""जब प्रतिहार राजपूतों की वीरता और नारियों का अपूर्व बलिदान देखकर बाबर और उसकी सेना हतप्रभ रह गई""
मित्रों आज के इस पोस्ट के द्वारा हम आपको चंदेरी राज्य के प्रतिहार राजपूतों के वीरता और नारियों के बलिदान की जानकारी देंगे।।
चंदेरी वर्तमान में मध्यप्रदेश के जिला ग्वालियर में मौजूद है। पूर्व में इसका जिला मुख्यालय गुना था। किंतु 18 वीं शताब्दी के अंतिम चरण में मुगल साम्राज्य की अनुमति और मराठो के उत्कर्ष के समय सिंधिया का ग्वालियर में अधिपत्य स्थापित होने पर चंदेरी भी ग्वालियर रियासत का हिस्सा बन गया। मध्यकाल में चंदेरी व्यापार एवं राजनीति दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण बन गया था। वह मालवा और बुंदेलखण्ड की सीमा पर स्थित था। मालवा और उत्तर भारत की मुख्य सडकें वहां से गुजरती थी। चंदेरी जाने का दूसरा रास्ता - बीना - कोटा रेलमार्ग के मुगावली स्टेशन से लगभग 38 कि. मी. की दूरी पर चंदेरी स्थित है। अतः दोनो मार्गो द्वारा चंदेरी पहुंचा जा सकता है।
चंदेरी का यह सुंदर मनोरम किला एक बडे खंड पर पहाड़ी पर बना है सामरिक दृष्टि से इसकी स्थति अत्यंत महत्वपूर्ण है। चंदेरी दुर्ग बेतवा नदी की घाटी को जोडता है। बेतवा नदी के किनारे स्थित इस ऐतिहासिक दुर्ग को 11 वीं शताब्दी के क्षत्रिय प्रतिहार नरेश कीर्तिपाल ने बनवाया था। इस तक पहुंचने के लिए रास्ता अत्यंत दुर्गम और संकीर्ण है। मध्य भारत के दुर्लभ पहाड़ी दुर्ग तीन ही है। - नरबर दुर्ग, ग्वालियर दुर्ग, चंदेरी दुर्ग। बुंदेले राजपूतों और मांडू के सुल्तानों के समय के बनवाये भवनो के अवशेष वर्तमान में भी विद्यमान है। प्रतिहार युगीन अवशेष जीर्ण - शीर्ण अवस्था में विद्यमान हैं।
चंदेरी में प्रतिहारों के राज्यकाल के समय सर्वप्रथम 13 वीं शताब्दी में दिल्ली के शासक नासिरुद्दीन महमूद ने बुंदेलखण्ड पर चढ़ाई की साथ ही गयासुद्दीन बलबन ने भी चंदेरी पर हमला किया परंतु यह युद्ध सफल न हुआ। दूसरा युद्ध 15 वीं 16 वीं शताब्दी के मध्य हुआ। बाबर ने 28 जनवरी 1528 ईस्वीं को चंदेरी पर आक्रमण किया, आक्रमण उत्तर की ओर से हुआ। उसने अपनी सेना का पडाव, उत्तर पश्चिमी में " बत्तीसी बावडी " पर डाला था। जिस समय चंदेरी पर आक्रमण हुआ उस समय चंदेरी का शासक राजा मेदिनीराय प्रतिहार था। मेदिनीराय ने चंदेरी पर लगभग 8 वर्ष (1520 - 1528) ईस्वीं तक शासन किया था। मेदिनीराय प्रतिहार द्वारा 8 वर्ष के अल्पकाल में राज्य की उन्नति के लिए जो कुछ किया जा सकता था उसने किया।
मेदिनीराय प्रतिहार राणा सांगा के अभिन्न मित्र थे, सन् 1526 ईस्वीं में खानवा के युद्ध में राणा सांगा की ओर से 5000 सैनिकों के साथ बाबर का सामना करने के लिए पहुंचे किंतु बाबर इब्राहिम लोदी को पराजित किया। फिर राणा सांगा के साथ खानवा के मैदान में जाकर डटकर मुकाबला किया। खानवा का युद्ध भारतीय इतिहास का निर्णायक युद्ध था । इस युद्ध को बाबर ने सैन्य शक्ति के बल पर नहीं बल्कि अपने आत्मविश्वास और तोपखानो की वजह से जीता था। राणा सांगा की पराजय के पश्चात भी मेदिनीराय प्रतिहार शक्तिशाली राजपूत नरेश बाबर का प्रतिदंद्वी था।
खानवा के युद्ध में पराजित होने पर क्षत्रिय राजपूतों ने चंदेरी को अपना शक्ति केंद्र बनाया। देश भर के समस्त राजपूतों ने इस युद्ध मे किसी न किसी रुप में सहयोग दिया था। चंदेरी का युद्ध मुगलिया सल्तनत को भारत से उखाड़ फेंकने के लिए क्षत्रिय राजपूतों की ओर से अंतिम प्रयास था। स्वयं राणा सांगा इस युद्ध में शामिल होने आ रहे थे परंतु अचानक कालपी के निकट उनकी मृत्यु हो गई। प्रतिहार राजपूतों की शक्ति को बहुत बडा आघात पहुंचा। उधर बाबर को भी युद्ध करने की लालसा न थी। वह खानवा के युद्ध में क्षत्रिय राजपूत वीरों का अदम्य साहस और शौर्य को निकट से देख चुका था। इसीलिए बाबर ने युद्ध टालने का प्रयत्न किया, लेकिन मेदिनीराय के देश प्रेम व राणा सांगा की मित्रता तथा क्षत्रियों द्वारा कभी किसी की अधीनता स्वीकार न करने के सिद्धांत के कारण उन्होंने शहीद होना श्रेयस्कर समझा। बाबर के आंगे घुटने टेकने से इंकार कर दिया। इससे युद्ध होना आवश्यक हो गया था। मुगल सेना ने कीर्ती दुर्ग किला को चारो ओर से घेर लिया अगले दिन प्रतिहार राजपूतों ने कीर्ती दुर्ग और अपनी आन - बान - सान चंदेरी की रक्षार्थ अंतिम समय तक युद्ध किया परंतु तोपखानो की अग्निवर्षा के परिणाम स्वरूप शीघ्रता से धराशायी होते गये। सहस्त्रों प्रतिहार क्षत्रिय वीरों ने किले के बाहर प्रमुख द्वार पर रक्षात्मक युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। यह दरवाजा आज भी खूनी दरवाजा के नाम से प्रसिद्ध है।
प्रतिहार सेना की मुगलो से हो रही पराजय से ही लग रहा था कि वीर अब युद्ध को पक्ष में करने में सक्षम नहीं है। और हार अवश्यंभावी है। जब प्रतिहार राजा मेदिनीराय व उनके वीर सैनिक जिस समय हताश होकर बाबर की फौज से अपना अंतिम युद्ध करने को निकले, उस समय जौहर ताल के किनारे वि. सं. 1584 माघ सुदी बुधवार को राजा मेदिनीराय की पत्नी रानी मणिमाला एवं प्रतिहार राजपूत वीरांगनाएँ और नागरिक महिलाओं ने राजपूतों की पराजय निश्चित मानकर अपने कौमार्य, धर्म एवं सतीत्व की रक्षार्थ जौहर रचा और स्वयं को अग्निकुंड मे जय मां चामुण्डा देवी (प्रतिहार वंश की कुलदेवी) के नारे लगाते हुए अपने को समर्पित कर दिया। " उनकी ही स्मृति में यह स्मारक (जौहर) ग्वालियर राज्य के समय में श्री सदाशिव राय सिंह पंवार के द्वारा सन् 1932 में बनवाया गया। कहा जाता है कि जौहर के पूर्व माताओं ने अपने पुत्रों एवं बहनों ने अपने भाइओं का तलवारों से बध कर दिया। इसका उद्देश्य यह था कि कहीं राजपूत माँ के प्यारे लाल एवं बहिनों के भाई मुसलमान न बना दिये जायें। इस अनोखी घटना के संबंध में श्री आनंद जी मिश्र लिखते हैं। ----
बहनों ने काटे प्राणों के प्यारे भाई , माताओं ने पुत्रों के शीष उतार दिए।।
बलिहारी भारत। और कौन सा देश जहाँ ऐसी माता बहनों ने अवतार लिये।।
विजयोन्मत बाबर ने सेना सहित जब कीर्ती दुर्ग में प्रवेश किया था तो दुर्ग के अंदर खंडित मंदिर, भग्र महल और चिता की राख ही उसे प्राप्त हो सकी थी। प्रतिहार/परिहार राजपूतों की वीरता और नारियों का अपूर्व बलिदान देखकर बाबर और उसकी सेना हतप्रभ रह गई थी। बाबर ने आत्म बलिदान के ऐसे भयावह नजारा "अनुपम" आदर्श के ऐसे दृश्य को कभी नहीं देखा था। बाबर ने फतह के स्थान को "चांदे - देहरी" लिखा है। जो वर्तमान में चंदेरी है। चंदेरी प्रतिहार वंश के शासकों की वंशावली शिलालेख पर आधारित है। चंदेरी शासको का वंश वृक्ष इस प्रकार है --
(1) नीलकंठ प्रतिहार
(2) हरिराज प्रतिहार
(3) भीमदेव प्रतिहार
(4) रणपालदेव प्रतिहार
(5) वत्सराज प्रतिहार
(6) सवर्णपाल प्रतिहार
(7) कीर्तीराज प्रतिहार
(8) अभयपाल प्रतिहार
(9) गोविंदराय प्रतिहार
(10) राजराम प्रतिहार
(11) वीरराज प्रतिहार
(12) जैत्रवर्मा प्रतिहार
(13) मेदिनीराय प्रतिहार
इस प्रकार चंदेरी में 13 राजाओं ने 11 वीं शताब्दी से लेकर 15 वीं शताब्दी तक शासन करने उपरांत बुंदेलखण्ड की ओर पलायन कर गये।।।
Refrence : -
(1) प्रतिहार राजपूतों का इतिहास लेखक - देवी सिंह मंडावा
(2) मेमायर्ष आफ बाबर - अनुवाद एसकाइन पृष्ठ
(3) ग्वालियर गजेटियर पृष्ठ संख्या 39
(4) गुना गजेटियर / मध्य प्रदेश मार्गदर्शिका प्र. 31,38
(5) चंदेरी मार्गदर्शिका प्रपत्र - 13
Pratihara / Pratihar / Parihar Rulers of india
जय माँ चामुण्डा।।
जय क्षात्र धर्म।।
नागौद रियासत।।
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