Sunday, April 10, 2016

History of Parihar king Vatsraj

===== सम्राट_ वत्सराज_प्रतिहार =====

सम्राट वत्सराज (775 से 810 ईस्वीं तक) प्रतिहार\परिहार राजपूत राजवंश का संस्थापक एवं वह देवराज एवं भूमिका देवी का प्रबल प्रतापी पुत्र थे । उसने शास्त्र सूत्र ग्रहण करते ही अपने पूर्वज सम्राट नागभट्ट की भांति राज्य की चारों दिशाओं में वृद्धि करने का निश्चय किया ।
उस समय उज्जैन में श्रीहर्ष का ममेरा भाई भण्डि शासन कर रहा था, वह बार बार जालौर राज्य को आधीनता में लेने का पैगाम भेज रहा था। देवराज प्रतिहार उससे डर रहा था। वत्सराज ने शासन ग्रहण करते ही उज्जैन पर आक्रमण कर दिया, राजा भण्डि को कैद कर लिया और उसके संपूर्ण परिवार को राज्य से बाहर कर दिया। वत्सराज ने ही प्रतिहार साम्राज्य की राजधानी उज्जैन को बनाया।
ख्यानादि भण्डिकुलां मदोत्कट काटि प्रकार लुलंघतो।
यः साम्राज्य मरधाज्य कारमुक सखां सख्य हहादग्रहीत।।
मण्डौर राज्य के कमजोर हो जाने के बाद भारत में तीन महाशक्तियां अस्तित्व में थीं।
प्रतिहार साम्राज्य - उज्जैन, राजा वत्सराज
पाल साम्राज्य - गौड़, राजा धर्मपाल
राष्ट्रकूट साम्राज्य - दक्षिण भारत राजा धु्रव
वत्सराज ने सम्मुख साम्राज्य के लिए पाल और राष्ट्रकूट दोनों ही समान खतरे थे। दोनों की निगाहें उज्जैन पर लगी थी । वत्सराज भी अवसर व साधन की प्रतिक्षा कर रहा था। भण्डि पर विजय प्राप्त होने से ववत्सराज को पर्याप्त धन युद्ध सामग्री और सैन्य बल पप्राप्त हो गया। इससे संपन्न होकर प्रतिहार वंश के प्रमुख शत्रु धर्मपाल पर वत्सराज ने ही आक्रमण कर दिया।
गंगा यमुना के दोआब मे लडा गया युद्ध अति भयानक था, अंततः धर्मपाल पीछे हटने लगा, वत्सराज ने उसे बंगाल की खाडी तक खदेडा, यहां पर पुनः एक निर्णायक युद्ध हुआ। इस युद्ध में धर्मपाल ने ही संधि प्रस्ताव भेजा और उज्जैन साम्राज्य की आधीनता स्वीकार कर ली। गौड राज्य की विजय से सम्राट वत्सराज प्रतिहार का हौसला इतना बुलंद हुआ कि धर्मपाल ने और ध्रुव(राष्ट्रकूट) ने एक - एक राजछत्र और राज्यलक्ष्मी उसे भेंट कर दिया।
"हैसा स्वीकृत गौड़ राज्य कमलां मनतं प्रवेश्या विरात"
सन् 780 से 781 की महान विजय के समानांतर सन् 798 अर्थात 18 वर्ष तक उज्जैन साम्राज्य का अकंटक यह काल न केवल राजस्थान वरन संपूर्ण उत्तरी भारत का वैभव काल था। प्रशासन की स्वच्छता न्याय की आस्था और कृषि व्यापार की संपन्नता ने उज्जैन को भारत का मुकुट और वत्सराज प्रतिहार को राजाधिराज का पद दिया।।
वत्सराज सम्राट की उपाधी धारण करने वाला प्रतिहार राजपूत वंश का पहला शासक था। इसे प्रतिहार साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है।
नागभट्ट प्रथम के दो भतीजे 'कक्कुक' एवं 'देवराज' के शासन के बाद 'देवराज' का पुत्र वत्सराज (775 - 810ई.) गद्दी पर बैठा।
वत्सराज के समय में ही कन्नौज के स्वामित्व के लिए त्रिदलीय संघर्ष आरम्भ हुआ था।
उसने राजस्थान के मध्य भाग एवं उत्तर भारत के पूर्वी भाग को जीत कर अपने राज्य में मिलाया। उसने पाल वंश के शासक धर्मपाल को भी पराजित किया।।
जोधपुर से 65 किलोमीटर दूर औसियाँ जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। इन मंदिरों का निर्माण प्रतिहार शासकों द्वारा करवाया गया।
प्रतिहार शासक वत्सराज (778-794 ईस्वी) के समय निर्मित महावीर स्वामी का मंदिर स्थापत्य का उत्कृष्ट नमूना है, इसके अतिरिक्त सच्चिया माता का मंदिर, सूर्य मंदिर, हरीहर मंदिर इत्यादि प्रतिहारकालीन स्थापत्य कला के श्रेष्ठ उदाहरण हैं ये मंदिर महामारू अर्थात प्रतिहार शैली में निर्मित है।।
उत्तर भारत में वर्धनवंश के पतन के बाद उत्तर भारत पर एकक्षत्र शासक प्रतिहार थे।
नागभट्ट नाम के एक नवयुवक ने इस नये साम्राज्य की नींव रखी। संभव है कि ये भडौच के प्रतिहार शासको का ही राजकुंवर था, जयभट्ट का पुत्र । पूरे उत्तर भारत में छोटे छोटे राज्य थे जो किसी भी बाह्य आक्रमण को विफल करने में पंगु बने हुए थे।
भडौच के प्रतिहार, वल्लभी के मैत्रक, वातापी के चालुक्य, भीनमाल के चपराणे,चित्तौड के मौरी,अजमेर के चौहान, भटनेर के भाटी, दिल्ली के तोमर,जालौर के प्रतिहार, इन सबमें केवल बादामी के चालुक्य साम्राज्य के स्वामी थे। वह काल विश्व इतिहास में उथल पुथल का था, संस्कृति व सभ्यताओ पर अतिक्रमण का था। अरब से उठने वाली इस्लामिक लपटो ने बहुत सी संस्कृतियो व सभ्यताओ को निगल कर उन स्थानो को इस्लामिक रंग में रंग दिया था।
यह सब ज्यादातर तलवार व भय के बल पर हो रहा था। जो काम इसाइयो ने सदियो पहले यूरोप में किया था वहीं काम एशिया में अरब के खलीफा कर रहे थे। अरब ने ईरान की विश्वप्रसिद्ध सभ्यता का खात्मा करके नया ईरान गढ दिया था, वहाँ के कुछेक पारसियो ने पलायन करके भारत में शरणागत होकर अपनी बेहद प्राचीन संस्कृति को लुप्त होने से बचा लिया। इराक की महान सभ्यता अब इस्लामिक संस्कृति का केन्द्र बन गयी थी।
मिस्त्र की सभ्यता अब बदल गयी थी, तुर्की कबीले इस्लाम के नये सिपाहसलार थे, कुवैत,लीबिया पूरा का पूरा मध्य एशिया इस्लामिक संस्कृति में रंगता जा रहा था व अरब के खलीफा एक नये साम्राज्य के मालिक बन गये थे जो जिधर को रूख करता वहाँ की प्राचीन सभ्यता व विरासत को नष्ट करके नया रंगरूप देते। बर्बरता, नरसंहार,
बलात्कार, मारकाट,हाहाकार ये सब ही दिखाई देता था।।
एशिया महाद्वीप में जो भी इस्लाम स्वीकारता वहीं एक नया युद्ध छेड देता किसी अन्य देश के खिलाफ जैसे कि तुर्की, मंगोल व अफगानिस्तान उदाहरण हैं। खलीफाओ ने अरबी साम्राज्य को बेहद बडा व मजबूक बनाने के बाद आखिरकार भारत की ओर रूख किया। अरबी साम्राज्य बहुत ही बडा व संसाधनो से परिपूर्ण हो गया था। कई देश इसके अन्दर थे।।
अरबी सैनिको की वेशभूषा अस्त्र शस्त्रो से लैस थी वे हर प्रकार के हथियारो से शत्रु पर आक्रमण करते थे। लाखो की संख्या में सैनिक, बहुत से सैनिक दल, हजारो घुडसवार सब तरह की सैन्य शक्तियाँ अरबो के पास थी। यूरोप भी घुटने टेक रहा था तुर्की सैन्यदल के सामनेे। सब का लक्ष्य एक ही था। भारत सदा से ही एक उत्सुकता का केन्द्र व पहेली की तरह रहा है जिसे हर कोई जानना समझना चाहता है।
अरबी यौद्धा किसी भी प्रकार से भारत को जीतना चाहते थे व बुतपरस्ती को खत्म करके इस्लामिक देश बनाना चाहते थे। भारत पर आक्रमण केवल पश्चिमोत्तर भूमि से किया जा सकता है जहाँ राजस्थान व गुजरात व दूर चलकर पंजाब है। गुजरात व राजस्थान को तब गुर्जरात्रा प्रदेष कहा जाता था जिसकी रक्षा का दायित्व प्रतिहार राजपूत वंश पर था।
अरबो की विशाल आँधी के सामने कुछ हजार प्रतिहार राजपूत अपने रणनृत्य का प्रदर्शन करते हुए भिडे जिसे इतिहास राजस्थान के युद्ध जो कि प्रतिहार व अरबो के बीच हुए के नाम से जानता है। ये एक दो युद्ध नहीं बल्कि युद्धो की पूरी लम्बी श्रंखला थी जो सैकडो वर्षो तक प्रतिहार व अरब आक्रान्ताओ के बीच चली। जिसमें प्रतिहार राजपूतों ने अभूतपूर्व साहस व पराक्रम दिखाते हुए अरबो को बाहर खदेडा।।
भारत की हजारो साल की सभ्यता व संस्कृति को अरबो द्वारा होने वाली हानि प्रतिहार राजपूतों ने बचाया व लगभग तीन सौ सालो तक प्रतिहार राजपूत भारत के रक्षक व प्रहरी बने रहे । प्रतिहार यानी द्वारपाल है प्रतिहार राजपूतों के शिलालेखों व ताम्रपत्रों के अनुसार ये भगवान राम के भाई लक्ष्मण जी के वंशज है इन आरम्भिक युद्धो का नेतृत्व सम्राट नागभट्ट प्रतिहार प्रथम ने किया।।
नागभट्ट प्रतिहार के नेतृत्व में चित्तौड के मोरी बादामी के चालुक्य सम्राट विक्रमादित्य, चौहान, सबने अरबो को बुरी तरह हर बार पराजित किया। सम्राट नागभट्ट ने अरबी आक्रमण से होने वाली उथल पुथल व अस्त व्यस्तता का अवसर उठाते हुए बहुत से राज्यो को अपने अधीन करके अपने साम्राज्य की स्थापना की। सम्राट नागभट्ट ने उज्जैन को नयी राजधानी बनाया।
नागभट्ट ने भारतीय संस्कृति व सभ्यता के लिये जो किया वह अतुलनीय है। इसीलिये इन्हें राष्ट्रनायक की उपाधि से विभूषित किया जाता है। राष्ट्र रक्षक भारत के प्रहरी यह कथन उन्हीं के कारण चरितार्थ हुआ।
इसी समय प्रतिहार राजपूतों ने एक नये युद्धनृत्य की रचना की जिसे रणनृत्य कहा जाता है। प्रतिहार राजपूतों के संख्या बल में कम होने के कारण व शत्रुओ की विशाल सेना से भिडने से पूर्व यह नृत्य किया जाता था जिससे शत्रु को भ्रम होता था कि राजपूत सेना बहुत अधिक है।
रणनृत्य कला पर आज भी रिसर्च जारी है।
भारतीय संस्कृति और सभ्यता की रक्षा करने की वजह से भारत हमेशा प्रतिहार वंश के क्षत्रिय राजपूतों का रिणी रहेगा। अरबों को सफलता पूर्वक परास्त करने के कारण ही प्रतिहारों को "भारत के प्रहरी" भी कहा जाता है। बाद में प्रतिहार वंश में कई बेहद प्रतापी व पराक्रमी शासक हुए जैसे कि वत्सराज प्रतिहार, नागभट्ट द्वितीय, आदिवराह सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार,महेन्द्रपाल प्रतिहार, महिपाल प्रतिहार प्रथम, वीरराजदेव प्रतिहार(नागौद राज्य के संस्थापक, यहां के प्रतिहार/परिहार राजपूत सम्राट मिहिर भोज के वंशज है आदि।
सम्राट नागभट्ट और पूरे प्रतिहार वंश के राजपूतों का नाम सदा भारतीय संस्कृति संरक्षण के लिये याद किया जाता रहा रहेगा। वे भारतीय इतिहास के महान यौद्धा थे।
नोट :- आज कल मेरे द्वारा बनाई गई प्रतिहार वंश की पोस्ट गुर्जर समुदाय के लोग चुरा कर अपने फेसबुक पेजो पर प्रतिहार वंश के साथ गुर्जर शब्द जोडकर समाज को तोड़ने का काम कर रहे है। सभी बंधुओं से अनुरोध है कि इस पर पुरजोर विरोध किया जाय नीचे दो लिंक दे रहा हूं आप देख सकते है कि कैसे ये लोग नीचता पर उतर आये है। --
पहली लिंक https://m.facebook.com/story.php…
जय माँ चामुण्डा।।
जय क्षात्र धर्म।।
नागौद रियासत।।

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