#Gujjarexpose
#jaatexpose
मित्रों यह उपर के तीन चित्रों में पहला परिहारों की शाखा इंदा परिहारों का सिंबल जो आपको मंडौर जोधपुर राजस्थान में ज्यादा संख्या में मिलेंगे। दूसरा अलीपुरा राज्य का सिंबल है यह राज्य आपको मध्य प्रदेश के ग्वालियर में मौजूद है। तीसरा खनेती राज्य जो वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में है। बीच में परिहारों का सबसे बड़ा राज्य नागौद रियासत जो मध्य प्रदेश के सतना जिला मे वर्तमान में है।जिसमें बीच में राज्य का सिंबल ओर दोनों साइड रियासत के आखिरी महाराजा महेन्द्र सिंह जू देव जी है। फिर चौथा सिंबल बेलासर के पडिहार राजपूत शासक का है जो उन्हें बीकानेर रियासत द्वारा मिला है। पांचवे में सूर्य का चित्र है क्योंकि हम सूर्यवंशी क्षत्रिय है।छठे मे हमारे वंश के कुल भूषण महान वीर शासक आदिवाराह परमेश्वर सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार जी का चित्र है। इन सब की जानकारी आपको इंटरनेट पर भी उपलब्ध मिलेगी। यह अफवाह जो है कि हम अग्निवंशी क्षत्रिय है। यह सरासर कपोकाल्पनिक है। परिहार वंश का निकास श्रीराम जी के अनुज लक्ष्मण जी से है जो वह प्रतिहार(प्रहरी) के रूप मे थे इसलिए आंगे चलकर इसे प्रतिहार वंश के नाम से जाना जाता है जो शिलालेखों ओर इतिहास में पूर्णतः माना गया है परिहार वंश का हद से ज्यादा शोध होने पर ही आज यह दुर्गति है। कहीं अग्निवंशी तो कहीं गुर्जर जाति से जोडा गया है। मित्रों आज मैं आपको बताना चाहता हूं कि प्रतिहार राजपूतों के साथ गुर्जारा शब्द क्यों जुड गया है। प्राचीन गुर्जररात्र के बाहर निवास करने वाली अनेक जातिया गुर्जर नाम से जानी जाती हैँ। इनमे सौराष्ट्र और कच्छ में मिलने वाली गुर्जर ब्राह्मण, गुर्जर मिस्त्री, गुर्जर लोहार, गुर्जर बढ़ई आदि अनेक जाती हैँ जिन्हें सिर्फ प्राचीन गुर्जरात्र से आने की वजह से गुर्जर कहा जाता है। बाकी इनमे कोई racial similarity नही हैँ। इसी तरह उत्तर महाराष्ट्र में एक ही जगह डोरे गुर्जर, लेवा गुर्जर और कडवा गुर्जर नाम की अलग अलग जातिया मिलती हैँ। इनमे से डोरे गुर्जर अपने को राजपूत कहते हैँ और प्राचीन गुर्जरात्र से आया बताते हैँ। इनमे प्राचीन गुजरात में मिलने वाले राजपूत वंश ही मिलते हैँ। हालांकि नॉन राजपूतो में शादी करने से इनका स्टेटस low हो गया है, इसीलिए local राजपूत इनको हेय दृष्टि से देखते हैँ। लेवा गुर्जर अपने को गुजरात से आए लेवा कुनबी बताते हैँ जो अब वहा पाटीदार या पटेल के नाम से भी जाने जाते हैँ। कडवा गुर्जर गुजरात से आए कडवा कुनबी हैँ। इन तीनो जातियो में कोई racial similarity नही हैँ।
इसी तरह नार्थ वेस्ट इंडिया में मिलने वाली एक गुर्जर चरवाहा जाती जो अपने को तथाकथित प्राचीन गुर्जर जाती का वंशज बताती है, वो भी गुजरात से आने के कारण ही गुर्जर कहलाई है। इसके कोई प्रमाण नही है की अगर कोई गुर्जर जाती थी भी तो यह जाती उसकी वंशज है। गौरतलब है की इस जाती में तथाकथित गुर्जर बताए जाने वाले प्रतिहार, सोलंकी आदि वंश बिलकुल नही मिलते। गौरतलब है की जहाँ प्राचीन गुर्जरात्र की सीमाए थी वहॉ कोई गुर्जर नाम की जाती नही मिलती। सभी गुर्जर नाम की जातिया इस क्षेत्र के बाहर ही मिलती हैँ इससे यह साबित होता है कि गुर्जर शब्द एक geographical expression को denote करता है। गुर्जर शब्द भी एक शिलालेख पर अब तक मिला ओर परिहारों के अब तक के किसी भी ताम्रपत्र ओर शिलालेख मे इस शब्द ओर जाति का वर्णन नहीं मिला जिससे यह प्रमाणित है कि प्रतिहार परिहार ओर उनकी अन्य शाखाऐं शुद्ध क्षत्रिय राजपूत वंश है। इतिहास हमारे साथ है यह केवल कुछ नीच जातियाँ खुद को क्षत्रिय साबित होने का पड़यंत्र कर रही है। खासकर जाट ओर गुज्जर इनमें प्रमुख है।ओर आजकल तो दिल्ली के कुछ इलाकों का नामकरण भी इन गुज्जरो ने गुर्जर सम्राट मिहिर भोज जी के नाम से रखा है।ओर तो दिल्ली का ही बहुत ही फेमस मंदिर अक्षरधाम आप सभी ने देखा ओर सुना होगा वहां भी मिहिर भोज परिहार जी की मूर्ति स्थापित कर उस पर गुर्जर सम्राट बताया ओर प्रदर्शित किया जा रहा है। मित्रों आप सभी हमारा साथ दीजिए इस भ्रम को दूर करने में इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करके।।।
वंश - सूर्यवंशी परिहार क्षत्रिय।।
कुलदेवी - चामुण्डा देवी।।
गोत्र - कौशिक।।
जय माँ भवानी।
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मित्रों यह उपर के तीन चित्रों में पहला परिहारों की शाखा इंदा परिहारों का सिंबल जो आपको मंडौर जोधपुर राजस्थान में ज्यादा संख्या में मिलेंगे। दूसरा अलीपुरा राज्य का सिंबल है यह राज्य आपको मध्य प्रदेश के ग्वालियर में मौजूद है। तीसरा खनेती राज्य जो वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में है। बीच में परिहारों का सबसे बड़ा राज्य नागौद रियासत जो मध्य प्रदेश के सतना जिला मे वर्तमान में है।जिसमें बीच में राज्य का सिंबल ओर दोनों साइड रियासत के आखिरी महाराजा महेन्द्र सिंह जू देव जी है। फिर चौथा सिंबल बेलासर के पडिहार राजपूत शासक का है जो उन्हें बीकानेर रियासत द्वारा मिला है। पांचवे में सूर्य का चित्र है क्योंकि हम सूर्यवंशी क्षत्रिय है।छठे मे हमारे वंश के कुल भूषण महान वीर शासक आदिवाराह परमेश्वर सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार जी का चित्र है। इन सब की जानकारी आपको इंटरनेट पर भी उपलब्ध मिलेगी। यह अफवाह जो है कि हम अग्निवंशी क्षत्रिय है। यह सरासर कपोकाल्पनिक है। परिहार वंश का निकास श्रीराम जी के अनुज लक्ष्मण जी से है जो वह प्रतिहार(प्रहरी) के रूप मे थे इसलिए आंगे चलकर इसे प्रतिहार वंश के नाम से जाना जाता है जो शिलालेखों ओर इतिहास में पूर्णतः माना गया है परिहार वंश का हद से ज्यादा शोध होने पर ही आज यह दुर्गति है। कहीं अग्निवंशी तो कहीं गुर्जर जाति से जोडा गया है। मित्रों आज मैं आपको बताना चाहता हूं कि प्रतिहार राजपूतों के साथ गुर्जारा शब्द क्यों जुड गया है। प्राचीन गुर्जररात्र के बाहर निवास करने वाली अनेक जातिया गुर्जर नाम से जानी जाती हैँ। इनमे सौराष्ट्र और कच्छ में मिलने वाली गुर्जर ब्राह्मण, गुर्जर मिस्त्री, गुर्जर लोहार, गुर्जर बढ़ई आदि अनेक जाती हैँ जिन्हें सिर्फ प्राचीन गुर्जरात्र से आने की वजह से गुर्जर कहा जाता है। बाकी इनमे कोई racial similarity नही हैँ। इसी तरह उत्तर महाराष्ट्र में एक ही जगह डोरे गुर्जर, लेवा गुर्जर और कडवा गुर्जर नाम की अलग अलग जातिया मिलती हैँ। इनमे से डोरे गुर्जर अपने को राजपूत कहते हैँ और प्राचीन गुर्जरात्र से आया बताते हैँ। इनमे प्राचीन गुजरात में मिलने वाले राजपूत वंश ही मिलते हैँ। हालांकि नॉन राजपूतो में शादी करने से इनका स्टेटस low हो गया है, इसीलिए local राजपूत इनको हेय दृष्टि से देखते हैँ। लेवा गुर्जर अपने को गुजरात से आए लेवा कुनबी बताते हैँ जो अब वहा पाटीदार या पटेल के नाम से भी जाने जाते हैँ। कडवा गुर्जर गुजरात से आए कडवा कुनबी हैँ। इन तीनो जातियो में कोई racial similarity नही हैँ।
इसी तरह नार्थ वेस्ट इंडिया में मिलने वाली एक गुर्जर चरवाहा जाती जो अपने को तथाकथित प्राचीन गुर्जर जाती का वंशज बताती है, वो भी गुजरात से आने के कारण ही गुर्जर कहलाई है। इसके कोई प्रमाण नही है की अगर कोई गुर्जर जाती थी भी तो यह जाती उसकी वंशज है। गौरतलब है की इस जाती में तथाकथित गुर्जर बताए जाने वाले प्रतिहार, सोलंकी आदि वंश बिलकुल नही मिलते। गौरतलब है की जहाँ प्राचीन गुर्जरात्र की सीमाए थी वहॉ कोई गुर्जर नाम की जाती नही मिलती। सभी गुर्जर नाम की जातिया इस क्षेत्र के बाहर ही मिलती हैँ इससे यह साबित होता है कि गुर्जर शब्द एक geographical expression को denote करता है। गुर्जर शब्द भी एक शिलालेख पर अब तक मिला ओर परिहारों के अब तक के किसी भी ताम्रपत्र ओर शिलालेख मे इस शब्द ओर जाति का वर्णन नहीं मिला जिससे यह प्रमाणित है कि प्रतिहार परिहार ओर उनकी अन्य शाखाऐं शुद्ध क्षत्रिय राजपूत वंश है। इतिहास हमारे साथ है यह केवल कुछ नीच जातियाँ खुद को क्षत्रिय साबित होने का पड़यंत्र कर रही है। खासकर जाट ओर गुज्जर इनमें प्रमुख है।ओर आजकल तो दिल्ली के कुछ इलाकों का नामकरण भी इन गुज्जरो ने गुर्जर सम्राट मिहिर भोज जी के नाम से रखा है।ओर तो दिल्ली का ही बहुत ही फेमस मंदिर अक्षरधाम आप सभी ने देखा ओर सुना होगा वहां भी मिहिर भोज परिहार जी की मूर्ति स्थापित कर उस पर गुर्जर सम्राट बताया ओर प्रदर्शित किया जा रहा है। मित्रों आप सभी हमारा साथ दीजिए इस भ्रम को दूर करने में इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करके।।।
वंश - सूर्यवंशी परिहार क्षत्रिय।।
कुलदेवी - चामुण्डा देवी।।
गोत्र - कौशिक।।
जय माँ भवानी।
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