश की और फैली हालाँकि इसका कोई प्रमाण नहीं है। ये और लिखते है की गुजर कुषाण वंशी राजा कनिष्क के राज्यकाल 078 - 108 ईस्वी के समय भारत आये हालांकि इसका भी कोई प्रमाण नहीं है। ये अपने लेख में आगे और तर्क हीन तथा प्रमानरहित बात करते हुए गुजरात चौथी से आठवी शताब्दी के बीच में राज कर रहे मैत्रक वंश को भी गुर्जर होने का संदेह जाता गए जिसे हवेनत्सांग क्षत्रिय बता कर गया है। इन्होंने अपनी थ्योरी सिद्ध करने के लिए आगे सारी हदें ही पार करदी। ये लिखतें की हालांकि गुजरात में गुज्जरों की कई जातियाँ हैं जैसे गुजर बनिये , गुजर सुथार , गुजर सोनी , गुजर सुनार , गुजर कुंभार , गुजर ब्राह्मण , गुजर सिलावट और सबसे ज्यादा गुजर कुर्मी जो सभी गौचर जाती से बने। निष्चित रूप से इतिहासकार सनकी होते थे और अपना उल्लू सीधा करने के लिए किसी भी हद्द तक ख्याली पुलाव पका पका कर परोस देते थे। जिस कुर्मी जाती के ये बात कर रहें है दरहसल गुजरात का पटेल समुदाय है जो शुद्ध रूप से भारतीय जाती है।
सर काम्बैल की गुजर थ्योरी
सर काम्बैल ने भी अपने ख्याली पुलाव पकाये और गुजर को खजर जाती का ही बता डाला जो 6ठी शतब्दी में यूरोप और एशिया की सीमा पर स्थित के ताकतवर जाती थी। जिसका भी शब्द से शब्द जोड़ कर बनाना और तुक्के बाजी के अलावा कोई प्रमाण नहीं है।
बेडेन पॉवेल के अनुसार गुजर :
"इसमें कोई संदेह नहीं है के पंजाब में भारी संख्या में बसने वाली जातियाँ ये सिद्ध करती है की वेदिशी आक्रमणकरी यथा बाल इंडो सींथियन ,गुजर और हूणों ने अपनों बस्ती बसाई होगी। पर इस कथन का भी इनके पास कोई प्रमाण नहीं।
ए ऍम टी जैकसन और भंडारकर द्वारा अविश्वसनीय गुज्जरों की खोज :
ए ऍम टी जैकसन तो आज के गुज्जरों के जन्मदाता माने जाने चाहिए| सन् 941 में कन्नड़ के सुप्रसिद्ध कवि पम्प जे विक्रमार्जुन विजय (पम्प भारत ) नाम का काव्य रचा| इस काव्य में चोल देश के चालुक्य (सोलंकी) राजा अरिकेसरी द्वितीय और उसके पूर्वजो की शौर्य गाथा लिखी हुई थी। उसमें पम्प यह वर्णन करता है कि अरिकेसरी के पिता नरसिंह द्वितीय (यह राष्ट्रकूटों का सामंत था )ने गुर्जरराज महिपाल को प्रारस्त कर उससे राजश्री छीन और उसका पीछा कर अपने घोड़ो को गंगा के संगम पर स्नान कराया। इस बात की पुष्टि राष्ट्रकूटों के अभिलेख भी करते हैं परंतु इन अभिलेखों में न तो प्रतिहार और ना ही गुजर शब्द का जिक्र मिलता है।
पम्प भारत में गुर्जरराज महिपाल लिखा देख अककल के अंधे जैक्सन ने यह मान लिया की यह महिपालगुर्जर अर्थात गूजर वंश का है। अगर हम किसी महामूर्ख या पागल आदमी से पूछें की गुर्जराराज का क्या अर्थ है ? तो वह भी यही बताएगा की इसका अर्थ तो सीधा साधा गुर्जर देस का राजा हुआ। गुर्जरराज का वास्तविक अर्थ गुर्जरदेस पर राज करने वाला है,गुजर जाती नहीं | यह भी ज्ञात होना बहोत जरूरी है के ऍम टी जैक्सन डिस्ट्रिक कलेक्टर थे इतिहासकार नहीं।
जैक्सन और डा डी आर भंडारकर के पारिवारिक तालुकात थे फिर भी वह इनके द्वारा दिए गए कुछ इतिहासिक विवरणों से इत्तेफाक रखते थे। डा डी आर भंडारकर सन 1907 में पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान भीनमाल पहुचे तो उन्होंने पाया के जैक्सन ने वहां के जिन मंदिरो के शिलालेखों के अध्यन कर बॉम्बे गजेटियर प्रकाशित किया उनके मूल वचन बहोत भ्रष्ट थे अतः भंडारकर ने दुबारा इनकी छाप ली।
राजस्थान दौरे से लौट कर भंडारकर ने इस बात का स्पष्टीकरण भी जैक्सन से माँगा परंतु उसने देने से इंकार कर दिया। जैकसन और भंडारकर में मतभेद काफी समय तक रहे और पत्र व्यव्हार भी होते रहे |
कुछ समय बाद नासिक में कुम्भ का मेला हुआ जिसमे जैक्सन की हत्या कर दी गई। जैक्सन जाते जाते भंडारकर के कान में क्या मन्त्र फूक गया पता नहीं की वो एक दम से जैकसन की हाँ में हाँ मिलाने लग गया।
जैकसन की मृत्यु के बाद उसको श्रधांजलि देते हुए आर जी भंडारकर और स्वयं डी आर भंडारकर ने अपनी संवेदना के पत्र इंडियन antiquery जान 1911 की भाग 40 में प्रकाशित करवाये और उसकी विचारधारा पर आधारित इतिहास का सबसे विवादस्पक लेख "फॉरेन एलिमेंट इन दी हिन्दू पापुलेशन" छापा।
गुरु तो निराधार रूप से प्रतिहार और चावड़ा वंश को ही गुजर बता कर नर्क चला गया परन्तु चेले ने तो और भी कमाल कर दिखाया। संस्कृत श्लोकों के मनमाने अर्थ और मुद्राओं की मनमानी व्याख्या और शिलालेखों की त्रुटिपूर्ण अर्थ निष्पत्ति से आधे गुजरात और तजस्थान को गुजर बतला दिया गया। जैसे भारत के इस हिस्से दूसरी कोई और जाती हो ही नहीं।
यह तो ऐसा पागलपण था जो बीसवीं सदी के बंगाली इतिहासकारों और विद्वानों को अपनी चपेट में ले लिया था । ये प्राचीन भारत के महाकवियों , मूर्धन्य विद्वानों को बंगाली बनाने या सिद्ध करने के जोड़ तोड़ में लगे रहते थे यहां तक की महाकवि कालिदास को भीं इन्होंने नहीं छोड़ा|
भंडारकर का यह पक्षपात उनके समय और बाद के कई इतिहासकारों जैसे डा बिन्दिराज ने दर्ज की। और मनगढ़ंत लिखने के कारण भंडारकर इतिहास के विषय में अपनी क्रेडिबिलिटी खो गए जिसे आज भी साजिश के तहत विकिपीडिया पर दिखाया जाता है।
स्मिथ और उसकी गूजर अवधारणा
गुलाम भारत के आंग्ल इतिहासकार विन्सेंट ए स्मिथ ने ई स की 20 वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में अपने ग्रन्थ ' अर्ली हिस्ट्री ऑफ़ इण्डिया फ्रॉम 600 बी सी टू मोहम्मडन कॉन्क़ुएस्ट' प्रस्तुत किया।
इनके अनुसार प्राचीन लेखों में हूणों के साथ गूजरों का भी उल्लेख मिलता है जो आजकल को गुज्जर जाती है जो उत्तर पश्चिम भारत में निवास करती है। इनके 'अनुमान' से गुज्जर श्वेत हूणों के साथ आये थे और इनके संबंधी थे। इन्होंने राजपूताने में राज्य स्थापित किया और भीनमाल को अपनी राजधानी बनाया। इनके अनुसार भरूच का छोटा सा गुजर सम्राज्य भी राजस्थान के प्रतिहारों की शाखा थी और गुर्जरा की प्रतिहारों ने ही समय पाकर कन्नोज को कब्ज़ा लिया।
अपने से पूर्व आने वाले शक और यु ची ( कुषाण ) लोगों के समान यह विदेशी जाती भी शीघ्र ही हिन्दू धर्म में मिल गई। इनके जिन कुटुम्बों या शाखाओं ने कुछ भूमि पर अधिकार कर लिया वे तत्काल क्षत्रिय (प्रतिहार) और उत्तर भारत के कई दुसरे प्रसिद्ध राजवंश इन्हीं जंगली गुजर समुदाय से निकले हैं जो ई स 5 वीं या 6ठी शताब्दी में हिंदुस्तान आये थे। इन विदेशी सैनिकों और साथियों से गूजर और दूसरी जातियां बनी जो पद और प्रतिष्ठा में राजपूतों से कम थे।
इसी ग्रन्थ के अन्य उल्लेख में स्मिथ कहता है '' इतिहासिक प्रमाणों से भारत में तीन बाहरी जातियाँ सिद्ध हैं जिसमें से शक , कुषाण और का वर्णन कर चूका है। निःसंदेह शक और कुषाण राजाओं ने हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया तब वे हिन्दू जाती प्रथा के अनुसार क्षत्रियों में मिला लिए गए, किन्तु इस कथन के पीछे हमारे पास कोई प्रमाण नहीं है।"( पेज 407, उसी किताब में)।
हा हा हा। तो स्मिथ भईया ने भी कल्पना के घोड़े सांतवे आसमान तक दौड़ा कर भारतीय इतिहास लिख डाला जिसका कोई प्रमाण उनके पास नहीं था। निश्चित ही आर्यों की महान सभ्यता को लांछित कर के वह नर्क ही गए होंगे।
और अंत में स्मिथ हूणों के बारे में कहता है," शक कुशान के बाद भारत में प्रवेश करने वाली तीसरी जाती हूण या श्वेत हूण थी जो पांचवी या छठी शताब्दी के प्रारंभ में यहाँ आई। इन तीनों के साथ कई जातियों ने भारत में प्रवेश किया|
मनुष्यों की जातियाँ निर्णय करने वाली विद्या पुरातत्व और सिक्कों ने विद्वानों के चित्त पर अंकित कर दिया है कि हूणों ने ही हिन्दू संथाओं और हिन्दू राजनीती को हिला कर रख दिया ... हूण जाती ही विशेशकर राजपुताना और पंजाब में स्थाई हुई जैसे भारत में आर्य तो लुप्त ही हो गए।
स्मिथ के कथनानुसार गुर्जर हूणों का एक विभाग है परंतु जनरल cunnigham ' उन्हें यू ची या टोचरि लुटेरी जातियों के वंशज बतातें हैं।"(Cunningham Archeological survey of India,1963-64, भाग 2, पृ 70.)
समीक्षा
निश्चित रूप से इतिहास उत्थान और पतन की कुंजी है | इस रहस्य को समझ क्र अंग्रेजों ने भारतीय इतिहास को विकृत करने की कोशिश करने में अपने पूर्ण सामर्थ्य के साथ योजनाबढ़ काम किया। इस कार्य के लिये मध्यकाल की भारतीय समाज की अज्ञानता और धार्मिक जड़ता के साथ कूप मंडकुता और पराधीनता ने उन्हें मनवांछित फल प्रदान किया है।
यह सत्य है की इतिहासिक शोध की नई प्राणाली के जन्म दाता वही रहे हैं, परंतु यह भी उतना ही सत्य है कि शोध के नाम पर किये गए विश्लेषण में उनके जातीय और राजनीतिक हितों ने जबरदस्त हस्तक्षेप किया है और यह सिलसिला आजादी के बाद उभरी जातियों ने आज भी अपने लाभ के लिए जारी रखा है।
विन्सेंट स्मिथ अर्ली हिस्ट्री और इण्डिया में भारत का प्राचीनतम इतिहास लिख रहा था, तोता मैना की कहानी नहीं। जब वह स्वयं स्वीकार कर रहा है ' इस कथन के पीछे कोई प्रमाण नहीं है। जब प्रमाण ही शून्य है तब उठा कल्पना को इतिहास के कलेवर में रखने की कोनसी विवशता या आवश्यकता थी??
धुनिया रुई घुनंने के लिए रुई पर नहीं तांत पर प्रहार करता है, ठीक यही नीती अंग्रेज लेखकों ने अपनाइ। स्मिथ और उसकी चोकड़ी का निशाना कितना सही था? स्मिथ के निराधार लेख प्रकाशित होते ही राजपूतों को गुजर मानने का प्रवाह इतने वेग से चला कि कई विद्वानों ने चावड़ा , प्रतिहार , परमार , चौहान , तंवर , सोलंकी , राठौड़ , गहरवार आदि आदि को गुजर वंशी बतलाने के लिए कई लेख लिख डाले।
इतिहास की सीमा से परे इस कल्पना ने गूजरों के साथ निम्न जातियों में दूषित भावना भरने की कोशिश की गई जिससे जातीय एकता भंग होने के साथ भारतीय वर्ण व्यवस्था में संदेह और कटुता पैदा हुआ जिससे बंधुत्व भावना गला घोट दिया गया और यही अंग्रेज चाहते थे।
इसी समय अंतराल में भारत वर्ष के तमाम राजवंशों से संभंधित अनेकों तथ्यपूर्ण शिलालेख , ताम्र शाशनपत्र , प्राचीन मुद्राएं और प्राचीन महाकाव्य प्रकाश में आते रहे परन्तु इन साम्राज्य वादी लेखकों ने इस सामग्री की निरंतर अवहेलना की और उनकी परिपाटी पर चलने वाले भारतीय प्रतिग्रही विद्वानों की जड़ता भंग नहीं हुई और वे भी भारतीय इतिहासिक सामग्री से मूहँ मोड़ते हुए अंग्रेजी आकाओं द्वारा शोध के नाम पर प्रस्तुत कूड़ा करकट से अपनी सम्बद्धता प्रदर्शित करते रहे।
यह कितने दुर्भाग्य की बात है बॉम्बे गजट के लिए गुजरात का प्राचीन इतिहास लिखने वाला देशी विद्वान पंडत डॉक्टर भगवानलाल इंद्रजी की धारणा है की गुजर कुषाणों के साथ आये परंतु सिद्ध करने के लिए उसके पास कोई प्रमाण नहीं है। इनका यह कहना है की गुप्तवंशियों के समय इन्हें राजपुताना, गुजरात और मालवा में जागीर मिली हो परंतु इसके लिए भी उन्होंने कोई प्रमाण नहीं दिया। अगर कोई प्रमाण होता तो ढेरों गुप्त अभिलेखों और भड़ौच के गूजरों के अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं।
समीक्षा
निश्चित रूप से इतिहास उत्थान और पतन की कुंजी है | इस रहस्य को समझ क्र अंग्रेजों ने भारतीय इतिहास को विकृत करने की कोशिश करने में अपने पूर्ण सामर्थ्य के साथ योजनाबढ़ काम किया। इस कार्य के लिये मध्यकाल की भारतीय समाज की अज्ञानता और धार्मिक जड़ता के साथ कूप मंडकुता और पराधीनता ने उन्हें मनवांछित फल प्रदान किया है।
यह सत्य है की इतिहासिक शोध की नई प्राणाली के जन्म दाता वही रहे हैं, परंतु यह भी उतना ही सत्य है कि शोध के नाम पर किये गए विश्लेषण में उनके जातीय और राजनीतिक हितों ने जबरदस्त हस्तक्षेप किया है और यह सिलसिला आजादी के बाद उभरी जातियों ने आज भी अपने लाभ के लिए जारी रखा है।
विन्सेंट स्मिथ अर्ली हिस्ट्री और इण्डिया में भारत का प्राचीनतम इतिहास लिख रहा था, तोता मैना की कहानी नहीं। जब वह स्वयं स्वीकार कर रहा है ' इस कथन के पीछे कोई प्रमाण नहीं है। जब प्रमाण ही शून्य है तब उठा कल्पना को इतिहास के कलेवर में रखने की कोनसी विवशता या आवश्यकता थी??
धुनिया रुई घुनंने के लिए रुई पर नहीं तांत पर प्रहार करता है, ठीक यही नीती अंग्रेज लेखकों ने अपनाइ। स्मिथ और उसकी चोकड़ी का निशाना कितना सही था? स्मिथ के निराधार लेख प्रकाशित होते ही राजपूतों को गुजर मानने का प्रवाह इतने वेग से चला कि कई विद्वानों ने चावड़ा , प्रतिहार , परमार , चौहान , तंवर , सोलंकी , राठौड़ , गहरवार आदि आदि को गुजर वंशी बतलाने के लिए कई लेख लिख डाले।
इतिहास की सीमा से परे इस कल्पना ने गूजरों के साथ निम्न जातियों में दूषित भावना भरने की कोशिश की गई जिससे जातीय एकता भंग होने के साथ भारतीय वर्ण व्यवस्था में संदेह और कटुता पैदा हुआ जिससे बंधुत्व भावना गला घोट दिया गया और यही अंग्रेज चाहते थे।
इसी समय अंतराल में भारत वर्ष के तमाम राजवंशों से संभंधित अनेकों तथ्यपूर्ण शिलालेख , ताम्र शाशनपत्र , प्राचीन मुद्राएं और प्राचीन महाकाव्य प्रकाश में आते रहे परन्तु इन साम्राज्य वादी लेखकों ने इस सामग्री की निरंतर अवहेलना की और उनकी परिपाटी पर चलने वाले भारतीय प्रतिग्रही विद्वानों की जड़ता भंग नहीं हुई और वे भी भारतीय इतिहासिक सामग्री से मूहँ मोड़ते हुए अंग्रेजी आकाओं द्वारा शोध के नाम पर प्रस्तुत कूड़ा करकट से अपनी सम्बद्धता प्रदर्शित करते रहे।
यह कितने दुर्भाग्य की बात है बॉम्बे गजट के लिए गुजरात का प्राचीन इतिहास लिखने वाला देशी विद्वान पंडत डॉक्टर भगवानलाल इंद्रजी की धारणा है की गुजर कुषाणों के साथ आये परंतु सिद्ध करने के लिए उसके पास कोई प्रमाण नहीं है। इनका यह कहना है की गुप्तवंशियों के समय इन्हें राजपुताना, गुजरात और मालवा में जागीर मिली हो परंतु इसके लिए भी उन्होंने कोई प्रमाण नहीं दिया। अगर कोई प्रमाण होता तो ढेरों गुप्त अभिलेखों और भड़ौच के गूजरों के अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं।
गुज्जरों की हस्याप्तक जॉर्जियन उतपत्ति
जॉर्जियन गणितज्ञ डा जी चोगोसोविलि और भारतीय भू विज्ञानिक प्रॉ खटाना ने तो 80 के दशक में फेकने की सारी हदें फेंक डाली और गुर्जरों को जॉर्जिया से मिलते जुलते जाती नाम के बेस पर जॉर्जियन ही बता डाला ( भाई शक्ल और सूरत तो देख ली होती कम से कम)। गौर तलब बात यह है की दोनों ही महाशय इतिहासकार नहीं थे परंतु शब्द से शब्द जोड़ कर नई बखर रच डाली। इनके अनुसार गुर्जर जॉर्जिया के जॉर्जत्ति नदी के पास से भारत में सदियों विस्थापित हो सकते है। इन्होने हर उस चीज जिसके नाम के साथ गू शब्द जुड़ा या सम्बन्ध रखता हो को गूजरों से जोड़ कर इतिहास रचने की कोशिश की। हा हा हा परंतु ये दोनों भी अंत में खुद ही लिखते है गूजरों का जॉर्जिया से संभंद प्रमाणित नहीं किया जा सकता पर ये संभावित हो सकता है। जूठ फैलने की हद्द तो हम उसी दिन मान गए जब कई गुज्जरों को अपनी गाड़ियों के पीछे जॉर्जियन लिखवाते देखा। हा हा हा हद्द है।
तो मित्रों प्रतिहारों उतपत्ति के सारे भ्रमों को तोड़ते हुए इस लेख के पहले भाग में हमने यह बताने की कोशिश की कैसे अंग्रेजो ने इतिहास के जरिये भारतीय समाज के अभिन्न अंग क्षत्रियों को विदेशी बता कर उनके और दूसरी जातियों के बीच अविश्वास पैदा करने और दरार पैदा करने की कोशिश की जिससे यह समाज बंटे। बड़े दुर्भाग्य की बात है की अपने जिस इतिहास को वो खुद ही अप्रमाणित कह कर गए है उसका प्रचलन भारतीय समाज को तोड़ने के लिए आज भी किया जा रहा है और राजपूतों को बदनाम किया जा रहा है।
इन्ही कुछ मूर्ख इतिहासकारों का फायदा आज की गुजर जाती के कुछ मूर्ख लोग उठा रहे है और अपने ही समाज को भ्रमित कर रहें है जबकि इनके खुद का इतिहास ही इतना विरोधभासी है और अप्रमाणित है। अपने पूर्वजों का ज्ञान नहीं तो देश के क्षत्रियों को ही अपने बाप दादा साबित करने की कोशिश कर रहें है ताकि पैसे के साथ साथ सम्मान भी मिले।
जबकि डा सी वि वैद्य , दशरथ शर्मा , गौरी शंकर ओझा , बी न मिश्रा बिन्दयराज अदि जैसे न कितने भारतीय इतिहासकार राजपूतों को भारतीय क्षत्रिय साबित कर चुके है सभी प्रमाणों के साथ और विदेशी उत्पीति की बखर को सरा सर नकार चुकें हैं।
इस श्रृंख्ला के अगले भाग में हम आपको वे सारे प्रमाण देंगे जिनसे साफ़ साफ़ पता चलता है प्रतिहारों के शिलालेखों में लिखे गुर्जरा शब्द का अर्थ स्थान सूचक था जिसे जबरदस्ती गुजर जाती बनाने की कोशिश की गयी।
साथ ही साथ डा शांता रानी शर्मा के नए शोध MYTH OF GUJJAR ORIGIN OF PRATIHAR और डॉ ऐरावत सिंह के भी नए शोध THE COLONIAL MYTH OF GURJARA ORIGIN OF PRATIHARAS के बारे में भी बताएँगे जिसमे साफ साफ़ प्रतिहारों की गुज्जर उतपत्ति कि सभी थेओरी का तर्क पूर्ण खण्डन किया गया है। सभी नए शोध उन सभी के मूह पर तमाचा है जो प्रतिहारों को गुज्जर बनाने की कोशिशों में जूटे हुए है और विकिपीडिया जैसी तुच्छ साईट का हवाला देते हैं।
जय माता जी
जय राजपूताना
—== Must share after read this ==
भाइयों आज से हम एक ऐसे क्षत्रिय राजपूत राजवंश के ऊपर अपनी पोस्ट्स की शृंखला शुरू करने जा रहें है जिसके इतिहास को कई विदेशी व उनके देसी वाम्पन्ति इतिहासकारों ने अपने तरह तरह के ख्याली पुलाव व तर्कहीन वादों से दूषित करने की कोशिश की और वे इस कार्य में कुछ हद तक सफल भी रहे। परंतु आज के समय में जब साधन व संसाधन बढ़ गएँ है और सभी प्रकार के ऐतिहासिक साक्ष्य जन साधारण व विशेषज्ञ शोधकर्ताओं के पहुच के भीतर उपलब्ध ही चुके है तो नए विश्लेषण पुराने बेतुके तर्कों के साथ तोड़ मरोड़ कर पेश किये गए इतिहास की कलई खोल रहें हैं।
दरहसल पुरातन काल से ये माना जाता रहा है के इतिहास उसी का होता है जिसका शाशन होता है और शाशक आदिकाल से इतिहास को तोड़ मरोड़ के अपने अनुसार जन साधारण के सामने प्रस्तुत कर उनकी भावनाओं का फायदा उठातें आएं हैं।
भारत में पढ़ाये जा रहे जिस इतिहास को आज हम पढ़तें है व दरहसल 18 वीं सदी में अंग्रेजों द्वारा दी व सिखाई पदत्ति पर आधारित है। और यही नहीं भारत के इतिहास में पढाई जाने वाली ज्यादातर विषय और मान्यताएँ आज आजादी के 68 सालों बाद भी इन्हीं अंग्रेजों की देन है। अब आप अनुमान लगा ही सकते हैं के जो विदेशी भारतीय परम्पराओं व मान्यताओं और उसकी समझ से कोसों दूर थे बिलकुल अलग सभ्यता और संस्कृति से थे वे क्या तो भारत की संस्कृति को समझें होंगे और क्या ही इतिहास बांच के गए होंगे।
दरहसल अंग्रेज भारतीय इतिहास को अपनी सियासत का हिस्सा समझ इससे खेलते रहे और भारतीय समाज की संस्कृति नष्ट करने के लिए व इसका बखूबी इस्तेमाल कर गए। दरहसल आज पढ़ाये जाने वाला भारतीय इतिहास की नींव लगभग उसी समय शुरू हुई जब भारत के लोगों ने अंग्रेजों के शाशन के खिलाफ बिगुल बजाया और सन 1857 की क्रांति का उद्घोष हुआ। ऐसे में ज्यादातर अंग्रेज इतिहासकार भारत पर अपने कमजोर होते शाशन को देख इतिहास को सियासी बिसात पर एक हथियार के भांति इस्तेमाल कर के चले गए। जैसे की हम सभी इस कथन से अनिभिज्ञ नहीं है के यदि आप किसी जाती समुदाय के संस्कृति नष्ट करदे तो उस पर अपनी संस्कृति थोप गुलाम बनाने में देर नहीं लगती। अंग्रेज इस कथन का महत्व जान इतिहास की तोड़ मरोड़ भारत की पर प्रहार संस्कृति व् उसके विनाश के लिए कर गए। इस तोर मरोड़ की चपेट में आकर सबसे ज्यादा जिस जाती को नुकसान झेलना पड़ा वो है भारत का अपना आर्य क्षत्रिय वर्ग जिसका विशेषण शब्द है "राजपूत"।
ये उन अंग्रेजों से कम कहाँ जिन्होंने भारत में रहने वाले आर्य व वेदिक संस्कृति में उतपन्न क्षत्रिय वर्ग जिसका विशेषण राजपूत शब्द था उन्हें 6वीं शताब्दी तक सीमित करने की कोशिश की और निराधार तरीके से राजपूतों के प्रति रंजिश निकालते हुए उन्हें निराधार रूप से शक हूण सींथ साबित करने की कोशिश की। वहीं आज के नव सामंतवादी जातियाँ निराधार इतिहास लिख कर उस सोशल मीडिया व इंटरनेट द्वारा फैला कर हमें राजपूत प्रयायवाची या विशेषण शब्द के आधारपर 11वीं सदी तक सीमित करने की फ़िराक में हैं।
दरहसल कई अंग्रेज और वामपंथी (भगवान व भारतीय संस्कृति को न मानाने वाले) इतिहासकारों के इतिहास को धूमिल करने के तर्क इतने बेवकूफी भरे है के कई बार उन्हें पढ़ कर भारतवर्ष इसके अस्तित्व और यहाँ की शोध् पदत्ति पर बहोत हँसी आती है। कोई हिंदुओं को कायर मान और राजपूतों को बहादुर जान के आधार पर विदेशी लिख गया । कोई 36 राजवंशों में मजूद हूल को हूण समझ राजपूतों को आर्य क्षत्रियों और हूनो की मिलीजुली संतान लिख गया। किसी ने तो राजपूतों के लडाके स्वाभाव को देख श्री राम और कृष्ण को ही सींथ और शक लिख दिया। किसी ने द्विज शब्द का अर्थ ब्राह्मण बना दिया किसी गुर्जरा देस पर राज करने वाले सभी वंशों को बेतुका गुर्जर लिख दिया। हद तो तब हो गयी जब किसी ने राजपूतों के अंतर पाये जाने वाली सती प्रथा, विधवा विवाह न होना व मांसाहार के प्रचलन के करण इन्हें विदेशी होने का संदेह जाता कर इतिहास परोस दिया और लिख दिया 6ठी शताब्दी के बाद ही राजपूत क्षत्रियों का उद्भव हुआ।
जबकि C V Vaid, G S ojha , K N Munshi or Dashrath Sharma जैसे महान इतिहासकार इन मतों को सिरे से ख़ारिज कर चुकें हैं और राजपूतों को आर्य क्षत्रिय ही मानते हैं जो की पूर्ण रूप से सत्य भी है।
शुद्ध रघुवंशी क्षत्रिय प्रतिहारों का इतिहास जानने से पहले आइये नजर डालते हैं उस जाती की उतपत्ति के मतों पर जो इस वंश पर झूठा दावा पेश करती है (जिसे NCERT ही नहीं मानता)।
गुज्जर ( गौ + चर ) जाती की उतपत्ति के मत:
डा भगवानलाल इन्द्राजी का गुजर इतिहास :
इनके अनुसार गुजर जाती भारतवर्ष के पश्चिमोत्तर मार्ग द्वारा आई गयी विदेशी जाती है जो प्रथम पंजाब में आबाद होकर धीरे धीरे गुजरात खानदेश की और फैली हालाँकि इसका कोई प्रमाण नहीं है। ये और लिखते है की गुजर कुषाण वंशी राजा कनिष्क के राज्यकाल 078 - 108 ईस्वी के समय भारत आये हालांकि इसका भी कोई प्रमाण नहीं है। ये अपने लेख में आगे और तर्क हीन तथा प्रमानरहित बात करते हुए गुजरात चौथी से आठवी शताब्दी के बीच में राज कर रहे मैत्रक वंश को भी गुर्जर होने का संदेह जाता गए जिसे हवेनत्सांग क्षत्रिय बता कर गया है। इन्होंने अपनी थ्योरी सिद्ध करने के लिए आगे सारी हदें ही पार करदी। ये लिखतें की हालांकि गुजरात में गुज्जरों की कई जातियाँ हैं जैसे गुजर बनिये , गुजर सुथार , गुजर सोनी , गुजर सुनार , गुजर कुंभार , गुजर ब्राह्मण , गुजर सिलावट और सबसे ज्यादा गुजर कुर्मी जो सभी गौचर जाती से बने। निष्चित रूप से इतिहासकार सनकी होते थे और अपना उल्लू सीधा करने के लिए किसी भी हद्द तक ख्याली पुलाव पका पका कर परोस देते थे। जिस कुर्मी जाती के ये बात कर रहें है दरहसल गुजरात का पटेल समुदाय है जो शुद्ध रूप से भारतीय जाती है।
सर काम्बैल की गुजर थ्योरी
सर काम्बैल ने भी अपने ख्याली पुलाव पकाये और गुजर को खजर जाती का ही बता डाला जो 6ठी शतब्दी में यूरोप और एशिया की सीमा पर स्थित के ताकतवर जाती थी। जिसका भी शब्द से शब्द जोड़ कर बनाना और तुक्के बाजी के अलावा कोई प्रमाण नहीं है।
बेडेन पॉवेल के अनुसार गुजर :
"इसमें कोई संदेह नहीं है के पंजाब में भारी संख्या में बसने वाली जातियाँ ये सिद्ध करती है की वेदिशी आक्रमणकरी यथा बाल इंडो सींथियन ,गुजर और हूणों ने अपनों बस्ती बसाई होगी। पर इस कथन का भी इनके पास कोई प्रमाण नहीं।
ए ऍम टी जैकसन और भंडारकर द्वारा अविश्वसनीय गुज्जरों की खोज :
ए ऍम टी जैकसन तो आज के गुज्जरों के जन्मदाता माने जाने चाहिए| सन् 941 में कन्नड़ के सुप्रसिद्ध कवि पम्प जे विक्रमार्जुन विजय (पम्प भारत ) नाम का काव्य रचा| इस काव्य में चोल देश के चालुक्य (सोलंकी) राजा अरिकेसरी द्वितीय और उसके पूर्वजो की शौर्य गाथा लिखी हुई थी। उसमें पम्प यह वर्णन करता है कि अरिकेसरी के पिता नरसिंह द्वितीय (यह राष्ट्रकूटों का सामंत था )ने गुर्जरराज महिपाल को प्रारस्त कर उससे राजश्री छीन और उसका पीछा कर अपने घोड़ो को गंगा के संगम पर स्नान कराया। इस बात की पुष्टि राष्ट्रकूटों के अभिलेख भी करते हैं परंतु इन अभिलेखों में न तो प्रतिहार और ना ही गुजर शब्द का जिक्र मिलता है।
पम्प भारत में गुर्जरराज महिपाल लिखा देख अककल के अंधे जैक्सन ने यह मान लिया की यह महिपालगुर्जर अर्थात गूजर वंश का है। अगर हम किसी महामूर्ख या पागल आदमी से पूछें की गुर्जराराज का क्या अर्थ है ? तो वह भी यही बताएगा की इसका अर्थ तो सीधा साधा गुर्जर देस का राजा हुआ। गुर्जरराज का वास्तविक अर्थ गुर्जरदेस पर राज करने वाला है,गुजर जाती नहीं | यह भी ज्ञात होना बहोत जरूरी है के ऍम टी जैक्सन डिस्ट्रिक कलेक्टर थे इतिहासकार नहीं।
जैक्सन और डा डी आर भंडारकर के पारिवारिक तालुकात थे फिर भी वह इनके द्वारा दिए गए कुछ इतिहासिक विवरणों से इत्तेफाक रखते थे। डा डी आर भंडारकर सन 1907 में पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान भीनमाल पहुचे तो उन्होंने पाया के जैक्सन ने वहां के जिन मंदिरो के शिलालेखों के अध्यन कर बॉम्बे गजेटियर प्रकाशित किया उनके मूल वचन बहोत भ्रष्ट थे अतः भंडारकर ने दुबारा इनकी छाप ली।
राजस्थान दौरे से लौट कर भंडारकर ने इस बात का स्पष्टीकरण भी जैक्सन से माँगा परंतु उसने देने से इंकार कर दिया। जैकसन और भंडारकर में मतभेद काफी समय तक रहे और पत्र व्यव्हार भी होते रहे |
कुछ समय बाद नासिक में कुम्भ का मेला हुआ जिसमे जैक्सन की हत्या कर दी गई। जैक्सन जाते जाते भंडारकर के कान में क्या मन्त्र फूक गया पता नहीं की वो एक दम से जैकसन की हाँ में हाँ मिलाने लग गया।
जैकसन की मृत्यु के बाद उसको श्रधांजलि देते हुए आर जी भंडारकर और स्वयं डी आर भंडारकर ने अपनी संवेदना के पत्र इंडियन antiquery जान 1911 की भाग 40 में प्रकाशित करवाये और उसकी विचारधारा पर आधारित इतिहास का सबसे विवादस्पक लेख "फॉरेन एलिमेंट इन दी हिन्दू पापुलेशन" छापा।
गुरु तो निराधार रूप से प्रतिहार और चावड़ा वंश को ही गुजर बता कर नर्क चला गया परन्तु चेले ने तो और भी कमाल कर दिखाया। संस्कृत श्लोकों के मनमाने अर्थ और मुद्राओं की मनमानी व्याख्या और शिलालेखों की त्रुटिपूर्ण अर्थ निष्पत्ति से आधे गुजरात और तजस्थान को गुजर बतला दिया गया। जैसे भारत के इस हिस्से दूसरी कोई और जाती हो ही नहीं।
यह तो ऐसा पागलपण था जो बीसवीं सदी के बंगाली इतिहासकारों और विद्वानों को अपनी चपेट में ले लिया था । ये प्राचीन भारत के महाकवियों , मूर्धन्य विद्वानों को बंगाली बनाने या सिद्ध करने के जोड़ तोड़ में लगे रहते थे यहां तक की महाकवि कालिदास को भीं इन्होंने नहीं छोड़ा|
भंडारकर का यह पक्षपात उनके समय और बाद के कई इतिहासकारों जैसे डा बिन्दिराज ने दर्ज की। और मनगढ़ंत लिखने के कारण भंडारकर इतिहास के विषय में अपनी क्रेडिबिलिटी खो गए जिसे आज भी साजिश के तहत विकिपीडिया पर दिखाया जाता है।
स्मिथ और उसकी गूजर अवधारणा
गुलाम भारत के आंग्ल इतिहासकार विन्सेंट ए स्मिथ ने ई स की 20 वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में अपने ग्रन्थ ' अर्ली हिस्ट्री ऑफ़ इण्डिया फ्रॉम 600 बी सी टू मोहम्मडन कॉन्क़ुएस्ट' प्रस्तुत किया।
इनके अनुसार प्राचीन लेखों में हूणों के साथ गूजरों का भी उल्लेख मिलता है जो आजकल को गुज्जर जाती है जो उत्तर पश्चिम भारत में निवास करती है। इनके 'अनुमान' से गुज्जर श्वेत हूणों के साथ आये थे और इनके संबंधी थे। इन्होंने राजपूताने में राज्य स्थापित किया और भीनमाल को अपनी राजधानी बनाया। इनके अनुसार भरूच का छोटा सा गुजर सम्राज्य भी राजस्थान के प्रतिहारों की शाखा थी और गुर्जरा की प्रतिहारों ने ही समय पाकर कन्नोज को कब्ज़ा लिया।
अपने से पूर्व आने वाले शक और यु ची ( कुषाण ) लोगों के समान यह विदेशी जाती भी शीघ्र ही हिन्दू धर्म में मिल गई। इनके जिन कुटुम्बों या शाखाओं ने कुछ भूमि पर अधिकार कर लिया वे तत्काल क्षत्रिय (प्रतिहार) और उत्तर भारत के कई दुसरे प्रसिद्ध राजवंश इन्हीं जंगली गुजर समुदाय से निकले हैं जो ई स 5 वीं या 6ठी शताब्दी में हिंदुस्तान आये थे। इन विदेशी सैनिकों और साथियों से गूजर और दूसरी जातियां बनी जो पद और प्रतिष्ठा में राजपूतों से कम थे।
इसी ग्रन्थ के अन्य उल्लेख में स्मिथ कहता है '' इतिहासिक प्रमाणों से भारत में तीन बाहरी जातियाँ सिद्ध हैं जिसमें से शक , कुषाण और का वर्णन कर चूका है। निःसंदेह शक और कुषाण राजाओं ने हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया तब वे हिन्दू जाती प्रथा के अनुसार क्षत्रियों में मिला लिए गए, किन्तु इस कथन के पीछे हमारे पास कोई प्रमाण नहीं है।"( पेज 407, उसी किताब में)।
हा हा हा। तो स्मिथ भईया ने भी कल्पना के घोड़े सांतवे आसमान तक दौड़ा कर भारतीय इतिहास लिख डाला जिसका कोई प्रमाण उनके पास नहीं था। निश्चित ही आर्यों की महान सभ्यता को लांछित कर के वह नर्क ही गए होंगे।
और अंत में स्मिथ हूणों के बारे में कहता है," शक कुशान के बाद भारत में प्रवेश करने वाली तीसरी जाती हूण या श्वेत हूण थी जो पांचवी या छठी शताब्दी के प्रारंभ में यहाँ आई। इन तीनों के साथ कई जातियों ने भारत में प्रवेश किया|
मनुष्यों की जातियाँ निर्णय करने वाली विद्या पुरातत्व और सिक्कों ने विद्वानों के चित्त पर अंकित कर दिया है कि हूणों ने ही हिन्दू संथाओं और हिन्दू राजनीती को हिला कर रख दिया ... हूण जाती ही विशेशकर राजपुताना और पंजाब में स्थाई हुई जैसे भारत में आर्य तो लुप्त ही हो गए।
स्मिथ के कथनानुसार गुर्जर हूणों का एक विभाग है परंतु जनरल cunnigham ' उन्हें यू ची या टोचरि लुटेरी जातियों के वंशज बतातें हैं।"(Cunningham Archeological survey of India,1963-64, भाग 2, पृ 70.)
समीक्षा
निश्चित रूप से इतिहास उत्थान और पतन की कुंजी है | इस रहस्य को समझ क्र अंग्रेजों ने भारतीय इतिहास को विकृत करने की कोशिश करने में अपने पूर्ण सामर्थ्य के साथ योजनाबढ़ काम किया। इस कार्य के लिये मध्यकाल की भारतीय समाज की अज्ञानता और धार्मिक जड़ता के साथ कूप मंडकुता और पराधीनता ने उन्हें मनवांछित फल प्रदान किया है।
यह सत्य है की इतिहासिक शोध की नई प्राणाली के जन्म दाता वही रहे हैं, परंतु यह भी उतना ही सत्य है कि शोध के नाम पर किये गए विश्लेषण में उनके जातीय और राजनीतिक हितों ने जबरदस्त हस्तक्षेप किया है और यह सिलसिला आजादी के बाद उभरी जातियों ने आज भी अपने लाभ के लिए जारी रखा है।
विन्सेंट स्मिथ अर्ली हिस्ट्री और इण्डिया में भारत का प्राचीनतम इतिहास लिख रहा था, तोता मैना की कहानी नहीं। जब वह स्वयं स्वीकार कर रहा है ' इस कथन के पीछे कोई प्रमाण नहीं है। जब प्रमाण ही शून्य है तब उठा कल्पना को इतिहास के कलेवर में रखने की कोनसी विवशता या आवश्यकता थी??
धुनिया रुई घुनंने के लिए रुई पर नहीं तांत पर प्रहार करता है, ठीक यही नीती अंग्रेज लेखकों ने अपनाइ। स्मिथ और उसकी चोकड़ी का निशाना कितना सही था? स्मिथ के निराधार लेख प्रकाशित होते ही राजपूतों को गुजर मानने का प्रवाह इतने वेग से चला कि कई विद्वानों ने चावड़ा , प्रतिहार , परमार , चौहान , तंवर , सोलंकी , राठौड़ , गहरवार आदि आदि को गुजर वंशी बतलाने के लिए कई लेख लिख डाले।
इतिहास की सीमा से परे इस कल्पना ने गूजरों के साथ निम्न जातियों में दूषित भावना भरने की कोशिश की गई जिससे जातीय एकता भंग होने के साथ भारतीय वर्ण व्यवस्था में संदेह और कटुता पैदा हुआ जिससे बंधुत्व भावना गला घोट दिया गया और यही अंग्रेज चाहते थे।
इसी समय अंतराल में भारत वर्ष के तमाम राजवंशों से संभंधित अनेकों तथ्यपूर्ण शिलालेख , ताम्र शाशनपत्र , प्राचीन मुद्राएं और प्राचीन महाकाव्य प्रकाश में आते रहे परन्तु इन साम्राज्य वादी लेखकों ने इस सामग्री की निरंतर अवहेलना की और उनकी परिपाटी पर चलने वाले भारतीय प्रतिग्रही विद्वानों की जड़ता भंग नहीं हुई और वे भी भारतीय इतिहासिक सामग्री से मूहँ मोड़ते हुए अंग्रेजी आकाओं द्वारा शोध के नाम पर प्रस्तुत कूड़ा करकट से अपनी सम्बद्धता प्रदर्शित करते रहे।
यह कितने दुर्भाग्य की बात है बॉम्बे गजट के लिए गुजरात का प्राचीन इतिहास लिखने वाला देशी विद्वान पंडत डॉक्टर भगवानलाल इंद्रजी की धारणा है की गुजर कुषाणों के साथ आये परंतु सिद्ध करने के लिए उसके पास कोई प्रमाण नहीं है। इनका यह कहना है की गुप्तवंशियों के समय इन्हें राजपुताना, गुजरात और मालवा में जागीर मिली हो परंतु इसके लिए भी उन्होंने कोई प्रमाण नहीं दिया। अगर कोई प्रमाण होता तो ढेरों गुप्त अभिलेखों और भड़ौच के गूजरों के अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं।
समीक्षा
निश्चित रूप से इतिहास उत्थान और पतन की कुंजी है | इस रहस्य को समझ क्र अंग्रेजों ने भारतीय इतिहास को विकृत करने की कोशिश करने में अपने पूर्ण सामर्थ्य के साथ योजनाबढ़ काम किया। इस कार्य के लिये मध्यकाल की भारतीय समाज की अज्ञानता और धार्मिक जड़ता के साथ कूप मंडकुता और पराधीनता ने उन्हें मनवांछित फल प्रदान किया है।
यह सत्य है की इतिहासिक शोध की नई प्राणाली के जन्म दाता वही रहे हैं, परंतु यह भी उतना ही सत्य है कि शोध के नाम पर किये गए विश्लेषण में उनके जातीय और राजनीतिक हितों ने जबरदस्त हस्तक्षेप किया है और यह सिलसिला आजादी के बाद उभरी जातियों ने आज भी अपने लाभ के लिए जारी रखा है।
विन्सेंट स्मिथ अर्ली हिस्ट्री और इण्डिया में भारत का प्राचीनतम इतिहास लिख रहा था, तोता मैना की कहानी नहीं। जब वह स्वयं स्वीकार कर रहा है ' इस कथन के पीछे कोई प्रमाण नहीं है। जब प्रमाण ही शून्य है तब उठा कल्पना को इतिहास के कलेवर में रखने की कोनसी विवशता या आवश्यकता थी??
धुनिया रुई घुनंने के लिए रुई पर नहीं तांत पर प्रहार करता है, ठीक यही नीती अंग्रेज लेखकों ने अपनाइ। स्मिथ और उसकी चोकड़ी का निशाना कितना सही था? स्मिथ के निराधार लेख प्रकाशित होते ही राजपूतों को गुजर मानने का प्रवाह इतने वेग से चला कि कई विद्वानों ने चावड़ा , प्रतिहार , परमार , चौहान , तंवर , सोलंकी , राठौड़ , गहरवार आदि आदि को गुजर वंशी बतलाने के लिए कई लेख लिख डाले।
इतिहास की सीमा से परे इस कल्पना ने गूजरों के साथ निम्न जातियों में दूषित भावना भरने की कोशिश की गई जिससे जातीय एकता भंग होने के साथ भारतीय वर्ण व्यवस्था में संदेह और कटुता पैदा हुआ जिससे बंधुत्व भावना गला घोट दिया गया और यही अंग्रेज चाहते थे।
इसी समय अंतराल में भारत वर्ष के तमाम राजवंशों से संभंधित अनेकों तथ्यपूर्ण शिलालेख , ताम्र शाशनपत्र , प्राचीन मुद्राएं और प्राचीन महाकाव्य प्रकाश में आते रहे परन्तु इन साम्राज्य वादी लेखकों ने इस सामग्री की निरंतर अवहेलना की और उनकी परिपाटी पर चलने वाले भारतीय प्रतिग्रही विद्वानों की जड़ता भंग नहीं हुई और वे भी भारतीय इतिहासिक सामग्री से मूहँ मोड़ते हुए अंग्रेजी आकाओं द्वारा शोध के नाम पर प्रस्तुत कूड़ा करकट से अपनी सम्बद्धता प्रदर्शित करते रहे।
यह कितने दुर्भाग्य की बात है बॉम्बे गजट के लिए गुजरात का प्राचीन इतिहास लिखने वाला देशी विद्वान पंडत डॉक्टर भगवानलाल इंद्रजी की धारणा है की गुजर कुषाणों के साथ आये परंतु सिद्ध करने के लिए उसके पास कोई प्रमाण नहीं है। इनका यह कहना है की गुप्तवंशियों के समय इन्हें राजपुताना, गुजरात और मालवा में जागीर मिली हो परंतु इसके लिए भी उन्होंने कोई प्रमाण नहीं दिया। अगर कोई प्रमाण होता तो ढेरों गुप्त अभिलेखों और भड़ौच के गूजरों के अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं।
गुज्जरों की हस्याप्तक जॉर्जियन उतपत्ति
जॉर्जियन गणितज्ञ डा जी चोगोसोविलि और भारतीय भू विज्ञानिक प्रॉ खटाना ने तो 80 के दशक में फेकने की सारी हदें फेंक डाली और गुर्जरों को जॉर्जिया से मिलते जुलते जाती नाम के बेस पर जॉर्जियन ही बता डाला ( भाई शक्ल और सूरत तो देख ली होती कम से कम)। गौर तलब बात यह है की दोनों ही महाशय इतिहासकार नहीं थे परंतु शब्द से शब्द जोड़ कर नई बखर रच डाली। इनके अनुसार गुर्जर जॉर्जिया के जॉर्जत्ति नदी के पास से भारत में सदियों विस्थापित हो सकते है। इन्होने हर उस चीज जिसके नाम के साथ गू शब्द जुड़ा या सम्बन्ध रखता हो को गूजरों से जोड़ कर इतिहास रचने की कोशिश की। हा हा हा परंतु ये दोनों भी अंत में खुद ही लिखते है गूजरों का जॉर्जिया से संभंद प्रमाणित नहीं किया जा सकता पर ये संभावित हो सकता है। जूठ फैलने की हद्द तो हम उसी दिन मान गए जब कई गुज्जरों को अपनी गाड़ियों के पीछे जॉर्जियन लिखवाते देखा। हा हा हा हद्द है।
तो मित्रों प्रतिहारों उतपत्ति के सारे भ्रमों को तोड़ते हुए इस लेख के पहले भाग में हमने यह बताने की कोशिश की कैसे अंग्रेजो ने इतिहास के जरिये भारतीय समाज के अभिन्न अंग क्षत्रियों को विदेशी बता कर उनके और दूसरी जातियों के बीच अविश्वास पैदा करने और दरार पैदा करने की कोशिश की जिससे यह समाज बंटे। बड़े दुर्भाग्य की बात है की अपने जिस इतिहास को वो खुद ही अप्रमाणित कह कर गए है उसका प्रचलन भारतीय समाज को तोड़ने के लिए आज भी किया जा रहा है और राजपूतों को बदनाम किया जा रहा है।
इन्ही कुछ मूर्ख इतिहासकारों का फायदा आज की गुजर जाती के कुछ मूर्ख लोग उठा रहे है और अपने ही समाज को भ्रमित कर रहें है जबकि इनके खुद का इतिहास ही इतना विरोधभासी है और अप्रमाणित है। अपने पूर्वजों का ज्ञान नहीं तो देश के क्षत्रियों को ही अपने बाप दादा साबित करने की कोशिश कर रहें है ताकि पैसे के साथ साथ सम्मान भी मिले।
जबकि डा सी वि वैद्य , दशरथ शर्मा , गौरी शंकर ओझा , बी न मिश्रा बिन्दयराज अदि जैसे न कितने भारतीय इतिहासकार राजपूतों को भारतीय क्षत्रिय साबित कर चुके है सभी प्रमाणों के साथ और विदेशी उत्पीति की बखर को सरा सर नकार चुकें हैं।
इस श्रृंख्ला के अगले भाग में हम आपको वे सारे प्रमाण देंगे जिनसे साफ़ साफ़ पता चलता है प्रतिहारों के शिलालेखों में लिखे गुर्जरा शब्द का अर्थ स्थान सूचक था जिसे जबरदस्ती गुजर जाती बनाने की कोशिश की गयी।
साथ ही साथ डा शांता रानी शर्मा के नए शोध MYTH OF GUJJAR ORIGIN OF PRATIHAR और डॉ ऐरावत सिंह के भी नए शोध THE COLONIAL MYTH OF GURJARA ORIGIN OF PRATIHARAS के बारे में भी बताएँगे जिसमे साफ साफ़ प्रतिहारों की गुज्जर उतपत्ति कि सभी थेओरी का तर्क पूर्ण खण्डन किया गया है। सभी नए शोध उन सभी के मूह पर तमाचा है जो प्रतिहारों को गुज्जर बनाने की कोशिशों में जूटे हुए है और विकिपीडिया जैसी तुच्छ साईट का हवाला देते हैं।
जय माता जी
जय राजपूताना
राजा भोज और महाकवि कालिदास की कहानी। राजा भोज धार नगरी के राजा थे . उनके यहाँ कालिदास नवरत्नों में शामिल थे। कालिदास और राजाभोज की बहुत सी कहानियां लोकप्रिय हैं
ReplyDeleterajput mahan charvardi samrat mihirbhoj pratihar or parihar ki jai ho jai ho
ReplyDelete👍👍👍
DeleteGujjr h or rahe ge
DeleteKisne bol diya
DeleteShok h kya hmare purvjo ko apna baap bnane ka
Ha Bhai Apne parihar hai support hao
Deleteshai kara appna
Deletejai ho jai ho rajput mahan chakarvardi samrat pratihar or parihar
ReplyDelete8800242322
Abe rajput bhai, gurjar pratiharo ke gurjar hone ke sambandh me aneko abhilekh aur shilalekh mile hai.. lekin aisa ek bhi shilalekh nahi mila jisme unhe rajput likha ho.. agar koi aisa authentic sabut tumhare pas hai to batao warna bakwas karna band kar do.
ReplyDeleteSahi kaha
DeletePiyush bhansala...
DeleteMil Bhai kahi pe tujhe shi krte hain
Are Kya baat h mere gujjr😘😘😘😘😘
DeleteBhai Rajput bhi Gurjar jaati se hi bane h jo Gurjar raja the angrej unhe Rajput kah k bulate the or vahi unki jaati ban gai Rajput jaati koi bahut purani nahi h ye sirf 300 ,400 saal purani ha or Gurjar jaati Ramayan k samay se y
DeleteBeta ram bhagvan bhi Rajput the or unke chote Bhai laksman ko pratihar kaha hai
DeleteAbe rajput bhai, gurjar pratiharo ke gurjar hone ke sambandh me aneko abhilekh aur shilalekh mile hai.. lekin aisa ek bhi shilalekh nahi mila jisme unhe rajput likha ho.. agar koi aisa authentic sabut tumhare pas hai to batao warna bakwas karna band kar do.
ReplyDeleteGzb.👍👌👏
DeleteYe rajput nahi h ye randput h ye log veerta ki baat karte h jinhone hamesha se hi apni bahen or beti mughalo ko di yaar had h aaj se pehle tumne kabhi nahi bola ki raja bhoj rajput the to ab kiyo.....?
ReplyDeleteHad h chutiyapa karne ki
Tumhari okad ni thi Talwar uthane ki , gar me Gus gae the jab ladai Karne ka time aaya to,
DeleteRajput lade or itishas racha.
Tum log Hal chalate rah gae....
Pura pata ni ho to comment mat karna...
Tum Gujjar toh banjaare hote the apna itihaas bhool Gaye kya?
DeleteJab na pata ho to zada na bol thik hai . Nhi to tu bhul jaye ga ki tu kon hai .
Deletebhenchod gujjaro tumhare paas aajtk bhi tumhari khud ki zameen jayedaad nahi hai samjh gaye wikipedia pe itihaas padh ke aao apna fr yaha pe gyaan chodna
DeleteMadarchod tu padh ke aa hamara itihas wikipedia pe tab boliyo. Bhosdike juban chalani ati hai bas. Yeh toh socho ki baap se ulta nhi bolte.Gurjar hai ma chodenge.
DeleteTu guuu mein laga jar hai bhenchodh
DeleteHumne kbhi bola ni ki raja bhoj rajput the to tum log gurjar bna loge unhe
Deletetu rand ka put h
Deleteraandpoot 🤣🤣
Goojri की चूत जमा ही कसूत । ग्वालन की बूर सबसे मुलायम और संतुष्ट करने वाली होती है । इस चूत को मारने कभी तुगलूक़ कभी खलीफा कभी कासिम ओर कभी अंनग्रेज़ों ने भरत आये । और goojri ने उनको सन्तुष्ट किया । पूरी तस्सल्ली से , मेरे दादाजी की रखेल एक goojri ही थी ।
DeleteGoojri की चूत जमा ही कसूत । ग्वालन की बूर सबसे मुलायम और संतुष्ट करने वाली होती है । इस चूत को मारने कभी तुगलूक़ कभी खलीफा कभी कासिम ओर कभी अंनग्रेज़ों ने भरत आये । और goojri ने उनको सन्तुष्ट किया । पूरी तस्सल्ली से , मेरे दादाजी की रखेल एक goojri ही थी ।
DeleteSach to ye bhi h ki pratviraaj chauhan bhi chechi gurjar hi tha tum sab me veerta ki baat hi kaha h sab sale akbar ke sale ho tum log
ReplyDeleteGujar alag h , or Gurjar pratihar alag h...
DeleteBeta india ki History pad , tab pata chalega ki rajput Kya chiz to he...
Rajputo ko baap bna lo na apna bc
DeleteKehdo rana pratap bhi gurjar tha
Bc puri kaum hi anpadh h inki
😂😂 Prithviraj Chauhan Gujjar tha Wah👏👏👏
DeleteKuch na the rajput .ok
DeleteNhi ye gujjar ek dam sahi keh rha hai ek lekh ye bhi milta hai ki maharana pratap gujjar thai dekho kaise
DeleteJab raja shadi krkai bacche krtai toh wo rajput aur agar najayaz kiya toh wo gujjar . Gujjar ka pura arth hai ( g***+jar) toh jiski maa ki humare rajao nai le le kai **** jara di ho wo wo kaise apne vansh ka na ho.
Gujjar aur rajput bhai hai baas fark jayaz aur najayaz ka hai 😂😂😂😂
bhenchod ek hi baar saaf saaf rajputo ko apna baap bana lo na
DeleteChutiye anpadh aadmi gurjar bhnchod
Delete150 saal tkk mughalo ka harem bhra raha h rajputaniyo se
Deleteor kahi search krlo ye baat
chhori chudwa k pandita p t veerta likhvate h ye 🤣🤣
Ha ha ha. Sale hai muglo ke zara izaaat. Se bhai
DeleteGoojri की चूत जमा ही कसूत । ग्वालन की बूर सबसे मुलायम और संतुष्ट करने वाली होती है । इस चूत को मारने कभी तुगलूक़ कभी खलीफा कभी कासिम ओर कभी अंनग्रेज़ों ने भरत आये । और goojri ने उनको सन्तुष्ट किया । पूरी तस्सल्ली से , मेरे दादाजी की रखेल एक goojri ही थी ।
DeleteJai shree devnarayan bhagwan
ReplyDeleteVeer Gurjar jindabaad
Arab ne unhe gurjar kaha,rastrakutas ne
ReplyDeleteUnhe gurjar kaha.suleiman ne unhe gurjar kaha,so masudi ne unhe gurjar kaha.mahakavya me kavi rajshekhar ne samrat mahipal ko dahadta gurjar kaha.
Unhone khud ko gurjar pratihar kaha.
Kya unke kaal me kisi ne bhi unhe rajput kaha ?
Gurjar kesi ne nahi kaha... Sabne Samrat of Gurjara- Prathiraha kaha hai... Tu anpado ke gurjara ko gujjar samajh lya... Gurjara unke pradesh ka naam tha jo unhone jeeta tha which is present day Gujrat...
DeleteOi hoi degree master phle unhe to Lea Jo mulo ke hai bad Mai he kaheo samrat mihir bhoj ke bara mai are chal kuch be ho hamne mulo je Gand to ne chat that tare are beta kan khol ke sun le ek ketab hai lucent Jes Tai upse ke Bache tayari karte hai use lekh Ra hai rajputo ke utpate svsu upr lekh Ra hai gujjar partiharas vans to UU to bat saf hai Kon kes Tai bane thek hai
DeleteAbe gurjara pratihara sanskrit sbd hai aur uska hindi mai anuvaad gurjar pratihar hai jaise yadava ka yadav, rama ka ram , krishana ka krishan
DeletePta hai kuch gawaar
Aur kavi rajshekher ne to gurjar ka kaha hai
Gurjar pratihar ke raaj krne ke baad hi us jagah ka naam gujaratra pda usse phle saurastra,vallabhi,surat,ahirani,ujjaiyni ke naam se jaani jaati thi vo jgh agr shakk hai to guptas ke inscriptions pd le
Historians (not bards) both indian and foreigners like James Todd,aydogdy kurbanov ,densil ibbetson, john keay , irawati karve,baij nath Puri,brij kishore sharma,d b bandarkar ,people of india (anthropogical survey of india) and your own thakur yashpal singh rajpoot claim some of the clans of the rajputs came out of gurjars.
ReplyDeleteIn that sense u can relate to mihir bhoj
Sab log sab itihash kar zhut bolrahe he bash ye ek akela Gyani pada ho gaya hai jo sab ko gyan baat raha h ye ek do log aapne Hi samaj ko puri duniya me badanam karane chale h
ReplyDeleteSab log sab itihash kar zhut bolrahe he bash ye ek akela Gyani pada ho gaya hai jo sab ko gyan baat raha h ye ek do log aapne Hi samaj ko puri duniya me badanam karane chale h
ReplyDeleteMai ek baat kahu pratihar ka agneevansh say koi sambandh nahi hai kyonki agneekund ki jo sahi kahani hai usme pratihar chauhan solanki kisi ka bhi naam nahi hai sirf Parmar ka naam hai vo bhi ek magri parvat ki raksha karne k liye ye jooth hai jo felaya jaa raha hai aap real authentic agneekund ki baare mai jan na or ek sabut bhi tum sab k ghamand todne k liye raja mihir bhoj or pratihar khud ko raja ram k bhai lakshman k pr pote batate hai matlab survanshi hai vo or ram agneekund k legend say bhi pehle k the tou kese koi suryavanshi agneevanshi ho gya
ReplyDeleteJao bohot samaj dar ho tou khud padh lo
ReplyDeleteBhai me aap se nivedan karunga k galat itihas na felaye... #Gurjar pratihar vansh pure Gurjar vansh tha or jaha unhone rule kiya vo jagah bhi #Gurjaratra kehlai(Place ruled and Gaurded By Gurjars).... Kuch history pade fir Bole
ReplyDeleteYe gujjar bhes chura te the ab itihas chura re hain
ReplyDelete9 class ki book mai diya ki sale pastrolists thai ye gujjar gai bhais chor manange nhi na ye
DeleteUp mai inki jaat aur yadav marte hai
Haryana mai jat yadav sai mar khata hai
Rajasthan mai rajput nai phar rakhi hai
Madhya mai toh koi baat hi nhi hai
Maine ek photo dekhi usmai inn gujjaro nai shivaji , pratap , chauhan samet kai aur rajput rajao ko kich liya aare kitna churaogai .
Ye log gai charane mai acche hai baas ye gujjar ahir jaat sab chir hai sale
Dekh liye bahi mugal ke sale bolre hai Jija ji kaha tumahre
DeleteAbe gai to krishan ji bhi charate hai
DeleteAur sun himachal mai ek gaddi Shepard hai vo bhed bakri charate hai jaake unki caste check kon hai vo fir boliyo
Gurjar jaat yadav mehnat krte hai aur desh ke dushman se ladte hai unse samjhota nahi krte
Goojri की चूत जमा ही कसूत । ग्वालन की बूर सबसे मुलायम और संतुष्ट करने वाली होती है । इस चूत को मारने कभी तुगलूक़ कभी खलीफा कभी कासिम ओर कभी अंनग्रेज़ों ने भरत आये । और goojri ने उनको सन्तुष्ट किया । पूरी तस्सल्ली से , मेरे दादाजी की रखेल एक goojri ही थी ।
DeleteBosdik k o gurjara ek state or place tha maa k lodo tum ne gujjar samj liya salo itihas choro
ReplyDeleteRende tuj se na ho payga beta
DeleteYe rajpoot vansh muslimo ke aagman se hi aagman huha......🤭🤭🤭🤭🤗🤗🤗
DeleteAbe saale gurjara ek Sanskrit word hai jiska hindi mai anuvaad gurjar hai jaise gurjara pratihara ka gurjar pratihar,yadav ka yadava,krishan ka krishana, ram ka rama
DeleteAur us jgh ka naam gurjara nahi gurjaratra tha Aur ye naam gurjaro ke raaj krne ke baad hi pda hai usse phle sorastra,surat, ujjaiyni,hathsras,kutch sindh ke naam se jana jata tha
Land ke hon Ladte raho samaj ke name par or ek din phir muslim tumahri gand marenge chutiye hon phele mugal ne mari thi bhul gaye chutiye hoon apan sab hindu he hindu
ReplyDeletemhirbhoj hindu the kon hindu bhoshdi ke hon hindu
ReplyDeleteनीलकुण्ड, राधनपुर, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।राजौर शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।। बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख आभिलेखिक रूप से सर्वप्रथम रूप से हुआ है।aap jara rashtrakut aur palo ke inscription padh lo unhone pratiharo ko apne sabhi shilalekho mein gurjar likha hai… Arab yatriyo ke lekh padho unhone bhi gurjar likha hai….. Kahin bhi rajput shabd hai hi nhi….. Jara rajaour shilalekh padho saaf tor par gurjar likha hai…. Ye toh ho gaye unke gurjar hone ke praman…rajput kounse shilalekh mein likha hai inko…..jara apne rajputo ko ye toh batayo?? Aur aapse kisne bol diya gurjar kshatriya nhi hai zara kisi apne brahman se hi puch lena gurjar kaun hai….ye logo ko kyu pagal bana rahe ho….. Gauri shankar ojha Udaipur state ke history department ka adhaksh tha aur udaipur state rajputo ki hai toh wo bechara kaise apne maliko ki burai karta…. Aur gauri shankar ojha colonel Tod ko apna guru manta tha aur colonel Tod ne aapke baare mein kya kya likha hai zara wo bhi toh apne rajput bhaiyo ko batayo?? Phir colonel Tod ne bhi sahi likha hai tumhare baare mein……. Aur pramaan do ke pratihar rajput thae gurjar nhi……lekh nhi chahiye shilalekh chahiye samjhe ok sirf silalekha
ReplyDeleteगुजरात नाम, गुर्जरत्रा से आया है। गुर्जरो का साम्राज्य ६ठीं से १२वीं सदी तक गुर्जरत्रा या गुर्जरभुमि के नाम से जाना जाता था। गुर्जर एक समुदाय है। [2] प्राचीन महाकवि राजसेखर ने गुर्जरो का सम्बन्ध सूर्यवन्श या रघुवन्श से बताया है।[3] कुछ विद्वान इन्हे मध्य-एशिया से आये आर्य भी बताते है। or ha gujrat gujjaro ke name par pada hai usse phele thang se pad lo historyThe Gujarat was known as ‘अनार्त प्रदेश’(Land in west) during Mahabharat period. Later on it was known as ‘गुर्जर प्रदेश’(Land of Gurjar). From the word ‘Gurjar Pradesh’, the Gujarat name derived.
ReplyDeletejab aap log lakhsman ke purvaj batate ho to प्रतिहार ही बोलो
Deletefir गुर्जर गुर्जर क्या लगा रखा है🚩🚩
और ये सब अपने कर्मो से या अपने नामो से वंश बना देते थे समझे आप लोग लडो मत बस अब अपने सनातन धर्म की रक्षा करो ताकि अब भविष्य में कोई भी गाऊ भक्षी इस पवित्र धर्म के साथ किसी भी तरह की खिलवाड़ ना करे 🚩🚩
please follow my lines🙏🙏
jai sanatan🚩🚩🚩
18 august 1992 court ne kya kha wo bhi check kr lena ab rajput tm dikhao koi silalekh 13th centruy se phele ka jha rajput word mil jaye tm logo ne dusro ki history ko apna btate ho or thang se padhana to pta chal jayga tmhare baap hai gujjar
ReplyDeletesilalekha hai sbse bada proof ok silalekha dekho or pta chal jayga gujjar samrat mihirbhoj samrat kanishk and samrat mihirku hun
ReplyDeletePrithviraj Chauhan bhi kya the ?
DeleteGurjar the
DeleteHeheh... Chutiye !
DeleteThum ho chutya to Jo dusro ke rahja ne be apna bato kuch den Mai khoge ke gujjar be hum he hai pm modi be rajput hai akber be rajput hai kyu ke uske jhoda gye thee
Deleteha kuch chutiye khete hai ki wo gujrat ke name par gujjar kha gya to gujrat ka name phele अनार्त प्रदेश’(Land in west) during Mahabharat period. Later on it was known as ‘गुर्जर प्रदेश’(gujratra means gujjaro ki bhumi)fir wo gujrat bna ab tm kho angrejo ke time par rajsthan ko rajputana ku kha gya chutiyo kuki angrejo ke time par wha rajput the to rajputana kha gya tm log bs dusro ki history ko apna btate ho राजौर शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।
ReplyDeleteराजपूत गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य के सामंत थेIगुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य के पतन के बाद इन लोगों ने स्वतंत्र राज्य स्थापित किएI
Right bro prithviraj vijay mahakavya me bhi yahi likha h
DeleteBhi gjbs👌👌👌👌👌👌👍👍👍👍👍👍
Deleteroyal
ReplyDeleteGurjar samrat mihir bhoj ki murti delhi Aksardham Me lagi Hui h jis par likha he Mahan Gurjar Samrat Mihir bhoj
ReplyDeletebharat ka Nam भरत k Nam par pda h Aryavarat Nam aryo k nam par isi parkar गुजरात्रा gurjaro k Nam par
ReplyDeletePehle jaat ka ithias churaya Ab gurjaro ka chura rhe ho
ReplyDeleteBhaiyo apas m mat lado mihir bhoj gurjar the ya rajput jo bhi ho hum sabhi ko garv hona chaiye k vo hindu the so apas me mat lado aur sab mil jul k rho ...
ReplyDeleteMera baas ek sawal agar gujjaro ki itni hi chalti hai toh phir kahi pai powerful kyu nhi hai ek rajya gina dai jaha unsai powerful koi nhi hai
ReplyDeleteBihar - yadav , rajput , bhumihar
Up - thakur , brahmin, yadav .
Mp - thakur , brahmin, kurmi.
Himachal - rajput , brahmin.
Uttaranchal - rajput , brahmin.
Punjab - jaat , dalit.
Haryana - jaat , yadav , brahmin .
Rajasthan - jaat , rajput , meena , gujjar.
Ek rajya wo bhi rajasthan jaha par inki chalti nhi kota region mai thori bahut bass uspai urtai hai delhi ncr mai jaato sai lar kar kya kabara salo .
Mujhe yaad ek baat west up ki jisko ye gujjar land kehtai hai mujhe ye ek yadav nai batai thi ki ( ye maat samjhna ki mai wo tumhari rando ki jori yadavjaatgujjar tor rha hu mai sach bata rha hu ) ek baar ek yadav ko gujjar aur tyagi kai larko nai maar diya tha uskai baad college kai baad yadav kai larkai pura katta lathi chain lekar aaye aur wo mara gujjaro ko sale nai dubara uss college mai yadav ko chua nhi.
https://www.youtube.com/watch?v=txtThUcCenM
ReplyDeleteis link mai ek video hi jis gujjar kai gand mai dum hai wo jabab de ke dikhai ban ka lora sale bhais chor .
Jai RAJPUTANA bhai
DeleteBosdike apas me shero ki tarah ladrhe hooo...isliye jnu chadni chowk kashmir mhari gaand marli jatii hai.....
ReplyDeleteSab fake hai. Gurjaro ka itihaas janna ho to wikipedia par search karo.
ReplyDeletesilakh kabhi jhuth anhi bolte par tum log lato jke bhut ho abto se nahi manoge
DeleteYeh jisne page banaya hai vo bhosdiwala hai.......
ReplyDeleteKute bhok te hai bhokne do unhe.....
Bhi you are right
Deletekyada mat bol verna tere sambandiyoh ki itni badi list dunga ki bolna bhul jayega
Deletesabho pata hai tumhare mughlo se aur angrejo se kaise sambandh the
Deletehttps://youtu.be/bs8Uax879-0
ReplyDeleteराजपूत राजस्थान के प्रतापी राजा थे, इन्होंने ना अंग्रेजो के सामने सर झुकाया और ना ही अंग्रेजो के कहने पर हाथों में चूड़ियां पहनी(जैसा मंकर्निका फिल्म में दिखाया है) और ना ही मुसलमानों के दवाब में आकर अपनी बेटियों की शादी मुस्लिमो से की , राजपूतों मे बहुत एकता थी ( आमेर के राजाओं में कुछ ज्यादा ही) और राजपूत वीर थे प्रतापी थे, फिर भी पता नहीं क्यों मुस्लिम हिंदुस्तान में घुस आए और आंग्रेज इनकी नाक के नीचे २०० साल तक हिंदुस्तान पर राज करते रहे, ३५० साल तक गुर्जर राजाओं ने अरबियो को हिंदुस्तान में घुसने नहीं दिया ये बात कोई नहीं बोलता,
ReplyDeleteमैं राजपूतों के बारे में गलत नहीं बोलता, लेकिन जो राजपूत, गुर्जर राजाओं और बिरादरी के बारे में गलत बोलते हैं मुझे उनके राजपूत होने पर सक होता है, और सच कहूं तो राजपूतों में एकता ही होती तोह किस मुस्लिम राजा की इतनी औकात थी जो महाराणा प्रताप जी से राज छीन लेता और रणथंभोर को छीन लेता, ये आज बात करते हैं कि इतिहास बादल दिया गया,,,, अच्छा हुआ जो बदल दिया नहीं तोह आगे की हिन्दू पीढ़ी इनका इतिहास पढ़कर पता नहीं क्या सोचती इनकी एकता के बारे में,
खैर ये सब कोई राजपूत सुनेगा तोह उसको बुरा लगेगा मुझे भी लगता है जब कोई मेरी जात बिरादरी और इतिहास के बारे में गलत बोलता है लेकिन मेरी बातों में सच्चाई है आप इसके बारे में इतिहास की किताबें पढ़ सकते हैं,,
राजस्थान में राजपूतों का नाम इसलिए लिया जाता है क्योंकि आखिरी समय पर राजपूत थे,लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिए कि राजस्थान और पश्चिमी भारत की रक्षा ४०० से ज्यादा समय तक गुर्जर राजाओं ने की थी, ये बात समझने के लिए बाप गुर्जर प्रतिहार पढ़ सकते हैं और मैं एक लिंक डाल रहा हूं जिसपर जाकर आप पाकिस्तानी प्रोफेसर के मुंह से गुर्जर बिरादरी के बारे में और बहुत कुछ सुन सकते हैं जिन्होंने गुर्जर बिरादरी पर ही अपनी पूरी पढ़ाई करी हैं,
और हां गुर्जर बिरादाई को समझना सबकी औकात नहीं है इसको वो समझ सकता है जिसने गुर्जरी का दूध पिया हो,
राजपूत तोह खुद ये मानते थे कि गुरजरी माता का दूध बलशाली,प्रतापी और योद्धा होता है तभी तोह धायमा होती थी
क्योंकि राजपूत राजा खुद ये मानते थे कि एक राजपूती औरत के दूध में वो बात नहीं है जो एक गुरजारी के दूध में होती हैं,
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https://youtu.be/IiPCS1XGiH4
राजपूत राजस्थान के प्रतापी राजा थे, इन्होंने ना अंग्रेजो के सामने सर झुकाया और ना ही अंग्रेजो के कहने पर हाथों में चूड़ियां पहनी(जैसा मंकर्निका फिल्म में दिखाया है) और ना ही मुसलमानों के दवाब में आकर अपनी बेटियों की शादी मुस्लिमो से की , राजपूतों मे बहुत एकता थी ( आमेर के राजाओं में कुछ ज्यादा ही) और राजपूत वीर थे प्रतापी थे, फिर भी पता नहीं क्यों मुस्लिम हिंदुस्तान में घुस आए और आंग्रेज इनकी नाक के नीचे २०० साल तक हिंदुस्तान पर राज करते रहे, ३५० साल तक गुर्जर राजाओं ने अरबियो को हिंदुस्तान में घुसने नहीं दिया ये बात कोई नहीं बोलता,
ReplyDeleteमैं राजपूतों के बारे में गलत नहीं बोलता, लेकिन जो राजपूत, गुर्जर राजाओं और बिरादरी के बारे में गलत बोलते हैं मुझे उनके राजपूत होने पर सक होता है, और सच कहूं तो राजपूतों में एकता ही होती तोह किस मुस्लिम राजा की इतनी औकात थी जो महाराणा प्रताप जी से राज छीन लेता और रणथंभोर को छीन लेता, ये आज बात करते हैं कि इतिहास बादल दिया गया,,,, अच्छा हुआ जो बदल दिया नहीं तोह आगे की हिन्दू पीढ़ी इनका इतिहास पढ़कर पता नहीं क्या सोचती इनकी एकता के बारे में,
खैर ये सब कोई राजपूत सुनेगा तोह उसको बुरा लगेगा मुझे भी लगता है जब कोई मेरी जात बिरादरी और इतिहास के बारे में गलत बोलता है लेकिन मेरी बातों में सच्चाई है आप इसके बारे में इतिहास की किताबें पढ़ सकते हैं,,
राजस्थान में राजपूतों का नाम इसलिए लिया जाता है क्योंकि आखिरी समय पर राजपूत थे,लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिए कि राजस्थान और पश्चिमी भारत की रक्षा ४०० से ज्यादा समय तक गुर्जर राजाओं ने की थी, ये बात समझने के लिए बाप गुर्जर प्रतिहार पढ़ सकते हैं और मैं एक लिंक डाल रहा हूं जिसपर जाकर आप पाकिस्तानी प्रोफेसर के मुंह से गुर्जर बिरादरी के बारे में और बहुत कुछ सुन सकते हैं जिन्होंने गुर्जर बिरादरी पर ही अपनी पूरी पढ़ाई करी हैं,
और हां गुर्जर बिरादाई को समझना सबकी औकात नहीं है इसको वो समझ सकता है जिसने गुर्जरी का दूध पिया हो,
राजपूत तोह खुद ये मानते थे कि गुरजरी माता का दूध बलशाली,प्रतापी और योद्धा होता है तभी तोह धायमा होती थी
क्योंकि राजपूत राजा खुद ये मानते थे कि एक राजपूती औरत के दूध में वो बात नहीं है जो एक गुरजारी के दूध में होती हैं,
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https://youtu.be/IiPCS1XGiH4
It is right post that king Mihirbhoj is a rajput but not Gujjar.
ReplyDeleteJai mahan rajput samrat raja mihir bhoj ji❤
ReplyDeleteजय गुर्जर सम्राट मिहिर भोज
ReplyDeleteगुर्जर का अर्थ होता है ,(यह एक संस्कृत का शब्द है) शत्रुओं का नाशक
ReplyDeleteSamrat Mihir Bhoj pratihar Rajput Vansh
Ke Raja the Gurjar purane jamane main
Gujarat ka naam tha na ki Gujarat the
Samrat Mihir Bhoj pratihara Rajput Raja
the
Badgujar Rajput Hote Hai Badgujar se
Gujjar nikale Hai DNA test Karva Kar
Dekh lena sacchai pata chal jaega
Badgujar se Gujjar nikala hai
Rajputon ki Naajayaz Aulad hote hai
Gujjar
Gujjar log pahle Bhains Churane ka
Kam Karte the Itihaas gavah hai
Gujjar log dusron ka Itihaas chuda rahe
hai
Samrat Mihir Bhoj pratihar Rajput Raja
the
Prithviraj Singh Chauhan Rajput Raja
the yeh Sab Ko Pata Hai
Chakravati gurjar samrat mihir bhoj ki jai
ReplyDeleteAgr veh gurjar nahi hai to koi shilalekh dikhado jisme unke rajput hone ka warnan ho
Aur mujhe apne gurjar hone pr grv hai kyu mere samaaj ne aaj tk is desh se gaddari nahi kri jaise ki rajput raja maan singh aur rajput raja jaichand ne kri thi
Yeh kuch itihaas chor hai jo saale. Gawaar jaahil hai ek. No. Ke
Gurjar PRATIHAAR RAAJVANSH gurjaro ka hi tha iska varnan khud albaruni ne apni kitaab mai kiya hai
Aur kavi raj shekhar bhi apne kavya mai GURJAR SAMRAT ko dahadta gurjar kehte hai
Aur gurjaro ko bhaish chor kehne wlo phli baat.to gurjaro ne bhaish chori ka arop nahi cattles steel ka arop tha aur ye angrejo ne inpr lagaya tha kyuki 1857 k gadar mai meerut ke krantikarii kotwal dhan singh gurjar ji ne angrejo ke ghode kholker hindustani kediyo ko diye the jo jail mai bnd the apni azaadi ki ladai ki wjh se.
Isi liye angrejo ne gurjaro ko criminal tribes act mai bhi dala tha
Kyuki gurjaro mai gutts the hr challenge ko face krne ka veh sirf dikave ke liye apni much nahi marod te the
Aur rahi baat gurjar samrat prithviraaj chouhan ji ki to unke vanshaj jo yudh mai bache the unse jaake mil lo vo shamli kairana uttarpradesh mai aaj bhi reh te hai aur tumse jyada pta hai unhe
Arey in randputo ko apne Jija ka naam he ni pta bhosdi k bhul gye ye ek chudakad kom hinki bahu betiya sada dusro p chudi ye kuch ni kr paye aaj tk enpe na padmawati ruki na ye muglo ko rok paye bus ethihas churana aata h en bhn k lando ko.. randputo ko
ReplyDeleteAre proof to do bosdko 😆, unke gurjar hone k hazaro proof h tmhre paas kya h bs kshatriya word or vo b koi caste nhi hoti vo ek varn h, bhagwat geta or rigveda pdo khud clear ho jayega kon khstriya hote the, or mihirbojh muglo se lade the tumhri trh muglo ko apni betiya ni di thi smjha
ReplyDeleteGoojri की चूत जमा ही कसूत । ग्वालन की बूर सबसे मुलायम और संतुष्ट करने वाली होती है । इस चूत को मारने कभी तुगलूक़ कभी खलीफा कभी कासिम ओर कभी अंनग्रेज़ों ने भरत आये । और goojri ने उनको सन्तुष्ट किया । पूरी तस्सल्ली से , मेरे दादाजी की रखेल एक goojri ही थी ।🤣🤣🤣😂😂😉
DeleteGoojri की चूत जमा ही कसूत । ग्वालन की बूर सबसे मुलायम और संतुष्ट करने वाली होती है । इस चूत को मारने कभी तुगलूक़ कभी खलीफा कभी कासिम ओर कभी अंनग्रेज़ों ने भरत आये । और goojri ने उनको सन्तुष्ट किया । पूरी तस्सल्ली से , मेरे दादाजी की रखेल एक goojri ही थी ।
ReplyDeletehamari yaha rajputani rakhel toh nahi thi lekin hmari dadi thi
DeleteHogi goojri but lala Padmavati kon thi 😂🤣 kisne kisko santosth luliya mc
DeleteKis ittihas ki baat kar rhe hain ye madarchod jodha chudwa di apni aammi angrejo se chudwa di or ye sale randput itihas ka lodaa bi jante nhi inke aabu ne sari haan apni ammi muglo ke yha lagvaye rakhte the sare desh ki asi tasi kara di gandwo ne bosdike salman khan bi rajput hi hain uski mummy rajput hain
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