Thursday, March 31, 2016

Pratihar / Parihar Empire of india


 
भारत के इतिहास में कुछ वंश बहुत महत्वपूर्ण रहे हैं, उनके साम्राज्य बड़े विस्तृत थे और उन्होंने साहित्य का भी बड़ा प्रसार किया । कुछ वंशो ने , जिनको जिस धर्म में आस्था थी उनको बहुत फैलाया, परन्तु क्षत्रिय सभी धर्मो के प्रति उदार और सहिष्णु थे। शासक वर्ग जिस धर्म को मानता था, उसके आलावा अन्य धर्मों को संरक्षण प्रदान करते थे एवं दान-पुण्य देकर प्रोत्साहन देते थे । भारत के महान साम्राज्यों में प्रतिहारों (परिहार) का भी एक बड़ा साम्राज्य रहा है ।

इसकी एक विशेषता रही है की मौर्य, नागवंश तथा गुप्तवंश आदि उनके विरोधी दुश्मन एक तरफ ही थे , जिससे उपरोक्त वंशों के शासकों को अपने राज्यों तथा साम्राज्य के एक ही दिशा में शत्रु का सामना करना पड़ता था जिससे वे सफल भी रहे । परन्तु प्रतिहारों के पश्चिम में खलीफा जैसी विश्व विजयी शक्ति से इनका मुकाबला चलता था । दक्षिण में राष्ट्रकूटों ( राठोड़ो) से टक्कर थी जो की किसी भी सूरत में इनसे कम शक्तिशाली नहीं थे । पूर्व में बंगाल के पाल भी इनके शत्रु थे, वे इन जितने शक्तिशाली नहीं थे, फिर भी प्रतिहारों(परिहार) को उनसे युद्धों में व्यस्त रहना पड़ता था । अरब जो की इनके शत्रु थे, उनके एक व्यापारी ने लिखा है की प्रतिहारों (परिहार) को अपने साम्रज्य की समस्त दिशाओं में ( चारो ओर) लाखों की संख्या में सैनिक रखने पड़ते हैं । इस प्रकार मौर्य, नागों और गुप्तों के मुकाबले में प्रतिहारों की शक्ति का आकलन किया जाये तो प्रतिहारों की शक्ति उनसे अधिक होना सिद्ध होता है ।

आधुनिक इतिहासकारों ने प्रतिहारो को गुर्जर प्रतिहार लिखना शुरू कर दिया जबकि प्रतिहारो ने अपने आप को कभी गुर्जर प्रतिहार नहीं लिखा । इतिहासकार के. एम. मुन्शी ने अपनी पुस्तक 'ग्लोरिज देट गुर्जरदेश' में इस विषय का विस्तृत रूप से विवेचन किया है और यह सिद्ध किया है की प्रतिहार गुर्जर देश के स्वामी होने के कारण प्रतिहारों के विरोधियों ने इनको गुर्जर प्रतिहार परिभाषित कर दिया । जब इनके शिलालेखों का हम अध्ययन करते हैं तो प्रतिहारों के शिलालेख तथा कन्नौज के प्रतिहार सम्राटों के शिलालेखों में यह स्पष्ट तौर पर बतलाया गया है की अयोध्या के सम्राट श्री राम के लघु भ्राता लक्ष्मण के वंशज प्रतिहार हैं । अभिलेखों में प्रतिहारों के वंश निकास का इतना साफ वर्णन आते हुए भी आजकल के कुछ विद्वान हठधर्मी इन्हें गुर्जर प्रतिहार ही मानते हैं । यह इतिहास के साथ बहुत बड़ी द्वेषता हैं । प्रतिहारों का जितना बड़ा साम्राज्य था इनका इतिहास भी उतना ही महान है । भारत और भारत की संस्कृति इनकी बहुत बड़ी ऋणी है । अगर प्रतिहारों और चित्तौड़ के शासक गुहिलोतों ने मिलकर खलीफाओं की महान शक्ति को रोका नहीं होता तो आज भारत की छवि अलग होती तथा भारतीय संस्कृति और यहां का धर्म इरान और मिश्र की तरह समूल नष्ट हो गया होता एवं जैसे विद्वान लोग उन देशों की संस्कृति और धर्म का शोध कर रहे हैं वैसा ही हाल भारत का होता । अतः भारत प्रतिहारों का बहुत बड़ा ही आभारी है ।

जय माँ भवानी।।
जय क्षात्र धर्म।।

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