Thursday, March 31, 2016

Mahrajadhiraj Parmeshwar Samrat Nagbhatt Pratihar and their battle



=== सम्राट नागभट्ट प्रतिहार ===
(730 ई. से 756 ई.)

प्रतिहार /परिहार क्षत्रिय राजपूतों की वीरता पर शानदार पोस्ट जरूर पढ़ें और शेयर करें।

के.एम.पन्निकर ने अपनी पुस्तक "सर्वे ऑफ़ इंडियन हिस्ट्री "में लिखा है -"जो शक्ति मोहम्मद साहिब की मृत्यु के सौ साल के अंदर एक तरफ चीन की दिवार तक पंहुच गयी थी ,तथा दूसरीऔर मिश्र को पराजित करते हुए उतरी अफ्रिका को पार कर के स्पेन को पद दलित करते हुए दक्षिणी फ़्रांस तक पंहुच गयी थी ,जिस ताकत के पास अनगिनित सेना थी तथा जिसकी सम्पति का कोई अनुमान नही था ,जिसने रेगिस्तानी प्रदेशों को जीता तथा पहाड़ी व् दुर्लभ प्रांतों को भी फतह किया था।

इन अरब सेनाओं ने जिन जिन देशों व् साम्राज्यों को विजय किया ,वंहा कितनी भी सम्पन्न संस्कृति थी उसे समाप्त किया तथा वंहा के निवासियों को अपना धर्म छोड़ कर इस्लाम स्वीकार करना पड़ा। ईरान , मिश्र आदि मुल्कों की संस्कृति जो बड़ी प्राचीन व विकसित थी ,वह इतिहास की वस्तु बन कर रह गयी। अगर अरब हिंदुस्तान को भी विजय कर लेते तो यहां की वैदिक संस्कृति व धर्म भी उन्ही देशों की तरह एक भूतकालीन संस्कृति के रूप में ही शेष रहता। इस सबसे बचाने का भारत में कार्य नागभट्ट प्रतिहार ने किया। उसने खलीफाओं की महान आंधी को देश में घुसने से रोका और इस प्रकार इस देश की प्राचीन संस्कृति व धर्म को अक्षुण रखा। देश के लिए यह उसकी महान देन है। परिहार वंश में वैसे तो कई महान राजा हुए पर सबसे ज्यादा शक्तिशाली नागभट्ट प्रथम एवं मिहिर भोज जी थे जिन्होने अपने जीवन मे कभी भी मुगल और अरबों को भारत पर पैर जमाने का मौका नहीं दिया । इसीलिए आप सभी मित्रों ने कई प्रसिद्ध ऐतिहासिक किताबो पर भी पढा होगा की प्रतिहारों को ईसलाम का सबसे बड़ा दुश्मन बताया गया है।।

ब्रिटिश इतिहासकार कहते थे कि भारत कभी एक " राष्ट्र " था ही नहीं वामी इतिहासकार कहते हैं कि भारत राष्ट्रीयता की भावना से " एक " हुआ ही नहीं --- धर्म निरपेक्ष इतिहासकार कहते हैं कि " हिंदुत्व और इस्लाम " में कोई संघर्ष था ही नहीं
--- मुस्लिम कहते है कि इस्लाम के शेरों के सामने निर्वीर्य हिंदू कभी टिके ही नहीं ...--- हमें तो यही बताया गया है , यही पढाया गया है कि हिंदू सदैव हारते आये हैं .. They are born looser , और आप भी शायद ऐसा ही मानते हों ,पर क्या ये सच है ?

................ बिलकुल भी नहीं ...............

तो फिर सच क्या है ? क्या हमारे पूर्वजों के भी कुछ कारनामे हैं ? कुछ एसे कारनामे जिनपर हम गर्व कर सकें ? जवाब है ..... हाँ ...हैं .....एसे ढेर सारे कारनामे जिन्होंने इस देश ही नहीं विश्व इतिहास को भी प्रभावित किया और जिनके कारण आज हम हमारी संस्कृति जीवित है और हम अपना सिर ऊंचा करके खडे हो सकते हैं .क्या थे वे कारनामे ? कौन थे वे जिन्होंने इन्हें अंजाम दिया और हम उनसे अंजान हैं ??

समय - 730 ई.

मुहम्मद बिन कासिम की पराजय के बाद खलीफा हाशिम के आदेश पर जुनैद इब्न अब्द ने मुहम्मद बिन कासिम के अधूरे काम को पूरा करने का बीडा उठाया . बेहद शातिर दिमाग जुनैद समझ गया था कि कश्मीर के महान योद्धा शासक ललितादित्य मुक्तापीड और कन्नौज के यशोवर्मन से वह नहीं जीत सकता , इसीलिये उसने दक्षिण में गुजरात के रास्ते से राजस्थान और फिर मध्यभारत को जीतकर ( और शायद फिर कन्नौज की ओर) आगे बढने की योजना बनाई . और अपनी सेना के दो भाग किये -
१- अल रहमान अल मुर्री के नेतृत्व में गुजरात की ओर
२- स्वयं जुनैद के नेतृत्व में मालवा की ओर

-- अरब तूफान की तरह आगे बढे . नांदीपुरी में दद्द द्वारा स्थापित प्राचीन राज्य , राजस्थान में मंडोर का हरिश्चंद्र द्वारा स्थापित प्राचीन राज्य , चित्तौड का मोरी राज्य इस तूफान में उखड गये और यहाँ तक कि अरब उज्जैन तक आ पहुँचे और अरबों को लगने लगा कि वे स्पेन ,ईरान और सिंध की कहानी भी यहाँ बस दुहराने ही वाले हैं ..स्थित सचमुच भयावनी हो चुकी थी ..और ....तब ....तब भारत के गौरव को बचाने के लिये अपने यशस्वी पूर्वजों के नाम पर वे अपने सुयोग्य नेता नागभट्ट प्रथम के नेतृत्व में उठ खडे हुए . वे थे ---

..........." प्रतिहार " .............

- प्रतिहार सूर्यवंशी क्षत्रिय है
- प्रतिहार श्रीराम के भाई लक्ष्मण जी के वंशज है
- प्रतिहार धर्मरक्षा के लिये अग्निकुंड से जन्म के मिथक के कारण अग्निवंशी भी कहलाते है .
वे शायद गुप्त और वर्धन साम्राज्य के सबसे विश्वसनीय और प्रतिष्ठापूर्ण सैनिक सेवा " प्रतिहार " बटालियन के पीढीगत योद्धा थे , इसीलिये वे अपनी सैनिक पदवी " प्रतिहार " नाम से भी पहचाने जाते थे .

वे भारतीय इतिहास के रंगमंच पर एसे समय प्रकट हुए जब भारत अब तक के ज्ञात सबसे भयंकर खतरे का सामना कर रहा था . भारत संस्कृति और धर्म , उसकी ' हिंद ' के रूप में पहचान खतरे में थी अरबों के रूप में " इस्लाम " हिंदुत्व " को निगलने के लिये बेचैन था .

नागभट्ट प्रतिहार के नेतृत्व में दक्षिण के चालुक्य राजा विक्रमादित्य द्वितीय और नागदा के गुहिलौत वंश के राणा खुम्माण जिन्हें इतिहास " बप्पा रावल " के नाम से जानता है , के साथ एक संघ बनाया गया . संभवतः यशोवर्मन और ललितादित्य भी अपने राष्ट्रीय कर्तव्य से पीछे नहीं हटे और उन्होंने भी इस संघ को सैन्य सहायता भेजी . मुकाबला फिर भी गैरबराबरी का था ----

--- 100000 मुस्लिम योद्धा v/s 40000 हिंदू योद्धा .

और फिर शुरू हुयी कई युद्धों की श्रंखला जिसे मुस्लिम और वामिये इतिहासकार छुपाते आये हैं -

........... " राजस्थान का युद्ध " .............

सम्राट नागभट्ट प्रतिहार ने 730 ई. में अपनी राजधानी भीनमाल जालौर को बनाकर एक शक्तिशाली परिहार राज्य की नींव डाली। सेना ने सम्राट के रूप में नागभट्ट का राज्याभिषेक किया।वह कुशल सेनापति एवं प्रबल देशभक्त थे।नागभट्ट का ही काल वह कुसमय था जब अरब लुटेरों का आक्रमण भारत पर प्रारम्भ हो गया। अरबों ने सिंध प्रांत जीत लिया और फिर मालवा और अन्य राज्यों पर आक्रमण करना प्रारम्भ किया। सिंध पर शासन करने वाला राज्यपाल जुनैद एक खतरनाक अरबी था।उसके पास घोडो और डाकुओं की भारी सेना थी। वह तूफान की तरह सारे पश्चिमी भारत को रौंदता हुआ जालौर की ओर आ रहा था।सभी छोटे - छोटे राज्यों में रहने वाले, व्यक्ति अपना स्थान छोडकर भाग रहे थे। नागभट्ट प्रतिहार ही वह प्रथम योद्धा था जिसने जालौर ही नहीं अपने भारत देश को अरबों से मुक्त कराने का बीडा उठाया था।नागभट्ट की सेना छोटी थी, किंतु वह स्वयं जितना साहसी, दिलेर और विवेकशील था, वैसे ही उसकी सेना थी। नागभट्ट ने जुनैद के विरूद्ध अपनी मुठ्ठी भर सेना को खडा कर दिया - पहली ही लडाई में ही जुनैद को करारी शिकस्त झेलनी पडी। अरबों के विरूद्ध नागभट्ट की सफलता अल्पकालिक मात्र न थी, बल्कि उसने अरबों की सेनाओं को बहुत पीछे खदेड दिया था। इस विजय का ऐसा प्रभाव पडा की अनेक भयभीत राजा नागभट्ट से आकर मिल गये। एक वर्ष के बाद ही नागभट्ट प्रतिहार ने सिंध पर आक्रमण कर दिया और जुनैद का सिर काट लिया। सारी अरब सेना तितर - बितर होकर भेग खडी हुई, दुश्मनो के हाथ से नागभट्ट ने सैनधक, सुराष्ट्र, उज्जैन, मालवा, भड़ौच आदि राज्यों को मुक्त करा लिया। सन 750 में अरब लोग पुनः एकत्र हो गये। भारत विजय का अभियान छेड दिया। सारी पश्चिमी सीमा अरबो के अत्याचार से त्राहि-त्राहि कर उठी। नागभट्ट आग बबूला होकर युद्ध के लिए आक्रोशित हुआ, उसने तुरंत सीमा की रक्षा के लिए कूच कर दिया। 30000 से ऊपर अरब शत्रुओं को मौत हो घाट उतार दिया और देश ने चैन की सांस ली, अपने रक्षक को नागभट्ट नारायण देव के नाम से अलंकृत किया।

तंदूशे प्रतिहार के तनभृति त्रलोक्यरक्षास्पदे। देवो नागभट्ट: पुरातन पुने मुतिवर्षे भूणाद भुतम ।।

मर्तवड्रढ चौहान नागभट्ट का सामंत था वह जैसा वीर था, वैसा ही सुयोग्य कवि भी। उसने नागभट्ट प्रशस्ति नामक अच्छे ग्रंथ की रचना की है जो इतिहास और काव्य दोनों है। उसने नागभट्ट को वामन अवतार नाम दिया है। जिन्होने राक्षसों से धरती का उद्धार किया था। चौहान सामंत ने, जुनैद के उत्तराधिकारी तमीम को जिस वीरता से पराजित कर " चमोत्कट और भड़ौच " से मार भगाया कि नागभट्ट प्रतिहार ने उसे सामंत से भड़ौच का राजा ही बना दिया। सन 756 ई. में नागभट्ट का स्वर्गवास हो गया । सन 756 - 775 तक उसके पुत्र कक्कुस्थ और पौत्र देवराज प्रतिहार ने जालौर राज्य को संभाला।।

- अरब सदैव के लिये सिंधु के उस पार धकेल दिये गये और मात्र टापूनुमा शहर " मनसुरा " तक सीमित होकर रह गये . इस तरह ना केवल विश्व को यह बताया गया कि हिंदुत्व के योद्धा , शारीरिक बल में श्रेष्ठ हैं बल्कि यह भी कि उनके हथियार , उनकी युद्ध तकनीक और रणनीति विश्व में सर्वश्रेष्ठ है .

इस तरह भारत की सीमाओं को सुरक्षित रखते हुए उन्होंने अपना नाम सार्थक किया --

---"" प्रतिहार क्षत्रिय राजवंश "" ---
--- ' The door keepers of India ' ---

जय नागभट्ट परिहार।।
नागौद रियासत।।
जय माँ भवानी।।
जय क्षात्र धर्म।।

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